बिहार में लालू यादव का ‘माई समीकरण (MY)’ बहुचर्चित रहा है, जिसके तहत वो मुस्लिमों और यादवों का गठबंधन बना कर जीत का चक्रव्यूह रचा करते थे। दोनों ही समुदाय बिहार की आबादी में सबसे बड़े समुदाय हैं। जहाँ हिन्दुओं में सबसे बड़ी जनसंख्या यादवों की है, वहीं अल्पसंख्यकों में मुस्लिमों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन, इन सबके बावजूद उन्होंने भागलपुर दंगा मामले में कामेश्वर यादव को कैसे बचाया, इसकी चर्चा ज़रूरी है।
‘आप दंगा फैलाने वाली यात्रा रोक दीजिए। अगर आप ये यात्रा करेंगे तो हम आपको छोड़ेंगे नहीं क्योंकि बड़ी मुश्किल से हमने भाईचारा कायम किया है बिहार में।‘ – राम रथयात्रा से पहले लालू यादव ने दिल्ली में में लालकृष्ण आडवाणी से मिल कर ये बातें कही थीं। खैर, यात्रा हुई और कहीं मुलायम सारा लाइमलाइट न लूट ले जाएँ, इसीलिए लालू यादव ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। लालू यादव ने भागलपुर दंगा से उबरे समाज में खुद को शांति का मसीहा कह कर प्रचारित किया।
1989 में भागलपुर में हुए सांप्रदायिक दंगे उस समय स्वतंत्र भारत में सबसे बड़े दंगे थे क्योंकि इसमें 1000 से भी अधिक लोगों की मौत हो गई थी। उसी साल अक्टूबर 24 को रामशिला यात्रा जा रही थी, जिसे मुस्लिमों ने अपने मोहल्ले से गुजरने से मना कर दिया था। डीएम दोनों समुदायों को समझाने-बुझाने में लगे हुए थे, तभी हिन्दू काफिले पर मुस्लिमों की तरफ से हमला कर दिया गया। इस वारदात ने दंगे में ‘आग में घी’ का काम किया।
कहते हैं, इस दंगे के बाद बिहार राजनीति में बड़ा बदलाव आया था। कॉन्ग्रेस तब असमंजस की स्थिति में जी रही थी क्योंकि शाहबानों प्रकरण में उसकी जम कर किरकिरी हुई थी। तब उसे सवर्णों के साथ-साथ समुदाय विशेष के भी वोट्स मिला करते थे। तब जनता दल में रहे लालू यादव ने मुस्लिमों के लिए जम कर सहानुभूति जताई। उन्होंने उनकी लड़ाई लड़ने की बातें की। लेकिन, उनका मुख्य मकसद यादव वोट बैंक को साधना था।
कामेश्वर यादव के अलावा कई ऐसे आरोप थे, जो यादव थे। ऐसे में अगर उनके खिलाफ लालू यादव की सरकार कोई भी कार्रवाई करती तो उनका यादव वोट बैंक चला जाता, इसीलिए इसके कुछ ही महीनों बाद मुख्यमंत्री बनने वाले लालू यादव ने भी आरोपितों पर कोई कार्रवाई नहीं होने दी। जस्टिस आरएन प्रसाद की जाँच रिपोर्ट लालू के लिए वरदान बन कर सामने आई। उसमें पुलिस को क्लीन-चिट देते हुए मुस्लिमों को ही किसी न किसी रूप में दोषी बताया गया था।
लालू यादव ने मुस्लिमों के वोट बैंक के लिए बाद में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया। साथ ही, राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा का विरोध कर के भी इस वोट बैंक को साधा। उन्हें जम कर भाजपा का डर दिखाया। इससे वो मुस्लिमों के मसीहा भी बने रहे और यादवों का वोट भी उन्हें मिलता रहा। भागलपुर दंगा मामले में आरोपितों पर कार्रवाई भी नहीं की और वो मुस्लिमों के रहनुमा भी बने रहे, आज भी ये वोट बैंक उनका ही माना जाता है।
विडंबना देखिए कि जब 2015 में नीतीश कुमार ने जस्टिस एनएन सिंह की जाँच समिति की रिपोर्ट विधानसभा में रखी, तो इसमें तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार को दोषी माना गया, जिसके मुखिया सत्येन्द्र नारायण सिंह हुआ करते थे। और जब ये रिपोर्ट आई, जब नीतीश कुमार के साथ कॉन्ग्रेस बिहार में सत्ता कि मलाई चाभ रही थी। वो राजद भी उनके साथ थी, जिसने दोनों तरफ से वोट लूटे थे लेकिन साथ अंत में अपनी जाति का दिया।
वहीं, जब राजग सरकार आई तो इस मामले में जाँच हुई और कार्रवाई हुई। ये इसीलिए संभव हो सका, क्योंकि उस सरकार ने जात-पात देखे बिना ही कार्रवाई की। उसने सरनेम नहीं देखा। भले ही बाद में नीतीश कुमार के कई यू-टर्न्स के कारण ये मुद्दा फिर उलझ गया, लेकिन राजग सरकार ने लालू यादव ने ब्लन्डरों को सही करने का प्रयास किया। फिर भी भाजपा पर ही सांप्रदायिक होने के आरोप लगाए जाते हैं।
एक समय जिस कामेश्वर यादव की सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए तारीफ हुई थी, उसे ही भागलपुर दंगों का मुख्य आरोपित बनाया गया था। इस मामले में कुल 27 मुकदमे दायर किए गए थे। इस दंगे के बाद भाजपा को भी लोगों ने एक विकल्प में देखना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें इस्लामी कट्टरवाद से डर लगने लगा था। नीतीश कुमार और भाजपा 2005 में सत्ता में आए, जिसके बाद इन दंगों की फ़ाइलें फिर से खोली गई थीं।
Kameshwar Yadav main accused of Bhagalpur riots was not only acquitted from all 5 cases but was also honoured by DGP in RJD ‘s rule.
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) August 7, 2015
लेकिन, फरवरी 2006 में गठित की गई टीम की रिपोर्ट 2015 में तब आई, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे और लालू यादव व नीतीश कुमार की पार्टी कॉन्ग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ने वाली थी और दूसरी तरफ भाजपा ने जीतन राम माँझी की ‘हम’ और रामविलास पासवान की लोजपा के साथ गठबंधन किया था। भागलपुर में हुए दंगों में 200 से भी अधिक गाँव इसके लपेटे में या गए थे। सरकार ने इसकी रिपोर्ट विधानसभा सत्र के ठीक आखिरी दिन पेश किया।
जबकि ये फरवरी 2015 में ही सरकार को सौंप दी गई थी। जाहिर है कि तीनों पार्टियाँ मुस्लिमों के वोट बैंक के लिए चुनाव का इंतजार कर रही थीं और उन्होंने भाजपा के खिलाफ जो डर मुस्लिमों के मन में बिठाया था, उसे इस रिपोर्ट के माध्यम से और मजबूत करने में आसानी हुई। भले ही इसके लिए कॉन्ग्रेस को अपनी ही सरकार को गाली क्यों न देनी पड़े। खैर, उस चुनाव में उन्हें जम कर वोट मिले थे और भाजपा चारों खाने चित हो गई थी।
कामेश्वर यादव को लालू यादव की सरकार के दौरान तो बरी कर दिया गया था लेकिन उन पर फिर से नकेल कसनी शुरू हो गई। कामेश्वर यादव पर असानंनपुर के मोहम्मद कयूम की हत्या कर लाश गायब करने का आरोप कयूम के पिता नसीरुद्दीन ने लगाया था और मामला दर्ज कराया गया था। हिन्दू महासभा से बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके कामेश्वर यादव ने जुलाई 2017 में जेल से निकलते ही भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद जताई थी।
पतबत्ती निवासी कामेश्वर यादव की अच्छी-खासी फैन-फॉलोइंग है और जेल से निकलने के बाद समर्थकों का इतना बड़ा हुजूम उमड़ आया था कि पुलिस ने उन्हें जेल से घर तक पहुँचाया था। पटना उच्च-न्यायालय ने अंततः उन्हें रिहा कर दिया। लेकिन, लालू यादव ने भी उन्हें अपने 15 साल के शासन में बचाने की जम कर कोशिश की। उन्होंने कहा था कि रिहाई के रूप में ईश्वर का वरदान मिला और उन्हें बचपन से ईश्वर पर भरोसा था।
बाद में रंजन यादव और पप्पू यादव जैसों की बगावत के बाद लालू की पकड़ यादव वोट बैंक में कमजोर जरूर पड़ी लेकिन मुस्लिमों के वो एकमात्र मसीहा बने रहे क्योंकि उन्हें बार-बार ये डर दिखाया कि भाजपा या जाएगी तो उनका क्या होगा? हालाँकि, नीतीश-भाजपा के काल में ऐसा कोई दंगा नहीं हुआ। फिर भी, लालू यादव के दोनों बेटे आज उसी MY समीकरण के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जगत भिड़ा रहे हैं।
भागलपुर दंगा मामले में कामेश्वर यादव को बचाने वाले लालू आज जेल में हैं और चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं। कामेश्वर यादव भी रिहा होकर अपने घर में हैं लेकिन भागलपुर आज भी संवेदनशील बना हुआ है, लालू यादव के 15 साल के शासन की बदौलत। वहाँ लोकसभा में पिछले 7 में से 4 चुनावों में भाजपा को जीत मिली है और 1 बार राजद व 1 बार सीपीएम की जीत हुई है। 2019 में ये सीट जदयू ने जीती, तो इस हिसाब से 7 में से 5 बार राजग यहाँ से जीता है।
जहाँ तक भागलपुर विधानसभा क्षेत्र की बात है, ये जनसंघ का पुराना गढ़ रहा है। यहाँ हुए अब तक कुल 15 चुनावों में से 8 बार जनसंघ या भाजपा ने जीत दर्ज की है। हालाँकि, अश्विनी कुमार चौबे के सांसद व केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद से ये सीट भाजपा के हाथ से फिसल गई और कॉन्ग्रेस के हाथों में चली गई। मौजूदा विधायक कारोबारी अजीत शर्मा बॉलीवुड अभिनेत्रियों नेहा शर्मा और आयशा शर्मा के पिता हैं। दोनों बहनें चुनावों में अपने पिता का खूब प्रचार करती हैं।