राहुल गाँधी, नमस्कार!
इस खत की शुरुआत मैं अपने परिचय के साथ करती हूँ। मेरा नाम साक्षी है और मैं एक कश्मीरी पंडित हूँ। मेरा जन्म विश्वामित्र-वशिष्ट के गोत्र में हुआ था। हालाँकि एक कश्मीरी युवक के साथ शादी होने के बाद मेरा गोत्र पत स्वमीना कौशिक हो गया है। हमारे समाज में जो गोत्र प्रणाली है, उसके बारे में आपके ज्ञान पर मुझे जरा सा भी शक नहीं है। आपने नवंबर 2018 में पुष्कर में एक मंदिर का दौरा करने के दौरान अपने आपको दत्तात्रेय (कौल) ब्राह्मण बताया था। आपके इस ख़ुलासे से राजनीतिक गलियारे में हलचल पैदा हो गई थी और आपको काफी नाराजगी का सामना भी करना पड़ा था।
जहाँ तक मुझे याद है और सार्वजनिक रिकॉर्ड में है, उसके हिसाब से आपके दादा जी फिरोज गाँधी थे, जो पारसी थे। हालाँकि आपके पिता और स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी की आस्था पर भी शक है। मैं आपको बता दूँ कि गोत्र परंपरागत रूप से एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक जाते हैं। जिस तरह से आपको अपना उपनाम अपने पिता से विरासत में मिला, उसी तरह से गोत्र भी आपको अपने पिता से विरासत में मिला होगा। वास्तविकता तो यह है कि आप गोत्र को नहीं चुन सकते, बल्कि गोत्र आपको चुनता है। मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि गोत्र कोई कमोडिटी (बिकाऊ वस्तु) नहीं है, जिसे आप अपनी इच्छा और राजनीतिक जरूरतों के लिए उधार ले सकते हैं या फिर त्याग कर सकते हैं। मुझे आशा है कि आपके संदेहास्पद दावे पर मेरे न्यायसंगत संदेह के मेरे अधिकार से आप सहमत होंगे।
मैं आपकी राजनीतिक विवशता को समझ सकती हूँ; आप वर्षों से भारत में राजनीतिक परिदृश्य में एक मुकाम पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। फिर भी कमोबेश सफलता आपके हाथ नहीं आती लग रही है। आप राजनीतिक परिवार यानी नेहरू-गाँधी परिवार में पैदा होने के लाभ को भुनाने में भी सक्षम नहीं हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मेरे 8 साल के बेटे समेत हममें से अधिकतर आम भारतीय मानते हैं कि आप भारतीय राजनीति में बेमेल हैं। मेरे बेटे का विचार है कि आपको सक्रिय राजनीति छोड़कर प्राथमिक रूप से कॉमेडी को तवज्जो देनी चाहिए। आप अपने कॉमिक और अबोधगम्य भाषणों से उसे अचंभित करने से नहीं चूकते। वह कहता है कि आप और राजनीति एक विरोधाभास है!
आप जिस तरह की राजनीति करते हैं और आपकी जो विचारधारा है, उसे व्यक्तिगत तौर पर मैं समझ नहीं पा रही हूँ। वैसे तो आप काफी पक्षपाती हैं, लेकिन धर्मनिरपेक्षता की आड़ में उसे छिपाने का काम किया गया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारतीयों के एक विशेष वर्ग में आपकी तरह की धर्मनिरपेक्षता की भूख है, जो स्पष्ट रूप से हिन्दू-विरोधी भावनाओं में तब्दील हो जाती है।
मिस्टर गाँधी, यह एक खुला रहस्य है कि आपके राजनीतिक दुस्साहसों को वामपंथी लुटियन तंत्र द्वारा छिपाया जाता है और उसे ‘सफेद’ कर दिया जाता है। ऐसा देखा गया है कि सार्वजनिक जीवन में आपकी छवि को साफ-सुथरा दिखाने के लिए मुख्यधारा की मीडिया ने आपका खूब समर्थन किया और आपकी छवि को बेहतरीन बनाने की काफी कोशिश की है। मगर उनके इतनी सफाई से किए प्रयासों के बावजूद, सोशल मीडिया पर आपकी छवि लगातार बिगड़ रही है। आपके झूठ का पर्दाफाश हो रहा है और साथ ही आपके संदेहास्पद इरादे भी उजागर हो रहे हैं।
मिस्टर गाँधी, मैं आपसे कुछ प्रश्न पूछती हूँ। आप जिस समुदाय को अपना कहते हैं, उस समुदाय के प्रति आपके मन में इतनी नफरत क्यों है? मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष के रूप में आप, एक कश्मीरी दत्तात्रेय (कौल) ब्राह्मण, अपने समुदाय के कल्याण की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं? 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए कॉन्ग्रेस की तरफ से जारी किए गए घोषणा-पत्र में क्या उस कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए एक शब्द का भी उल्लेख नहीं करना चाहिए था, जिस समुदाय के होने का आप दावा करते हैं?
मिस्टर गाँधी, अब आप कृपया यह मत कहिएगा कि आपको इसके बारे में सूचित नहीं किया गया या फिर आप अपनी पार्टी के घोषणा पत्र की सामग्री से ही अनजान थे। यह किसी राजनीतिक दल के प्रमुख के रूप में आपकी स्थिति के लिए बहुत ही निराशाजनक और अपमानजनक होगा। वास्तव में इन दिनों आप पूरे देश में रैलियों में जाकर इसी घोषणा-पत्र के आधार पर ही मतदाताओं से वोट देने की अपील करते हैं। पर इतनी स्पष्ट चूक के बावजूद, मैं आपको लेकर हैरान क्यों नहीं हूँ? इसलिए कि बहुत समय पहले से ही आपके इरादों के बारे में ऐसी बातें कही जा रही थीं।
हिंदुओं के प्रति, हमारे समुदाय के प्रति, आपकी अनभिज्ञता और हिंदुओं के प्रति आपकी घृणा आपके व्यवहार से स्पष्ट है। आपके घोषणा-पत्र में जम्मू और कश्मीर के लिए स्वाभिमान वाले सेक्शन में कश्मीरी हिंदुओं पर एक भी शब्द शामिल नहीं किया गया। तथ्य यह है कि आपको हमारी दुर्दशा और पुनर्वास की कोई परवाह नहीं। वास्तव में आपको सिर्फ अपनी झूठी हिंदुत्ववादी छवि की चिंता है। आपके पास अपने राजनीतिक विरोधियों के आरोपों के लिए इस छवि को महज एक राजनीतिक ‘काट’ के रूप में रखने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
आपकी स्पष्ट नफरत के बावजूद आप चाहते हैं कि हम आप पर भरोसा करें और आपको अपने नेता के रूप में स्वीकार करें! लेकिन कैसे? मैं अपनी अंतरात्मा को धोखा नहीं दे सकती।
एक तरफ तो आप महिलाओं का मसीहा होने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ आप बेहद ही चतुराई से अनुच्छेद-35A पर स्टैंड लेने से बचते हैं। यह आश्चर्यजनक है क्योंकि हर कश्मीरी पंडित इसको लेकर परेशान है। आपको 35A की ख़ामियों से बख़ूबी वाकिफ होना चाहिए था, जिससे हर कश्मीरी पंडित महिला नफरत करती है। 35A जम्मू-कश्मीर की हर एक बेटी के लिए एक बुरा सपना है जो अपनी जाति/राज्य के बाहर शादी करना चाहती है। यह उसके मौलिक अधिकारों को दाँव पर लगाता है, जो कि उसके लिए न्यायसंगत नहीं है। मेरे राज्य की महिलाएँ इस अनुच्छेद के खतरों से अवगत हैं। आश्चर्य है कि आपको इस विषय पर अधिक जानकारी नहीं है और इसी वजह से मुझे गुस्सा आता है।
खुशबू एक कश्मीरी पंडित महिला हैं। उन्होंने गैर-कश्मीरी युवक से शादी की और फ़िलहाल बेंगलुरु में रहती हैं। उनके अंदर अनुच्छेद 35A को लेकर काफी गुस्सा है, क्योंकि यह उनके अधिकारों के साथ विश्वासघात करता है। उनका कहना है कि कश्मीरी पंडित और ऋषि कश्यप की भूमि होने के बावजूद, कानून उनके प्रति और उनके समुदाय से बाहर शादी करने वाली हर लड़की के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाता है। वह आगे कहती हैं कि यह अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर के नागरिक के रूप में उनके मौलिक अधिकार को छीन लेता है। राहुल गाँधी, यह निराशाजनक है कि आप जैसे अधिकांश राजनेता इस तथ्य से बेखबर हैं कि 35A उन्हें उनकी पहचान, आवाज, भाषा और संस्कृति से अलग कराता है। वह चाहती हैं कि इस तरह के कानूनों को निरस्त किया जाए, लेकिन वो मानती हैं कि किसी को भी इसकी परवाह नहीं, क्योंकि उनके समुदाय को वोट बैंक के रूप में नहीं देखा जाता है। खुशबू जैसी कई लड़कियाँ हैं, जिन्हें इस कड़वी सच्चाई के साथ जीना पड़ता है। अफसोस की बात तो यह है कि अनुच्छेद 35A, जो हमारे अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है, इंडियन नेशनल कॉन्ग्रेस या फिर किसी भी कॉन्ग्रेसी नेता के लिए चर्चा योग्य विषय नहीं है।
इसके विपरीत, एक विदेशी माँ की कोख से इंग्लैंड के रोचफ़ोर्ड में पैदा हुए भी उमर अब्दुल्ला को इस तरह की किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। वो 5 जनवरी 2009 से लेकर 8 जनवरी 2015 के बीच राज्य के 8वें मुख्यमंत्री बने। उनकी गठबंधन सरकार को आपकी पार्टी का समर्थन प्राप्त था। तो, मिस्टर गाँधी, अगर पुरुष इस अनुच्छेद से बँधे हुए नहीं हैं, तो फिर केवल महिलाएँ ही क्यों? मुझे यकीन है कि आप इस सवाल का कोई तार्किक जवाब देने की बजाए चुप्पी साधना पसंद करेंगे।
आपका यह ढुलमुल रवैया चिंताजनक और विचारनीय है। आप एक नकली हिंदू हैं और यह यूपी के हिंदू गढ़ अमेठी और केरल के मुस्लिम बहुल वायनाड में आपकी उपस्थिति के अंतर से स्पष्ट हो गया है। वास्तव में आपका रवैया हास्यास्पद है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्रों में जनता से रूबरू होते हुए आपको अपने आप पर भरोसा नहीं रहता। या फिर आप अपनी पहचान को लेकर असमंजस में ही रहते हैं?
अब वापस से इस बिंदु पर आते हुए इस बात को समझने में मैं असफल हूँ कि कैसे आप एक हिंदू जनेऊधारी होकर भी अपने ही समुदाय/धर्म के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए भी सहिष्णु बने हुए हैं? न तो आपने कभी हमारे लिए आवाज उठाई और ना ही कभी कोई चिंता जाहिर की। आप हमारे नरसंहार और 7वें पलायन के लिए जिम्मेदार अपराधियों को कानून के सामने लाने के बारे में मुखर नहीं हैं, क्यों? इसके इतर, मैंने हमेशा आपको हिंदू-विरोधी ताकतों के साथ खड़ा पाया है। बड़े दुख की बात है कि आप एक उग्र विचारधारा के लोगों के साथ खड़े हो कर उनका और उनकी माँगों का समर्थन करते हैं, लेकिन आप उस जगह पर बिल्कुल ही चुप्पी साध लेते हैं, जहाँ पर आपसे कश्मीरी पंडित समुदाय की ओर से कुछ बोलने की उम्मीद की जाती है।
This is the modus operandi that Modi gives his blessings for- organized propagation of hate, spreading of fake news, misleading people, rampant misogyny, abusing the Constitution & misuse of religious sentiments to incite hatred. #BhaktCharitra pic.twitter.com/mIVEWBirrE
— Congress (@INCIndia) April 20, 2019
यह वाकई बड़ा दुखद है कि एक आदमी, जो कश्मीरी हिंदू होने का दावा करता है, वह “भक्त” शब्द के बारे में पूरी तरह अंजान है। मिस्टर गाँधी आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि भक्त महज एक शब्द नहीं है, बल्कि ये शब्द उन लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है, जो वास्तव में हिंदू हैं। मगर अफसोस! आप जैसे नकली हिंदू कभी भी इसका गूढ़ अर्थ नहीं समझ पाएँगे।
इसलिए, मिस्टर गाँधी, मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि आप अपनी राजनीतिक यात्रा का आत्मविश्लेषण करें और इसे गंभीरता से लें। एक बार के लिए, इस बाहरी लबादे को हटाकर अपने अंतर्मन में झाँके और अपनी आत्मा के प्रति सच्चे रहें। कुछ ऐसा करें, जो करना आपको वाकई में पसंद हो। यह हमारे हित में (और आपके भी) सबसे अच्छा होगा कि आप राजनीति से संन्यास लें और एक शांत तथा गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करें। शायद आप राजनीति के लिए नहीं बने हैं, एक बार इसके बारे में जरूर सोचें।
भविष्य में आपके प्रयासों के लिए आपको शुभकामनाएँ। आपकी बुद्धि सही रहे, यही मेरी कामना है!