Sunday, November 17, 2024
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‘भैंसा काटा जा सकता है तो गाय क्यों नहीं?’: कर्नाटक में ‘गोवध’ बैन होने पर कॉन्ग्रेसी मंत्री वेंकटेंश ने उठाए सवाल, बोले- गोहत्या हो या नहीं, हम फैसला लेंगे

राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार बनते ही मानवाधिकार के नाम पर भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने अपनी तीन प्रमुख माँगें रखी थीं। उसने कहा था कि कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध, धर्मांतरण विरोधी कानून और गोवध कानून का सरकार समीक्षा करेगी।

कर्नाटक के पशुपालन मंत्री के वेंकटेश ने शनिवार (4 जून 2023) को कहा कि जब भैंसों को काटा जा सकता है तो गाय को क्यों नहीं काटा जा सकता। अपने बयान के माध्यम से उन्होंने संकेत दिया कि कॉन्ग्रेस सरकार (Congress Government) भाजपा सरकार द्वारा राज्य में लागू किए गए गोहत्या विरोधी कानून की समीक्षा करेगी।

वेंकटेश ने कहा कि सरकार इस कानून के संबंध में चर्चा करेगी और फिर फैसला लेगी। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार एक विधेयक लाई थी, जिसमें उसने भैंस और भैंसा का वध करने की अनुमति दी थी, लेकिन कहा था कि गोहत्या नहीं होनी चाहिए। भाजपा ने सरकार ने इसके सजा को भी कड़ा कर दिया था।

कर्नाटक के पशुपालन मंत्री ने कहा, “जब भैंस और भैंसा का वध किया जा सकता है तो गायों का क्यों नहीं? यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है। हम चर्चा करेंगे और फैसला लेंगे। इस सिलसिले में अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है।”

वेंकटेश ने कहा कि बूढ़ी गायों की देखभाल करने और उनकी मौत होने पर उन्हें दफनाने में किसानों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि हाल में उनके फार्म हाउस में एक गाय की मौत हो गई। उस मृत गाय को दफनाने के लिए उन्हें जेसीबी की मदद लेनी पड़ी थी।

दरअसल, भाजपा सरकार ने कर्नाटक पशु वध रोकथाम एवं संरक्षण अधिनियम को 2021 में लागू किया था। यह अधिनियम राज्य में पशुओं की वध पर प्रतिबंध लगाता है। केवल बीमार मवेशियों और 13 साल से अधिक उम्र की भैंसों के वध की ही अनुमति दी गई। इस कानून का कॉन्ग्रेस विरोध करती रही है।

इससे पहले 25 मई 2023 को कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और कर्नाटक सरकार में राज्यमंत्री प्रियांक खड़गे ने भी कहा था कि राज्य मे हिजाब पर प्रतिबंध, गोवध प्रतिबंध और धर्मांतरण कानून सहित अन्य मामलों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।

कर्नाटक के सिद्धारमैया सरकार में राज्यमंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा था, “हम अपने रुख को लेकर बहुत स्पष्ट हैं। हम ऐसे किसी भी कार्यकारी आदेश की समीक्षा करेंगे, हम किसी भी विधेयक की समीक्षा करेंगे जो कर्नाटक की आर्थिक नीतियों के प्रतिकूल है। जो राज्य की खराब छवि प्रस्तुत करता है।”

उन्होंने आगे कहा था, “कोई भी विधेयक जो आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, कोई भी विधेयक जो रोजगार पैदा नहीं करता है, कोई भी विधेयक जो किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है, कोई भी विधेयक जो असंवैधानिक है उसकी समीक्षा की जाएगी और यदि आवश्यक हुआ तो उसे रद्द किया जाएगा।”

राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार बनते ही मानवाधिकार के नाम पर भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने अपनी तीन प्रमुख माँगें रखी थीं। उसने कहा था कि कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध, धर्मांतरण विरोधी कानून और गोवध कानून का सरकार समीक्षा करेगी।

एमनेस्टी इंडिया ने अपनी पहली माँग में शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के हिजाब पहनने पर लगे प्रतिबंध को हटाने को कहा। उसने कहा, “यह प्रतिबंध मुस्लिम लड़कियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार के बीच चयन करने के लिए मजबूर करता है। इससे समाज में सार्थक रूप से भाग लेने की उनकी क्षमता बाधित होती है।”

अपनी दूसरी माँग में पशु क्रूरता (रोकथाम) अधिनियम 2020 और कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण विधेयक 2022 के प्रावधानों की समीक्षा करने और उन्हें निरस्त करने के लिए कहा। दूसरे शब्दों में, एमनेस्टी इंडिया ने कर्नाटक में गोहत्या की अनुमति और हिंदू विरोधी ताकतों को राज्य में धर्मांतरण रैकेट (लव जिहाद) चलाने की माँग की है।

एमनेस्टी इंडिया ने अपने ट्वीट में आगे कहा कि गोवध और धर्मांतरण पर बने कानून का दुरुपयोग हो सकता है और इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, एमनेस्टी इंडिया ने मुस्लिम विक्रेताओं का बहिष्कार करने वाले हिंदुओं के खिलाफ कार्रवाई का आह्वान किया।

अपनी तीसरी माँग को लेकर एमनेस्टी ने कहा, “राज्य में चुनावों से पहले मुस्लिम के आर्थिक बहिष्कार और उनके खिलाफ हिंसा का आह्वान किया गया था। धर्म-जाति आधारित भेदभाव से प्रेरित घृणा और घृणित अपराधों को समाप्त करने के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करें।” दिलचस्प बात यह है कि ऐसी कई रिपोर्ट आई हैं, जिनमें मुस्लिमों ने हिंदू व्यवसायों का बहिष्कार करने का आह्वान किया है, लेकिन एमनेस्टी ने इसे कभी भी घृणित नहीं कहा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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