नए कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान विरोध प्रदर्शन में कॉन्ग्रेस अपने राजनीतिक फायदे की ताक में है। कॉन्ग्रेस मोदी सरकार के खिलाफ लोगों को बरगलाने, उनके बीच मनमुटाव पैदा करने और संदेह के बीज बोने का भरपूर प्रयास कर रही है।
इस बीच कॉन्ग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गाँधी आज उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में किसान महापंचायत में पहुँची थी, जहाँ उन्होंने नए कृषि कानूनों को लेकर लोगों के भीतर डर फैलाने का काम किया।
प्रियंका गाँधी ने कहा, “1955 में जवाहरलाल नेहरू ने जमाखोरी के खिलाफ कानून बनाए थे। लेकिन इस कानून को भाजपा सरकार ने खत्म कर दिया है। अब इन नए कानूनों से सिर्फ ‘अरबपतियों’ को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा अब ये किसानों की उपज की कीमत खुद तय करेंगे।”
In 1955, Jawaharlal Nehru had made laws against hoarding. But this law has been scrapped by the BJP govt. This new law will help the ‘Arabpatis’. They will decide the price of farmers’ produce: Priyanka Gandhi Vadra, Congress, at Kisan Mahapanchayat in Saharanpur pic.twitter.com/qxVc9WueUe
— ANI UP (@ANINewsUP) February 10, 2021
वहीं अपने राजनीतिक फायदे को मद्देनजर रखते हुए प्रियंका ने आगे कहा, “कॉन्ग्रेस पार्टी सत्ता में आने पर नए कानूनों को खत्म कर देगी। तीन कृषि कानून राक्षस की तरह हैं। अगर सत्ता में वापसी के लिए उन्हें वोट दिया जाता है, तो कॉन्ग्रेस की सरकार के तहत कृषि कानूनों को रद्द किया जाएगा।”
एक तरफ जहाँ प्रियंका गाँधी वाड्रा अपने परदादा जवाहरलाल नेहरू के तारीफों की पुल बाँधने में जुटी थी, कि कैसे उन्होंने देश के हित में काम किया है, वहीं ऐसे समय पर उन बातों पर भी विचार करना महत्वपूर्ण है कि कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री और कॉन्ग्रेस के प्रमुख द्वारा लिए गए फैसले के चलते देश भर में एक जहरीले खरपतवार का प्रसार हुआ था।
स्वतंत्रता के बाद 1950 के दशक के दौरान भारत खाद्य सामग्री की कमी का सामना कर रहा था। इस संकट को कम करने के लिए उस समय केंद्र में कॉन्ग्रेस सरकार ने संयुक्त राज्य अमेरिका से गेहूँ आयात करने का फैसला किया था। बता दें, उस वक्त संयुक्त राज्य अमेरिका के पीएल 480 (शांति के लिए भोजन) कार्यक्रम के तहत खाद्य-अनाज प्राप्त किया गया था। लेकिन भारत को जो गेहूँ भेजा गया था वह काफी खराब गुणवत्ता का था, और इसे पार्थेनियम के बीज के साथ मिलाया गया था। जिस वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका के इस शिपमेंट से भारत में खतरनाक खरपतवार फैल गया।
पहली बार इसे पाँच दशक पहले पुणे में देखा गया था, हालाँकि यह अब भी अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाया जा सकता है। आरोप है कि जब पहली बार खरपतवार देखा गया, तब कॉन्ग्रेस की सरकार ने इसके प्रसार को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया था। जिस कारण लोगों ने खरपतवार को ‘कॉन्ग्रेस घास’ का नाम दे दिया था और इसे राष्ट्र को कॉन्ग्रेस सरकार की तरफ से तोहफा माना।
बता दें, जहरीला और आक्रामक पार्थेनियम, जिसे आमतौर पर ‘कॉन्ग्रेस घास’ या ‘गाजर घास’ के रूप में जाना जाता है, को दुनिया के कई हिस्सों में उपद्रव के रूप भी जाना जाता है। त्वचा और श्वसन रोगों वाला यह जहरीली खरपतवार हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सहित कई भारतीय राज्यों में पहले कहर बन चुका है।
गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस घास गाँवों में सड़कों के किनारे बहुत तेजी से बढ़ती है, जोकि कई अन्य वनस्पतियों को समाप्त कर देता है। खरपतवार उन जगहों पर भी पनपने में कामयाब रहे, जहाँ खरपतवारों की अन्य प्रजातियाँ नहीं बची हैं। यहाँ तक कि मवेशी भी उनसे दूर रहते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, खरपतवार को हाथों हाथ बढ़ने से पहले ही हटाना पड़ता है ताकि वह और अधिक न फैले। यह प्रजाति मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों के लिए भी काफी हानिकारक है।
वहीं अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है तो थोड़े समय के भीतर ही यह घास आसपास के सारे जगहों को घेरकर वहाँ फैल सकती है। इसका पौधा लगभग 5-6 फीट की ऊँचाई तक बढ़ता है और 5,000-10,000 बीजों का उत्पादन कर सकता है। इसके बीज काफी हल्के होते है, जो हवा, बारिश, मानव और मवेशियों की मदद से दूर-दूर तक फैल सकते हैं, जिससे हर जगह आसानी से फैल जाता है।