Sunday, April 28, 2024
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जब एक परिवार ने कर दी लोकतंत्र की हत्या… PM मोदी ने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने वालों को याद किया, इमरजेंसी के 48 साल पूरे होने पर BJP मना रही ‘काला दिन’

साल 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस भारी बहुमत से जीतकर आई थी। इंदिरा गाँधी खुद भारी अंतर से जीती थीं। यूपी के बरेली से इंदिरा गाँधी की जीत पर सवाल उठाते हुए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राज नारायण सिंह ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट के फैसले से खफा इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी घोषित कर दी।

इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस की सरकार ने साल 1975 में आज ही के दिन यानी 25 जून को देश में आपातकाल की घोषणा की थी। लोकतंत्र के सबसे काले अध्यायों में एक माने जाने वाले आपातकाल 48 वर्ष बीत चुके हैं। 21 महीने तक लागू इमरजेंसी के दौरान कॉन्ग्रेस सरकार ने लगभग एक लाख राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया था।

आपातकाल के दौरान गिरफ्तार होने वाले लोगों में आम नागरिक से लेकर मीडियाकर्मी, बुद्धिजीवी और राजनीतिक विरोधी थे। इस दौरान राजनीतिक विरोधियों पर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (MISA) के तहत कार्रवाई होती थी। इस कानून के तहत गिरफ्तार आरोपितों की सुनवाई अदालत में नहीं हो सकती थी। वहीं, आम नागरिकों के भी सारे अधिकार छीन लिए गए थे।

कहा जाता है कि देश में आपातकाल लागू करने में पाँच लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इनमें इंदिरा गाँधी, उनके बेटे संजय गाँधी, राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद, हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल और स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के पोते एवं पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे शामिल हैं। कहा जाता है कि सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गाँधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी।

आपातकाल की बरसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, अमित मालवीय सहित तमाम नेताओं ने इसे लोकतंत्र के काला दिन के रूप में याद किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, “मैं उन सभी साहसी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया और हमारी लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने के लिए काम किया। #DarkDaysOfEmergency हमारे इतिहास में एक अविस्मरणीय अवधि है, जो हमारे संविधान द्वारा मनाए गए मूल्यों के बिल्कुल विपरीत है।”

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लिखा, “भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल को आज 48 साल बाद भी एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। रातों रात जिस तरह संविधान को ताक पर रखते हुए आपातकाल लगाया गया वह सत्ता के दुरुपयोग, मनमानी और तानाशाही का आज भी सबसे बड़ा उदाहरण है।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारे लिए 25 जून का यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है कि हम आपातकाल के इस कालखंड को कभी न भूलें और अपने लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने का दृढ़ संकल्प बनाये रखें, ताकि फिर कभी कोई आपातकाल दोहराने की ख्याल भी अपने मन मे न लाए।”

वहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने लिखा, “आज ही के दिन 1975 में एक परिवार ने अपने हाथ से सत्ता निकलने के डर से जनता के अधिकारों को छीन व लोकतंत्र की हत्या कर देश पर आपातकाल थोपा था। अपने सत्ता-स्वार्थ के लिए लगाया गया आपातकाल, कॉन्ग्रेस की तानाशाही मानसिकता का प्रतीक और कभी न मिटने वाला कलंक है। उस कठिन समय में अनेक यातनाएँ सहकर लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए लाखों लोगों ने संघर्ष किया। मैं उन सभी देशभक्तों को दिल से नमन करता हूँ।”

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पीएम मोदी के एक कथन को साझा करते हुए लिखा, “विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखने के लिए तानाशाही आपातकाल का प्रखर विरोध करने वाले सभी हुतात्माओं को नमन। #DarkDaysOfEmergency

भाजपा नेता अमित मालवीय ने आपातकाल के दौर के अत्याचारों को बताने वाला एक वीडियो शेयर किया है। इसमें आपातकाल का विरोध करने वाले बिहार के लोगों के साथ किस तरह क्रूर तरीके अपनाए गए थे, उसका जिक्र किया गया है।

इस वीडियो में बताया गया है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी की सरकार ने विरोधियों पर इतना अत्याचार किया कि अंग्रेजों की कालापानी की सजा भी कम नजर आती थी। इस दौरान सबसे अधिक छात्र संगठनों को परेशान किया गया और उनके नेताओं को जेलों में डालकर छात्र संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

इतना ही नहीं, किश्तैया गौड़ और भूमैया को फाँसी दे दी गई। जॉर्ज फर्नांडिस के भाई को इतना मारा गया कि वे वर्षों तक सीधे खड़ा नहीं हो पाए। गर्म तवे और बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर सत्याग्रहियों पीटा जाता था। उनकी अंगुलियों पर कुर्सी रखकर उस पर बैठा जाता था। बेहोश होने तक चाबुक से मारा जाता था। जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर इतना तड़पाया गया कि उनकी किडनी खराब हो गई।

भाजपा हर साल 25 जून को लोकतंत्र का काला दिवस के रूप में मनाती है। भाजपा ने इंदिरा गाँधी द्वारा देश में की गई आपातकाल की घोषणा वाला ऑडियो वाला वीडियो शेयर करते हुए कहा, “आपातकाल… लोकतंत्र का काला अध्याय! कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर देश की आत्मा को कुचलने का काम किया। #DarkDaysOfEmergency

बताते चलें कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक देश में आपातकाल लागू था। इन दौरान मीडिया को प्रतिबंधित कर दिया गया था। न्यायपालिका पर अंकुश लगा दिया गया था। जो भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाता था, उसे जेलों में डाल दिया जाता था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में इमरजेंसी की घोषणा की थी।

क्यों लगा था आपातकाल

साल 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस भारी बहुमत से जीतकर आई थी। इंदिरा गाँधी खुद भारी अंतर से जीती थीं। यूपी के बरेली से इंदिरा गाँधी की जीत पर सवाल उठाते हुए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से उनके चुनावी प्रतिद्वंद्वी राज नारायण सिंह ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

राजनारायण सिंह ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है। इसके बाद मामले की सुनवाई हुई इंदिरा गाँधी के चुनाव को निरस्त करते हुए कोर्ट ने उन पर किसी भी पद पर रहने के लिए 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया।

इसके बाद 25 जून 1975 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक जनसभा को संबोधित किया। इस जनसभा में एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे। जयप्रकाश ने इसमें नारा दिया कि ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’। इसके बाद शाम तक आपातकाल लागू कर दिया गया और जेपी सहित अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी एवं सभी विपक्षी दलों के नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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