इतिहास कि किताबों में ये किस्सा अक्सर पढ़ने में आता है कि कैसे शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मारा था। ये घटना 10 नवंबर, 1659 की है। ये वो दौर था जब छत्रपति शिवाजी की विजय पताका जोरों-शोरों से लहरा रही थी। ऐसे में जब मुगल आक्रान्ता शिवाजी को सामने से मात नहीं दे पाए तो बीजापुर के शासक अफजल खान ने उन्हें छल से मारने की योजना बनाई। उसने शिवाजी को महाराष्ट्र में महाबलेश्वर के पास प्रतापगढ़ के किले पर मिलने के लिए बुलाया। उसने आगे बढ़कर शिवाजी को गले लगाया और पीछे से उनकी पीठ पर खंजर घोंपने की कोशिश की। हालाँकि, उसके मंसूबों से वाकिफ शिवाजी ने एक खंजर से उसके ही पेट को चीर दिया।
उस दौरान शिवाजी की उम्र केवल 19 साल की ही थी, लेकिन उनके सामने अफजल खान की एक न चली। शिवाजी के वार करते ही वो चीखते हुए जमीन पर ढेर हो गया। बाद में अफजल खान की मौत के बाद का सम्मान रखते हुए उसे उसी स्थान पर दफनाया गया और उसके ऊपर समाधि के तौर पर पत्थर रख दिया गया।
दो दशक पहले तक आक्रान्ता अफजल खान की कब्र जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी, इस पर किसी का कोई ध्यान नहीं था। प्रतापगढ़ किले के प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर दाहिनी तरफ इसकी कब्र को देखा जा सकता है। हालाँकि, ये चर्चा में साल 2000 में उस वक्त आया जब कुछ मुस्लिमों ने इस कब्र पर दावा करते हुए वहाँ पर एक शेल्टर बनाने का फैसला किया। अपुष्ट जानकारियों के मुताबिक, करीब एक दशक पहले राज्य के वन विभाग ने दरगाह ट्रस्ट को कब्र के आसपास जमीन का आवंटन कर दिया, ताकि वो वहाँ पर निर्माण कर सकें।
इजाजत मिलने के बाद बीते 10 सालों में धीरे-धीरे यहाँ कब्र पर चारों तरफ से एक आर्केड के साथ एक स्थायी संरचना खड़ी कर दी गई है। माना जाता है कि अफजल खान की कब्र पर एसबेस्टस की पतली शीट की छत बनाई गई है। इसके अंदर मुस्लिमों के लिए स्पेशल कमरे बनाए गए हैं। जल्द ही बीजापुर के अत्याचारी शासक और शिवाजी के कट्टर दुश्मन रहे अफजल खान का किले में महिमानंडन शुरू कर दिया गया।
यहाँ पर ‘हजरत मोहम्मद अफजल खान मेमोरियल ट्रस्ट’ के नाम से अवैध तरीके से निर्माण कर किले की लगभग 5,500 वर्ग फुट की जमीनों पर कब्जा कर लिया गया है। छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतापगढ़ किले में अब मुस्लिम मौलवी अफजल खान का गुणगान करते हैं और यहाँ आने वाले लोगों से भी मुगल आक्रान्ता का गुणगान करने को कहा जाता है। यहाँ अंधविश्वास ये फैलाया गया है कि अफजल खान की कब्र के सामने प्रार्थना करने से मानसिक बीमारियाँ ठीक हो सकती हैं। इस अंधविश्वास को फॉलो करते हुए आस-पास के ग्रामीण मौलवियों की बातें मानने लगे हैं।
विश्व हिन्दू परिषद ने कब्जे के खिलाफ उठाई थी आवाज
मुस्लिमों द्वारा कब्र के नाम पर किए गए अवैध के कब्जे के खिलाफ विहिप ने 2004 में अपनी आवाज बुलंद की थी। ये साइट एएसआई के अंतर्गत आती है। वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने श्राइन ट्रस्ट को जमीन के आवंटन पर भी सवाल उठाया था। इस मामले में जब विहिप ने किले पर आंदोलन करने की चेतावनी दी थी तो पास की महाबलेश्वर पुलिस ने किले और मकबरे के चारों ओर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी थी।
इस मामले में सही इतिहास से अनभिज्ञ महाबलेश्वर नगर परिषद की उपाध्यक्ष प्रभावती शेटे ने कहा था, “बस बहुत हो गया। हम अब विहिप को बर्दाश्त नहीं करेंगे। कौन होते हैं इस मकबरे पर विवाद करने वाले? वे इसके बारे में क्या जानते हैं?” ट्रस्ट को वन विभाग की आधिकारिक जमीन के आवंटन से राज्य सरकार से नाखुश प्रतापगढ़ उत्सव समिति का गठन विहिप के कुछ सदस्यों द्वारा किया गया था। इसे विजयताई भोंसले से सक्रिय समर्थन मिला। विजयताई भोंसले सतारा के वाई के रहने वाले शाही वंश से आती थीं।
एक इंटरव्यू के दौरान विजयताई भोंसले ने इस बात पर हैरानी जताई थी कि शिवाजी महाराज के कट्टर दुश्मनों में से एक अफजल खान के लिए बने मकबरे का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इस मामले को लेकर उन्होंने जब स्थानीय अधिकारियों से इसकी शिकायत की और उनसे मिलने का समय माँगा तो किसी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। बावजूद इसके जब उन्होंने मामले की गहराई में झाँका तो पता चला कि कब्र की देखरेख और वित्तपोषण राज्य सरकार कर रही है। सैम टीवी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा था, “मैंने किले में रोज मालाएँ आती देखीं। जब मैंने माला के पीछे का कारण पूछा, तो मुझे बताया गया कि ये अफजल खान के लिए था।”
वो कहती हैं, “ऐसे समय में जब शिवाजी महाराज की मूर्ति और किले पर भवानी मंदिर उपेक्षित अवस्था में है, अफजल खान की काल्पनिक कब्र को मालाओं से सजाया जा रहा है।” उन्होंने इस बात को नोट किया है कि कब्र का रखरखाव और अवैध अतिक्रमण को स्थानीय अधिकारियों और राज्य सरकार के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।
अवैध कब्जे पर लापरवाह बनी महाराष्ट्र सरकार
विजयाताई भोसले के ही समर्थन से प्रतापगढ़ उत्सव समिति के स्थानीय नगरसेवक मिलिंद एकबोटे की अध्यक्षता में अफजल खान की कब्र पर दरगाह को हटाने के लिए 2007 में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। मामले में सुनवाई के बाद हाई कोर्ट के जस्टिस जेएन पटेल और जस्टिस एस के कथावाला की बेंच ने अवैध ढाँचे को गिराने का आदेश दिया था। इसमें कहा गया था कि ये जमीन वन विभाग की है और इस पर किसी भी निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी।
हालाँकि, ‘ढाक के तीन पात’ वाली स्थिति रही। राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को अनसुना कर दिया। इसके बाद एक बार फिर से मिलिंद एकबोटे ने हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की, जिसे राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालाँकि, विध्वंस के संबंध में अपनी स्थिति पर जोर देने में दो साल की देरी के बाद राज्य सरकार मकबरे पर अनधिकृत दरगाह को बचाने के अपने रुख पर कायम रहने में विफल रही। जस्टिस डी के जैन और जस्टिस अनिल दवे की पीठ ने 13 फरवरी 2012 को अपने आदेश में कहा कि अगर सरकार बेहतर हलफनामा दाखिल करने में विफल रहती है तो राज्य सरकार द्वारा दायर एसपीएल को खारिज कर दिया जाएगा।
इसी तरह से 2017 में भी एक पीआईएल फिर से बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल की गई, जिसके बाद राज्य सरकार को अवैध ढाँचे को गिराने के लिए अल्टीमेटम दिया गया। 2020 में कुछ स्थानीय राजनेताओं ने इस स्ट्रक्चर को पब्लिक यूज में इस्तेमाल के लिए खोलने की माँग की। सालों से राज्य सरकार इस अवैध अतिक्रमण का संरक्षण कर रही है। हाल ही में मनसे चीफ राज ठाकरे ने भी इसे ढहाने की माँग की थी।
पुणे में एक रैली को संबोधित करते हुए रविवार को प्रमुख राज ठाकरे ने कहा था, “जिस अफजल खान को हमारे छत्रपति शिवाजी महाराज ने मार डाला था। उसका मकबरा है और विशेष समुदाय के लोगों द्वारा उसकी कब्र पर फूलों की माला अर्पित की जा रही है। इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार खामोश बैठी है। अगर राज्य सरकार ने इस कब्र को नहीं गिराया, तो मनसे पार्टी के कार्यकर्ता इसे जल्द ही ध्वस्त कर देंगे।”
ठाकरे की इस धमकी के बाद उद्धव ठाकरे सरकार ने सतारा जिले के प्रतापगढ़ किले में अफजल खान की कब्र के आसपास रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवानों को तैनात कर दिया। एसपी अजय कुमार बंसल के मुताबिक, अफजल खान का मकबरा 2005 से प्रतिबंधित क्षेत्र रहा है। इसलिए मौके पर अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया था।