भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब भाजपा कॉन्ग्रेस से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2019 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अहम है और ये पिछले सारे चुनावों से अलग भी है। जहाँ पहले कॉन्ग्रेस का ही चारो तरफ़ दबदबा होता था और दक्षिण से लेकर उत्तर-पूर्व तक कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन के लिए क्षेत्रीय दल बेचैन रहते थे, वहीं अब पार्टी को गठबंधन में सीटें ही नहीं दी जा रही है। यूपी में कॉन्ग्रेस को महागठबंधन से निकाल बाहर किया गया और बिहार में काफ़ी मशक्कत के बाद जूनियर पार्टनर के रूप में रखा गया। इसके विपरीत भाजपा को हर राज्य में सहयोगी मिले हैं और पहले के दिनों में विरोधियों ने उस पर जो ‘अछूत’ का ठप्पा लगाया था, वो अब हट गया है। नरेंद्र मोदी को 2014 में मिले स्पष्ट जनादेश ने सब कुछ बदल कर रख दिया है।
भारतीय जनता पार्टी आज दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी बन गई है। भाजपा द्वारा इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारना पार्टी की बढ़ती पहुँच, स्वीकार्यता और प्रभाव का परिणाम है, तो कॉन्ग्रेस का कम सीटों पर चुनाव लड़ना यह बताता है कि पार्टी में अब पुराना दम-खम नहीं रहा। अभी तक घोषित हुई उम्मीदवारों की सूची पर गौर करें, तो भाजपा ने अब तक 437 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है, जबकि कॉन्ग्रेस ने 423 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी की है। चूँकि अब इक्के-दुक्के सीटों पर ही उम्मीदवारों के नामों का ऐलान बाकी है, ये तय हो गया है कि भाजपा इस बार कॉन्ग्रेस से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
https://platform.twitter.com/widgets.jsA first: BJP to contest more seats than Congress in 2019
— Milind Khandekar (@milindkhandekar) April 24, 2019
Year BJP Congress
2019 437 423
2014 428 464
2009 433 440https://t.co/3MPlYa0Gox via @timesofindia
हमेशा से कॉन्ग्रेस को पैन-इंडिया पार्टी माना जाता रहा है और जनसंघ से निकली भाजपा को राष्ट्रीय स्तर का पार्टी नहीं समझा जाता था। 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी की जीत के बावजूद दक्षिण भारत, बंगाल और उत्तर-पूर्व में पार्टी की स्थिति कमज़ोर होने के कारण इसे काऊ बेल्ट या हिंदी बेल्ट की पार्टी कहकर चिढ़ाया गया। आज स्थिति ये है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के ग्रोथ रेट ने सबको मात दे दी है और उत्तर-पूर्व की सभी राज्यों से कॉन्ग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में भी भाजपा सफल हुई है। तमिलनाडु में सत्ताधारी पार्टी अन्नाद्रमुक के रूप में दक्षिण भारत में एक अहम सहयोगी मिला है।
हिंदी बेल्ट में भाजपा पहले से कहीं और मज़बूत होकर उभरी है। कॉन्ग्रेस के नेताओं का कहना है कि भाजपा के कई सहयोगी दल अलग हो गए हैं। देखा जाए, तो कश्मीर में पीडीपी और आंध्र में टीडीपी ऐसी अहम पार्टियाँ रहीं जिन्होंने राजग गठबंधन से किनारा किया, लेकिन बिहार में जदयू और महारष्ट्र में शिवसेना जैसे पुराने सहयोगियों के वापस आ जाने या साथ बनाए रहने से भाजपा को मज़बूती मिली है। 1999 में भाजपा ने 339 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें 182 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, 2004 में भाजपा ने 364 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस दौरान कॉन्ग्रेस ने 414 सीटों पर चुनाव लड़ भाजपा को पीछे छोड़ दिया था।
2014 के पिछले आम चुनाव में भी भाजपा ने कॉन्ग्रेस से कम सीटों पर ही चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में भाजपा ने 428 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जबकि कॉन्ग्रेस ने 464 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 2009 में दोनों दलों के उम्मीदवारों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं था। उस वक़्त भाजपा ने 433 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, तो कॉन्ग्रेस ने 440 उम्मीदवारों को टिकट दिया था।