आजकल राहुल गाँधी को आपने हाथ में भारत का संविधान लिए हुए देखा होगा। लाल रंग की डायरी की तरह दिखने वाला ये भारत के संविधान का पॉकेट वर्जन है, जो 20 सेंटीमीटर लंबा और 9 सेंटीमीटर चौड़ा है। इस पर चमड़े का जिल्द चढ़ा हुआ है। राहुल गाँधी ने लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान अपनी रैलियों में भी मंच से संविधान की इस पुस्तक को दिखाया और लोगों को डराया कि भाजपा संविधान बदल देना चाहती है।
संविधान का कोट पॉकेट वर्जन, जिसे रखते हैं राहुल गाँधी
इसी तरह जब लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ ले रहे थे तब भी राहुल गाँधी ने उनकी तरफ संविधान की ये प्रति दिखाई। असल में ‘ईस्टर्न बुक कंपनी’ ने इस संविधान को 2009 में पहली बार प्रिंट किया था। ये संविधान का कोट पॉकेट संस्करण है। कंपनी के निदेशकों में से एक सुमित मलिक ने जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने की तरफ से इसका आईडिया आया था। उन्होंने कंपनी से कहा था कि वो संविधान की ऐसी पुस्तक प्रिंट करे, जो वकीलों के पॉकेट में आराम से समा जाए।
अब तक इसके 16 संस्करण छापे जा चुके हैं। राष्ट्रपति रहते रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी ये गिफ्ट में दिया जा चुका है। वकील और जज इसे खरीदते हैं। इसके लिए बाइबिल पेपर का इस्तेमाल किया गया जो काफी पतला होता है, सभी अनुच्छेदों को लाल रंग में रखा गया और टेक्स्ट को काले रंग में। पहले संस्करण में इसकी 500-600 प्रतियाँ बिकी थीं, 16वाँ संस्करण आते-आते इसकी 5000-6000 प्रतियाँ बिक रही हैं।
2022 में इसका 14वाँ संस्करण जारी किया गया था, जिसका मूल्य 745 रुपए था। भारत के अटॉर्नी जनरल रहे KK वेणुगोपाल ने इसकी प्रस्तावना लिखी थी। उन्होंने इसमें संविधान को भारत का भाग्य बताया है। दो भाइयों CL मलिक और PL मिल्क ने 1940 के दशक में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बस कर बुक पब्लिशिंग का फैसला लिया था। कॉन्ग्रेस के कई नेता-कार्यकर्ता अब इसे खरीद रहे हैं। कॉन्ग्रेस की ताज़ा रणनीति को देखें तो वो ‘संविधान संरक्षक’ के रूप में खुद को दिखाना चाहती है, ऐसे में इसकी बिक्री और बढ़नी तय है।
Senior advocate Gopal Sankaranarayanan recognized the Constitution of India as our most important document, yet largely unknown to many.
— India Wants To Know: India's First Panel Quiz Show (@IWTKQuiz) June 24, 2024
To boost awareness and spark interest, he authored the coat-pocket edition.
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आइए, अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन की। वही, जिनके आईडिया पर ये छपा था और आज राहुल गाँधी का फेवरिट बना हुआ है। 2 दशक से भी अधिक समय से वो कानून की प्रैक्टिस कर रहे हैं और पिछले 25 वर्षों में मान्यता प्राप्त करने वाले सबसे युवा वरिष्ठ अधिवक्ता है। प्रदूषण के खिलाफ भी वो सक्रिय रहे हैं, EWS को लेकर भी न्यायपालिका में साक़िया रहे हैं। 2015 में भारत में क्रिकेट प्रशासन और BCCI में बदलाव लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जिस लोढ़ा समिति का गठन किया था, उसके सचिव के रूप में उन्होंने काम किया था।
OBC आरक्षण के लाफ हैं वकील गोपाल शंकरनारायणन
आरक्षण को लेकर गोपाल शंकरनारायणन की क्या सोच है, ये जानना ज़रूरी है। साथ ही ये सवाल भी, कि क्या राहुल गाँधी इससे इत्तिफ़ाक़ रखते हैं? उन्होंने EWS आरक्षण को चुनौती दी थी। इस पर उनके विचार हैं कि किसी भी चीज का सिर्फ समर्थन या विरोध नहीं होता, बीच में भी कुछ होता है। उनका मानना है कि SC-ST के अलावा जाति आधारित आरक्षण का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है। वो कहते हैं कि संविधान के पहले संशोधन के बाद OBC आरक्षण जैसी चीजें आईं।
बकौल गोपाल शंकरनारायणन, ST और OBC समाज में भी एक छोटा सा अभिजात्य वर्ग है जो उन्हें मिले 98-99% आरक्षण का लाभ उठा रहा है। उनका कहना है कि राष्ट्रपति द्वारा मान्यता प्राप्त SC जातियों में 1200 ऐसी हैं जिन्हें कभी आरक्षण का लाभ मिला ही नहीं। असं में उन्हें दिक्कत इस बात से है कि EWS के कारण आरक्षण की सीमा 50% के पार चली जाती है। उन्होंने बताया कि EWS पर फैसला सुनाने वाले 5 जजों में सबकी अलग-अलग राय थी।
‘Law School Policy Review’ नामक वेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि संविधान की बहस से पहले भी महात्मा गाँधी और भीमराव आंबेडकर जैसे नेता दलितों के खिलाफ वर्षों से हो रहे भेदभाव की बात करते थे और सुझाया गया कि जिन्हें ‘अछूत’ कहा जाता था उनके लिए संविधान में विशेष उपाय करने की ज़रूरत है। उनका मानना है कि जैसे ही आरक्षण SC-ST के अलावा अन्य समुदायों के लिए आगे बढ़ाया गया, वैसे ही इसका उद्देश्य खत्म होने लगा।
अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा था, “सामाजिक रूप से मजबूत कई समुदायों को आरक्षण का लाभ मिलने लगा, जो उन्हें मिलना चाहिए था जिनके साथ इतिहास में भेदभाव हुआ। OBC समुदाय में बड़ी संख्या में ऐसे हैं, जिन्होंने दलितों के साथ भेदभाव किया। अब आप दोनों को लाभार्थियों की समान श्रेणी में डाल रहे हैं। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सत्ता में यही समुदाय हैं और सरकार में उनकी बड़ी भूमिका है। कई ऐसे समुदाय हैं जो OBC बनना चाहते हैं, जैसे कई OBC सब SC का दर्जा चाहते हैं।”
गोपाल शंकरनारायणन समझाते हैं कि प्रावधान होने के बावजूद राष्ट्रपति द्वारा मान्यता प्राप्त पिछड़ों की सूची में से अब तक एक भी जाति को हटाया नहीं गया है, जो बताता है कि आरक्षण के लाभार्थियों की संख्या बढ़ती ही गई है अब तक। उनका पूछना है कि आरक्षण का क्या यही उद्देश्य था कि अधिक से अधिक लोग पिछड़े हो जाएँ? वो जाती जनगणना या सरकारी दस्तावेजों में जाति के जिक्र के भी विरोधी हैं और कहते हैं कि लोगों से ये पूछा जाना चाहिए कि उनके पास घर है या नहीं, उसकी आर्थिक स्थिति क्या है।
सुप्रीम कोर्ट में भी आरक्षण में बदलाव पर लड़ाई
गोपाल शंकरनारायणन द्वारा दायर की गई याचिका के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में SC-ST में जो क्रीमीलेयर हैं, अर्थात जो संपन्न और शिक्षित हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ न दिया जाए? मार्च 2028 में ‘समता आंदोलन समिति’ व अन्य की याचिका पर ये सवाल किया गया था, याचिकाकर्ताओं के वकील गोपाल शंकरनारायणन ही थे। उनका मानना है कि आरक्षण में क्रीमीलेयर को हटा दिए जाने से गरीबों और पिछड़ों को इसका वास्तविक लाभ मिलेगा।
उन्होंने उस दौरान दलील दी थी कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति में जो सचमुच में पिछड़े एवं वंचित हैं, उन्हें ये पीड़ा हो रही है कि उनके ही समुदाय के उन्नत व समृद्ध वर्ग उन लाभों को उनसे छीन रहा है, जो वास्तव में उन तक पहुँचने चाहिए थे। गोपाल शंकरनारायणन मराठा आरक्षण के भी खिलाफ हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले एक्टिविस्ट जारांगे पाटिल मराठों और मुस्लिमों के लिए आरक्षण की माँग कर रहे हैं, इसके लिए धरना-प्रदर्शन और अनशन किए जा रहे हैं।
इसी साल अप्रैल में मराठा आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर गोपाल शंकरनारायणन ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय पहले ही निर्णय दे चुका है कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं जा सकती। गोपाल शंकरनारायणन के बारे में एक और बात बता दें कि राजीव गाँधी के हत्यारे AG पेरारिवलन की रिहाई सुनिश्चित करवाने के लिए भी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा के साथ उनकी झड़प भी हो चुकी है, जज ने उन पर अवमानना का मामला चलाने की चेतावनी दी थी, जिसका वकीलों के संघ ने विरोध किया था।
OBC-OBC का रट्टा मारते रहते हैं राहुल गाँधी
ये आश्चर्य की बात है कि OBC-OBC का रट्टा लगाने वाले राहुल गाँधी संविधान की वही पुस्तक लेकर घूम रहे हैं, जो एक ऐसे अधिवक्ता की संकल्पना है जो OBC आरक्षण के विरोधी हैं। राहुल गाँधी कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से पूछते हैं कि उनके प्रशासन में कितने OBC सचिव हैं। जबकि वो भूल जाते हैं कि पीएम मोदी खुद OBC समुदाय से आते हैं। मोदी मंत्रिमंडल में सबसे अधिक ओबीसी मंत्रियों की संख्या है। ओबीसी समाज के लिए कई योजनाएँ चल रही हैं।
राहुल गाँधी ये तक कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी OBC नहीं हैं, उन्होंने खुद गुजरात का CM बनने के बाद अपनी जाति को ओबीसी में शामिल किया। हालाँकि, सच ये है कि 1994 में ही इस संबंध में अधिसूचना जारी हुई थी जब कॉन्ग्रेस की ही सरकार थी। वहीं अप्रैल 2000 में भारत सरकार ने मोढ़ घांची समुदाय को OBC का दर्जा दिया। उस समय भी मोदी सीएम तक नहीं बने थे। इसके बावजूद कॉन्ग्रेस लगातार झूठ फैलाती रहती है।