फेसबुक को भाजपा समर्थक बताने के इरादे से एक प्रोपेगेंडा बड़े स्तर पर शुरू किया गया है। हालाँकि, ये सभी आरोप पहली नजर में ही बेबुनियाद और हास्यास्पद नजर आते हैं। वाम-उदारवादियों ने फेसबुक को अनइनस्टॉल करने की इस मुहिम में तथ्य और तर्कों को सबसे पहले हाशिए पर रख दिया है।
अमेरिकी समाचार पत्र ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ द्वारा फेसबुक के भाजपा समर्थक होने के आरोप लगाते लेख प्रकाशित होने के बाद एक नई किस्म की बहस ने जन्म ले लिया है। फेसबुक के भाजपा समर्थक होने के सभी आरोप बेबुनियाद हैं, क्योंकि फेसबुक की कम्युनिटी गाइडलाइन्स भी हमेशा से ही वामपंथियों के समर्थन में ही रही है।
फेसबुक यूजर की ‘लैंगिक पहचान’, जो कि वामपंथी राजनीतिक विचारधारा की गहराई में समाया हुआ शब्द है, को बेहद वास्तविक अवधारणाओं, जैसे कि नस्ल, जातीयता, धार्मिक पहचान और ऐसी अन्य पहचान के साथ रखता है।
यदि कोई फेसबुक यूजर इस अवधारणा के खिलाफ मुखर है कि एक पुरुष, एक महिला हो सकती है, यदि वह ऐसा होने का दावा करता है, तो यूजर पर ‘हेट स्पीच’ का आरोप लगाया जा सकता है और उसका अकाउंट निलंबित किया जा सकता है। ऐसे में भी हमें यह विश्वास करना होगा कि इस तरह के एक संगठन ने अचानक हिंदुत्ववादी पार्टी में दिलचस्पी दिखाई है।
ऐसे भी कई प्रमाण हैं जब देखा गया कि फेसबुक भाजपा के पक्ष में नहीं हो सकता है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कुछ लोगों द्वारा अभियान चलाया गया और भाजपा का समर्थन करने वाले कुछ फेमस फेसबुक पेजों को बिना किसी स्पष्ट कारण के सस्पेंड करवाया गया।
उदाहरण के लिए, अप्रैल 2019 में फेसबुक द्वारा INC का समर्थन करने वाले 687 फेसबुक पेजों को निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद भाजपा का समर्थन करने वाले पेजों को भी फेसबुक से हटा दिया गया, लेकिन ख़ास बात यह थी कि भाजपा के ये पेज इंडियन नेशनल कॉन्ग्रेस के हटाए गए पेजों के मुकाबले कहीं अधिक फेमस और ऑडियंस वाले थे।
भाजपा के समर्थन में लिखने वाले ऐसे ही फेसबुक पेजों में से एक ‘चौपाल’ पेज था, जिसके कि वर्तमान में फेसबुक पर करीब 10.8 मिलियन ‘लाइक्स’ हैं। इन पेजों को फेसबुक द्वारा मिलने वाला पैसा भी स्थगित कर दिया गया था। ‘चौपाल’ पेज को 90 दिनों में फिर से ‘री-स्टोर’ कर दिए जाने का भी आश्वासन दिया गया था, लेकिन यह नहीं हुआ।
सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर विकास पाण्डेय ने ऑपइंडिया से बातचीत में बताया था कि कॉन्ग्रेस का समर्थन करने वाले जिन पेजों को बंद कर दिया गया था, वह भाजपा के बंद कर दिए गए पेजों की तुलना में बेहद छोटे और ख़ास फेमस भी नहीं थे। इसके अलावा, भाजपा समर्थक पेजों को बंद करने का कारण यह बताया गया कि इन्हें चलाने वाले पेज एडमिन की ‘प्रोफाइल फेक’ थी।
इसी तरह की घटना से ‘द फ्रस्ट्रेटेड इन्डियन’ (The Frustrated Indian) नाम के फेसबुक पेज को भी रूबरू होना पड़ा। IANS समाचार एजेंसी द्वारा प्रकाशित खबर को पब्लिश करने पर बूम लाइव द्वारा उसे फेक बता दिया गया। यह समाचार एजेंसी द्वारा प्रकाशित एक सिंडिकेट न्यूज़ थी। जब इस पेज के एडमिन ने फेसबुक से सम्पर्क करने की कोशिश की तो वह विफल रहा।
इसी तरह से नेशन वांट्स नमो (Nation Wants NaMo) नाम के एक पेज को आम चुनावों से ठीक पहले बिना किसी कारण और चेतावनी के ही हटा दिया गया था।
इसी तरह से ‘पॉलिटिकल कीड़ा’ नाम के पेज चलाने वाले अंकुर सिंह ने ऑपइंडिया को बताया कि फेसबुक की गाइडलाइन्स या तो स्पष्ट नहीं या फिर वह इसे बेहद अस्पष्ट रखते हैं ताकि मनमुताबिक पेजों को हटा दिया जाए। उनका कहना है कि उनके MEME और चुटकुले फैक्टचेक कर दिए जाते हैं। इसके साथ ही, ऐसे वीडियो, जो कॉन्ग्रेस पार्टी को निशाना बनाते हैं, उन्हें वायरल होने से पहले ही फेसबुक से हटा दिया जाता है।
अंकुर सिंह ने कहा कि पेजों को बिना किसी सूचना और जानकारी के विशेष तरीके से हटा दिया जाता है और जब कोई अपील की जाती है, तो उन्हें किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया देने के बजाए ऑटो-आंसर द्वारा जवाब दिया जाता है।
फेसबुक से ‘डोभाल फैन क्लब’, ‘आई सपोर्ट अजीत डोभाल ’, ‘आई सपोर्ट ज़ी न्यूज़’ जैसे बड़े फेन फ़ॉलोविंग वाले पेज, जिनके पास 4 मिलियन से लेकर 1 मिलियन तक की ऑडियंस थी, फेसबुक द्वारा सेंसर किए गए थे। भाजपा के समर्थक कई अन्य फेसबुक पेज हैं, जो इसी तरह के कुछ ‘हादसों’ का शिकार हुए हैं।
इन तमाम उदाहरणों के बावजूद वाम-उदारवादी वर्ग द्वारा लगाए जाने वाले आरोप शुरू से ही बेबुनियाद नजर आते हैं। यह भी सम्भव है कि फेसबुक ने अब इन लिबरल्स की शर्तों पर खरा उतरना बंद कर दिया हो, जिस कारण फेसबुक के खिलाफ यह प्रायोजित अभियान छेड़ा जा रहा है।