Saturday, November 16, 2024
Homeराजनीति26 साल बाद परीक्षा, 1 साल विवाद, अब मेरिट जंजाल: कमलनाथ राज में सड़क...

26 साल बाद परीक्षा, 1 साल विवाद, अब मेरिट जंजाल: कमलनाथ राज में सड़क पर शिक्षा

होना तो इन्हें क्लास में चाहिए था। लेकिन, कॉन्ग्रेस राज में मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था सड़क पर है। उच्च शिक्षा विभाग सुनता नहीं। एमपीपीएससी के वकील कोर्ट में हाजिर होते नहीं। मंत्री जुबानी जमा खर्च से काम चला रहे और मुख्यमंत्री के आश्वासन की तो साख ही नहीं बची है।

बीते साल के आखिरी दिनों में सोशल मीडिया में एक शब्द खासी चर्चा में रहा था। यह शब्द है- क्रोनोलॉजी। कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गॉंधी ने 27 दिसंबर को ट्वीट कर एक क्रोनोलॉजी पेश की। ऐसा करते वक्त उनके निशाने पर भले केंद्र की मोदी सरकार थी, पर उन्होंने इसकी प्रेरणा कॉन्ग्रेस शासित मध्य प्रदेश से ली थी।

बेरोजगारी भत्ते का वादा कर सत्ता में आई कमलनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार न केवल अपने कहे से मुकर चुकी है, बल्कि उसके साल भर के ही शासन में राज्य में बेरोजगारों की संख्या भी करीब 7 लाख बढ़ गई है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ​राजनीतिक प्रयोगशाला में बदल दिया गया है। पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने ढाई दशक बाद सहायक प्राध्यापकों (असिस्टेंट प्रोफेसर्स) की भर्ती का जो रास्ता खोला था, वह साल भर विवादों में रहा। पदयात्रा, मुंडन, धरना-प्रदर्शनों के बाद सरकार नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने को झुकी। लेकिन, आरक्षित वर्ग की उन 91 महिलाओं की ही अनदेखी कर दी गई जो मेरिट लिस्ट में हैं। उपेक्षा से आहत अतिथि विद्वान तो इस कड़ाके की ठंड में करीब दो हफ्ते से धरने पर बैठे हैं। राज्य सरकार की साख किस कदर गर्त में है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से किसी को मुख्यमंत्री कमलनाथ तक के आश्वासन पर यकीन नहीं है।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिन्हें क्लासरूम में बच्चों को इस समय पढ़ाते रहना था वह खुद सड़क पर हैं? इसे जानने से पहले शिल्पी वर्मा को सुनते हैं। मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग (MPPSC) की सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा की चयनित सूची में शिल्पी ज्योग्राफी की मेरिट लिस्ट में हैं। बकौल शिल्पी उनसे कम अंक पाने वालों को नियुक्ति पत्र मिल चुके हैं। लेकिन, वे इससे महरूम हैं।

उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री जीतू पटवारी से मुलाकात के बाद अपनी बात रखती शिल्पी वर्मा

शीतल हो या महजबीन… दर्द साझा

शिल्पी अकेली नहीं हैं। उनकी जैसी 91 महिलाएँ हैं। श्वेता हार्डिया, महजबीन अंसारी, शीतल वर्मा, प्रीति तगाया, शीतल जोशी, अरुणा सोलंकी, प्रीति देशमुख, दिव्या पटेल, सबाहत अंजुम कुरैशी, चंदा यादव, दिव्या सेप्ता, इंदिरा परमार…वगैरह। इन सबके विषय अलग-अलग हैं। अलग-अलग शहरों की हैं। ये सब आरक्षित वर्ग की वे चयनित आवेदक हैं जिनका नाम मेरिट लिस्ट में है। लेकिन इनको नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया। इनमें 70 ओबीसी, 18 अनुसूचित जाति और 3 अनुसूचित जनजाति से हैं।

प्रीति तगाया ने ऑपइंडिया को बताया कि अपनी समस्या को लेकर वे लोग कई बार MPPSC और उच्च शिक्षा विभाग के सचिव से मिल चुकी हैं। तीन बार राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी के पास भी फरियाद लगा चुकी हैं। उन्होंने बताया कि पटवारी ने अगली सुनवाई पर उनकी की कंडीशनल नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट में एफिडेविट दाखिल किए जाने का भरोसा दिलाया है।

मंत्री जीतू पटवारी को अपनी परेशानी से अवगत करातीं मेरिट लिस्ट की महिलाएँ

क्यों आई यह नौबत?

शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए 2017 में एमपीपीएससी ने सहायक प्राध्यापकों, लाइब्रेरियन और स्पोर्टस ऑफिसर की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया। 1992 के बााद पहली बार सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू की गई थी। विधानसभा चुनाव के कारण परीक्षा 2018 में हुई। लेकिन रिजल्ट आते ही विवाद शुरू हो गए। करीब सालभर नियुक्ति ही नहीं दी गई। फिर सहायक प्राध्यापक के चयनित उम्मीदवारों ने पद यात्रा निकाली। राजधानी भोपाल पहुॅंचकर सिर मुॅंडवाए। इसके बाद 3 दिसंबर को सीएम कमलनाथ ने ट्वीट कर बताया कि उन्होंने पीएससी से चयनित लोगों को नियुक्ति पत्र जारी करने के निर्देश दे दिए हैं। साथ ही कहा कि पहले से काम कर रहे अतिथि विद्वान भी बने रहेंगे।

इस बीच कई मामले कोर्ट भी गए। इनमें से ही एक मामला मेरिट लिस्ट में आने वाली आरक्षित वर्ग की 91 महिलाओं से जुड़ा है। परीक्षा के दौरान ज्यादा अंक पाने वाले आवेदकों को मेरिट लिस्ट के आधार पर अनारक्षित सीट के लिए चयनित किया गया। सामान्य वर्ग की महिला आवेदकों ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। 18 सितंबर 2019 को हाई कोर्ट का आदेश आया। श्वेता हार्डिया ने ऑपइंडिया को बताया कि इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि आरक्षित वर्ग की मेरिट लिस्ट में आने वाली महिला उम्मीदवारों का समायोजन सामान्य श्रेणी के कोटे में होगा। कोर्ट का आदेश आप नीचे पढ़ सकते हैं,


18 सितंबर 2019 का हाई कोर्ट का आदेश

हार्डिया के अनुसार इस आदेश की तरीके से व्याख्या नहीं की गई और उन्हें महाविद्यालयों की च्वाइस फिलिंग की प्रक्रिया से रोक दिया। इसके बाद 14 अक्टूबर को ये महिलाएँ हाई कोर्ट पहुॅंची और आदेश पर स्पष्टीकरण देने की गुहार लगाई। 17 अक्टूबर को हाई कोर्ट ने मेरिटोरियस महिलाओं को नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल करने का आदेश MPPSC और उच्च शिक्षा विभाग को दिया। हार्डिया के अनुसार फिर भी उनको नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है, जबकि ऐसे लोगों को नियुक्ति पत्र दिए गए हैं जिनके नाम चयन सूची के आखिर में हैं।

हाई कोर्ट से आदेश पर स्पष्टीकरण देने की गुहार

तगाया के अनुसार अब मंत्री जीतू पटवारी सात जनवरी को होने वाली सुनवाई के दौरान उनकी नियुक्ति के लिए कोर्ट में एफि​डेविट दाखिल करने की बात कह रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि कोर्ट ने उनकी ज्वाइनिंग पर रोक ही नहीं लगाई है।

शीतल जोशी ने ऑपइंडिया को बताया कि इस मामले में एक तरफ उच्च शिक्षा विभाग उनके साथ अन्याय कर रहा है तो दूसरी ओर एमपीपीएससी के वकील कोर्ट में पेश ही नहीं होते। तीन बार वकील सुनवाई पर गैरहाजिर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अनारक्षित सीटें मेरिट से भरी जाती हैं। बाद में आ​रक्षित वर्ग की सीटें उस कोटे के उम्मीदवारों से भरी जाती है। पीएससी की तमाम परीक्षाओं में यही पॉलिसी लागू होती है। इस बार भी लाइब्रेरियन और स्पोर्टस ऑफिसर की चयन सूची भी इसी आधार पर तैयार हुई। फिर उनके साथ भेदभाव क्यों हो रहा है। वे पूछती हैं कि क्या अधिक नंबर लाना, ज्यादा प्रतिभा होना गुनाह है?

महजबीन अंसारी ने ऑपइंडिया को बताया, “नियमानुसार सबसे पहले हमारी नियुक्ति होनी चाहिए थी। हममें से कई चयनित सूची में अव्वल हैं। लेकिन, उच्च शिक्षा विभाग ने हमारी ही नियुक्तियाँ रोक दी। विभाग इसका कोई कारण भी हमें नहीं बता रहा।”

इधर जैसे-तैसे सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई तो सालों से पढ़ा रहे अतिथि विद्वानों के भविष्य पर संकट मंडराने लगा। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार रीवा में मंत्री जीतू पटवारी की अतिथि विद्वानों से तीखी नोंकझोंक हो गई। अतिथि विद्वानों का कहना था कि वे बीते 25 साल से पढ़ा रहे हैं। अब असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति के नाम पर उन्हें बाहर किया जा रहा है। भोपाल में करीब दो हफ्ते से धरने पर बैठे अतिथि विद्वानों ने तो कफन ओढ़कर नए साल का स्वागत किया। अतिथि विद्वान संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ. देवराज सिंह का कहना है कि जब तक सरकार नियमित नहीं करती, उनका धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा।

दिलचस्प यह है कि बार-बार मुख्यमंत्री कमलनाथ और जीतू पटवारी की तरफ से आश्वासन मिलने के बावजूद भी अतिथि विद्वानों का धरना चल रहा है। इसका कारण सरकार की नीयत पर इनका भरोसा नहीं होना है। अब आप समझ गए होंगे कि क्रोनोलॉजी समझाते हुए प्रियंका गाँधी ने क्यों लिखा कि जब आप प्रोटेस्ट करेंगे तो वे आपको ‘फूल’ कहेंगे। उनका इशारा शायद अपनी ही सरकार की ओर था।

पर वे भूल गईं कि ये एमपी के मास्टरसाहब हैं। हाथ के लिए फिर से फूल बनने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि अब मंत्री जीतू पटवारी उनके विरोध-प्रदर्शन को भाजपा के कमल फूल से जोड़ने की जुगत में हैं।

कमलनाथ के खिलाफ 5000 शिक्षकों का प्रदर्शन, सैलरी नहीं दे रही कॉन्ग्रेस सरकार

कमलनाथ के राज में किसानों का बुरा हाल: मुआवजा न मिलने पर एक और किसान ने की आत्महत्या

राहुल गाँधी को माफी माँगनी चाहिए, किसानों के कर्ज माफ करने में रहे विफल: कॉन्ग्रेस नेता

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

PM मोदी ने कार्यकर्ताओं से बातचीत में दिया जीत का ‘महामंत्र’, बताया कैसे फतह होगा महाराष्ट्र का किला: लोगों से संवाद से लेकर बूथ...

पीएम नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के कार्यकर्ताओं से बातचीत की और उनको चुनाव को लेकर निर्देश दिए हैं।

‘पिता का सिर तेजाब से जलाया, सदमे में आई माँ ने किया था आत्महत्या का प्रयास’: गोधरा दंगों के पीड़ित ने बताई आपबीती

गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने और 59 हिंदू तीर्थयात्रियों के नरसंहार के 22 वर्षों बाद एक पीड़ित ने अपनी आपबीती कैमरे पर सुनाई है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -