Friday, November 15, 2024
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जिसका भाई था Pak की बड़ी हस्ती, उसे न सिर्फ CJI बनाया बल्कि उपराष्ट्रपति भी: इंदिरा गाँधी के शासन की कहानी

हिदायतुल्लाह इंदिरा गाँधी के प्रिय थे। जिस समय उन्हें बतौर उपराष्ट्रपति चुना गया, उस समय इंदिरा गाँधी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। चूँकि वो इंदिरा के नामित व्यक्ति थे इसलिए कॉन्ग्रेस (I) के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया था कि अगर हिदायतुल्ला के नामांकन का विरोध किया गया तो...

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किए जाने पर बुद्धिजीवियों में हलचल है। सोशल मीडिया के हर कोने पर पूर्व सीजेआई द्वारा लिए फैसलों को उनके राज्यसभा के टिकेट से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन इस बीच ध्यान रहे कि रंजन गोगोई पहले पूर्व सीजेआई नहीं हैं जिनका नाम राज्यसभा के लिए भेजा गया हो। इससे पहले भी कुछ मुख्य न्यायाधीशों का नाम इस सूची में रह चुका है, जिन्हें राज्यसभा तक पहुँचाने का काम कॉन्ग्रेस ने किया। मगर, एक नाम इस लिस्ट में भारत के 11वें सीजेआई मोहम्मद हिदायतुल्लाह का भी है, जो कॉन्ग्रेस के कारण सीधे उपराष्ट्रपति बना दिए गए।

हिदायतुल्लाह 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 के बीच देश के 11 वें मुख्य न्यायाधीश रहे। उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने की थी। मगर, 4 मई 1969 को राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन का निधन हो गया। इसके तुरंत बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री वराहगिरि वेंकट गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया जैसा कि संविधान में पहले से उल्लेखित था। मगर, इसके बाद श्री गिरि ने राष्ट्रपति बनने की इच्छा जाहिर की और इस पद के लिए चुनाव भी लड़ने की बात कही। लेकिन वो कार्यवाहक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का पद त्याग कर ही ऐसा कर सकते थे।

बस फिर क्या… यहीं से राजनैतिक परेशानियाँ शुरू हुईं। चूँकि संविधान में उस समय तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की गैर मौज़ूदगी में देश का संवैधानिक प्रधान कौन होगा। इसके लिए काफ़ी विचार विमर्श किया गया और संविधान विशेषज्ञों की राय ली गई। तब 28 मई 1969 को संविधान का एक विशेष सत्र बुलाया गया, जिसमें संविधान के अधिनियम 16 में ये प्रावधान बनाया गया कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश देश का सर्वोच्च कार्यवाहक संवैधानिक प्रमुख होगा। लेकिन अगर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश का पद भी रिक्त हो जाए तो सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को सर्वसम्मति से कार्यवाहक संवैधानिक प्रमुख बनाया जाएगा।

इसके बाद 20 जुलाई 1969 को वेंकट गिरि ने 12 बजे दोपहर से पहले ही कार्यवाहक राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ दे दिया क्योंकि उनका कार्यकाल उस दिन प्रातः 10 बजे पूर्ण हो रहा था। इसके बाद मोहम्मद हिदायतुल्लाह को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। इसके लिए पद और गोपनीयता की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश “श्री जेसी सह” ने दिलाई।

हिदायतुल्लाह 24 अगस्त 1969 तक यानी कुल 35 दिनों तक इस पद पर रहे, जब तक अगले राष्ट्रपति निर्वाचित नहीं हो गए। और इस तरह एक सीजेआई को भारत के पहले कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ।

लेकिन इसके बाद भी हिदायतुल्लाह के जीवन में उपाधियाँ दर्ज करने का दौर थमा नहीं। कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद त्यागने के लगभग 10 सालों बाद उन्हें 31 अगस्त 1979 को सर्वसम्मति से उपराष्ट्रपति पद के लिए चुन लिया गया और उन्होंने उपराष्ट्रपति रहते हुए अपने 6 साल का कार्यकाल पूर्ण किया और उन्होंने राज्यसभा के सभापति की ज़िम्मेदारी भी निभाई।

बताया जाता है कि मोहम्मद हिदायतउल्लाह इंदिरा गाँधी के प्रिय थे। जिस समय उन्हें बतौर उपराष्ट्रपति चुना गया, उस समय भी इंदिरा गाँधी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

वैसे तो हिदायतुल्लाह सभी प्रमुख दलों के एकमात्र सर्वसम्मत उम्मीदवार थे, और उनके नाम का समर्थन प्रधानमंत्री चरण सिंह, विपक्ष के नेता जगजीवन राम और अन्य नेताओं ने किया था, जिनमें वाईबी चव्हाण, एचएन बहुगुणा और कमलापति त्रिपाठी भी शामिल थे। लेकिन मुख्य रूप से वे इंदिरा गाँधी के नामांकित व्यक्ति थे और कॉन्ग्रेस (आई) के नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर वे हिदायतुल्ला के नामांकन का विरोध करते, तो वे जनता (एस) का समर्थन नहीं करेंगे। अब जाहिर है इसके बाद उनके उपराष्ट्रपति बनने का किसी ने विरोध नहीं किया और वे सीधे भारत के उपराष्ट्रपति चुने गए।

इस दौरान वे जामिया मिलिया, दिल्ली और पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। 31 अगस्त 1984 को उन्होंने उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद वो बम्बई रवाना हुए। उनकी रवानगी में स्टेशन पर विदाई देने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी समेत पीवी नरसिम्हा राव और आर वेंकटरमण मौजूद थे।

यहाँ बता दें कि हिदायतुल्लाह के पिता हाफ़िज विलायतुल्लाह 1928 में भाण्डरा से डिप्टी कमिश्नर एवं डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। सरकारी सेवा में रहते हुए ब्रिटिश सरकार ने श्री हिदायतुल्लाह के पिता को ख़ान बहादुर की उपाधि, केसरी हिन्द पदक, भारतीय सेवा सम्मान और सेंट जोंस एम्बुलेंस का बैज प्रदान किया था।

एक कहानी और भी! हिदायतुल्लाह के भाई थे मोहम्मद इकरामुल्लाह। बँटवारे के समय वो पाकिस्तान चले गए। वह एक प्रमुख पाकिस्तानी राजनयिक थे। इकरामुल्लाह की पत्नी थी शाइस्ता सुहरावर्दी। शाइस्ता हुसैन शहीद सुहरावर्दी की भतीजी थीं। और हुसैन शहीद सुहरावर्दी कौन थे? वो अविभाजित पाकिस्तान के कुछ समय के प्रधानमंत्री थे। वैसे शाइस्ता खुद पहली पाकिस्तानी संविधान सभा की सदस्य भी थीं।

गौरतलब है कि ये कहानी मोहम्मद हिदायतुल्लाह की थी। जिनके न्यायाधीश बनने के बाद कभी परिस्थितियों ने देश के उच्च पद पर आसित करवाया, तो कभी इंदिरा गाँधी के समर्थन ने। मगर, इससे पहले और भी सीजेआई रहे जिन्हें कॉन्ग्रेस के समर्थन से राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। वर्ष 1998 से 2004 तक कॉन्ग्रेस ने रंगनाथ मिश्रा को राज्यसभा के लिए नामित कराया था। वे देश के 21वें मुख्य न्यायाधीश थे। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बहरूल इस्लाम भी 1962 और 1968 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर राज्यसभा सांसद चुने गए थे। लेकिन आज जब पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए तो कॉन्ग्रेस उन पर तंज कस रही है, कटाक्ष कर रही है और ये दावा कर रही है कि राज्यसभा के लिए पूर्व सीजेआई गोगोई को मनोनीत किए जाने पर न्यायपालिका से जनता का विश्वास कम होता जा रहा है।

वकील➨राज्यसभा➨HC जज➨रिटायर➨SC जज➨राज्यसभा: बहरुल इस्लाम और कॉन्ग्रेसी काल की कहानी

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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