पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करने वाले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर वर्ग विशेष के विरोध और विपक्षी दलों की अफवाहों से आप परिचित हैं। सीएए के छिटपुट विरोध के बीच एक ऐसी खबर सामने आई है जो बताती है कि नागरिकता से कैसे इनका जीवन बदल सकता है।
भारत आने के 18 साल बाद नीता कंवर को पिछले साल सितंबर में नागरिकता मिली थी। वह 2001 में अपनी बड़ी बहन अंजना सोढा के साथ पाकिस्तान के सिंध के मीरपुर-खास से राजस्थान के जोधपुर आई थीं। दो बच्चों की मॉं नीता अब राजस्थान के पंचायत चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रही हैं।
36 साल की नीता ने 17 जनवरी को नामांकन दाखिल किया। उनका कहना है कि सीएए के जरिए भारत में अच्छा जीवन-यापन करने और अच्छी शिक्षा हासिल करने में मदद मिलेगी। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि वह टोंक जिले की नटवारा ग्राम पंचायत का सरपंच बनने के लिए चुनाव लड़ रही हैं। अजमेर के सोफिया गर्ल्स कॉलेज की ग्रेजुएट नीता के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है, “मुझे पिछले साल सितंबर में टोंक कलेक्टर कार्यालय में नागरिकता प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया था। अब मैं पंचायत चुनाव लड़ रही हूॅं।”
नीता जिस सीट से मैदान में हैं उस पर तीन बार उनके ससुर का कब्जा रहा है। वह टोंक जिले के उपखंड निवाई की पंचायत नटवाड़ा के एक राजपूत परिवार की बहू हैं। दैनिक भास्कर ने नीता के हवाले से बताया है की 2011 में उनकी शादी पुण्य प्रताप करण से हुई थी। उनके ससुराल की पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है। राजनीति में आने की प्रेरणा उन्हें ससुर ठाकुर लक्ष्मण करण से मिली।
नीता ने बताया, “मैं एक सामान्य सीट पर चुनाव लड़ रही हूॅं। लेकिन यह महिलाओं के लिए आरक्षित है। मैं लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण, सभी लड़कियों के लिए शिक्षा और उचित चिकित्सा सुविधाओं के लिए काम करना चाहती हूॅं। मुझे बहुत समर्थन मिल रहा है।” मीडिया रिपोर्टों के अनुसार नीता जमकर प्रचार कर रही हैं। वोट मॉंगने के लिए जब वह घरों में जाती हैं तो राजस्थानी परंपरा के अनुसार गॉंव की महिलाएँ शगुन वगैरह का रस्म निभाती हैं।