अब तक देश के पाँच सबसे बड़े कोरोना हॉटस्पॉट में से एक रहे इंदौर से आखिरकार अच्छी खबरें आ रही हैं। जिला प्रशासन द्वारा सख्ती से लागू किए गए लॉकडाउन और घर-घर की जा रही स्क्रीनिंग का असर यह हुआ है कि इंदौर का नाम शीर्ष पाँच की सूची से बाहर हो गया है। मरीजों को ठीक करके घर भेजने का औसत देशभर से बेहतर चल रहा है और जाँच में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या का साप्ताहिक औसत प्रतिशत 20 से घटकर 11% तक रह गया है।
इंदौर में कोरोना की असली कहानी मार्च के पहले सप्ताह से ही शुरू हो गई थी, जब उमराह (हज़) से आने वाले यात्रियों की वापसी सबसे ज्यादा हो रही थी। फरवरी माह के अंत और मार्च के पहले सप्ताह में दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट पर उतरे इंदौर के हजयात्री जब डोमेस्टिक फ्लाइट्स से इंदौर पहुँचे तो उनमें से ज्यादातर को तो शायद पता भी नहीं था कि वे अपने साथ कोरोना ले आए हैं।
इंदौर हवाई अड्डे पर आने वाली अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स की स्क्रीनिंग तो सरकार के निर्देश के बाद शुरू हो गई थी, लेकिन इसके पहले बड़ी संख्या में हज यात्री संक्रमण लेकर इंदौर के खजराना, नयापुरा, रानीपुरा, चंदन नगर और टाटपट्टी बाखल में दाखिल हो चुके थे।
मुस्लिमों का उपद्रव और कमलनाथ सरकार की बेचारगी
अगर मरीजों की सूची पर नज़र डालें तो सूची में सिर्फ मुस्लिम समुदाय के मरीजों का प्रतिशत ही 70% से अधिक पाया गया है। 23 मार्च की रात तक प्रदेश में काम कर रहे कॉन्ग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस बीमारी को रोकने के लिए क्या किया, इसका जवाब न तो वे न ही उनकी पार्टी आज तक दे पाई है। मार्च के पहले सप्ताह में उन्होंने सिर्फ जिला कलेक्टरों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की, मार्च के मध्य में स्कूल-कॉलेज-मॉल बंद करवाए। अल्पमत में आ चुकी अपनी सरकार को बचाने के लिए कोरोना का हवाला दे विधानसभा का सत्र भी स्थगित करवा दिया।
प्रबंधन में माहिर कमलनाथ की सरकार ने 23 मार्च की रात तक के अपने कार्यकाल में एक भी टेस्टिंग किट, पीपीई किट ऑर्डर नहीं किया था और न ही कोविड अस्पताल अथवा क्वारंटाइन सेंटर ही तैयार करवाए। पिछली सरकार की कुल जमा उपलब्धि बस यहीं तक सीमित है।
कॉन्ग्रेस सरकार के समय इंदौर का जिला प्रशासन तो और भी आगे निकला। 22 मार्च को एक दिन के जनता कर्फ्यू के बाद लोग सड़कों पर उतर आए। उन्हें रोकने के लिए तत्कालीन कलेक्टर और पुलिस कप्तान (डीआईजी) ने कोई प्रयास नहीं किए।
23 मार्च की रात 9 बजे शपथ लेने के तुरंत बाद भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसी रात 10 बजे प्रदेश में कोरोना संकट को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों की मीटिंग की और हर जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए। कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान पोस्टिंग पाए कलेक्टर लोकेश जाटव की मन:स्थिति क्या थी इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब देशभर में कर्फ्यू और लॉकडाउन का सख्ती से पालन करवाए जाने की बात हो रही थी, तब कलेक्टर जाटव ने कर्फ्यू तो लगाया, लेकिन सात घंटों की छूट के साथ।
इंदौर के चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो यह वह समय था जब सबसे ज्यादा सख्ती की जरूरत थी, लेकिन तब सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक की कर्फ्यू ढील देकर लॉकडाउन का मज़ाक उड़ा दिया गया। अंतत: पाँच दिन बाद भाजपा सरकार को सख्त फैसला लेना पड़ा और पूर्व में नगर निगम कमिश्नर रह चुके मनीष सिंह को कलेक्टर तथा पुलिस कप्तान के तौर पर हरिनारायणा चारी मिश्रा को इंदौर की जिम्मेदारी दी गई।
दोनों ने इंदौर आते ही सबसे पहले कर्फ्यू में छूट को खत्म किया और सख्ती से लॉकडाउन का पालन करवाना शुरू किया। साथ ही लोगों को परेशानी न हो इसलिए नगर निगम के माध्यम से राशन और किराना घर-घर पहुँचाने की व्यवस्था शुरू की। बिना डंडे चलाए की गई इस सख्ती का ही असर यह हुआ है कि जिस टाटपट्टी बाखल में सर्वे करने पहुँची डॉक्टरों की टीम पर हमला किया गया था, बाद में उसी इलाके में कोरोना के 37 मरीज निकले और प्रशासन ने उनमें से 34 मरीजों को ठीक कर घर भेज दिया। वर्तमान में इस इलाके से जिन 92 मरीजों को क्वारंटाइन किया गया था, वे सभी के सभी ठीक होकर घर जा चुके हैं।
वहीं, इसके उलट कॉन्ग्रेस अभी भी समाधान के बजाए शासन-प्रशासन की मुश्किलें बढ़ाने का ही काम कर रही हैं। कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान में तो कॉन्ग्रेस ने और भी बड़ा कारनामा यह कर दिखाया कि एक ओर अपनी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी की हाँ में हाँ मिलाई और दूसरी तरफ श्रमिकों को घर भेजने के बदले उनसे रेल का किराया भी वसूल लिया। यही नहीं, इस बात की पोल खुलने से पहले दावा किया गया था कि राजस्थान की राज्य सरकार इन श्रमिकों को अपने खर्चे से घर भेजने का प्रबंध कर रही है।