Friday, November 8, 2024
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34 साल के सांसद ने कॉन्ग्रेसियों के लिए ऐसा क्या कहा कि PM मोदी को शेयर करनी पड़ गई Video

"लद्दाख के लोगों ने शुरू से ही सरकार को बता दिया था कि उन्हें (मुस्लिम-प्रभुत्व वाले) कश्मीर के अलावा किसी भी और तरीके से देश में रहना मंज़ूर है- भले ही वह केंद्र-शासित प्रदेश (UT) के रूप में हो, पूर्वी पंजाब के साथ विलय हो, या कुछ और।"

लोक सभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पर सभी को उम्मीद थी कि भाजपा के प्रचंड बहुमत और कमज़ोर विपक्ष के चलते अधिनियम बिना किसी खास बहस के पास हो जाएगा। लेकिन लोक सभा में इस मामले में बहस राज्य सभा से अधिक दिलचस्प हो रही है। सुबह शुरूआत कॉन्ग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी के विवादस्पद बयानों से हुई। उसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोकसभा सांसद हसनैन मसूदी ने दावा किया कि संविधान का विवादस्पद अनुच्छेद-370 जनसंघ के संस्थापक-अध्यक्ष और भाजपा के पितृ-पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आशीर्वाद से बना।

और अब हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार से कहा है कि अगर जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन सच में दीवाली जैसा मौका है, जैसा कि भाजपा सांसद दावा कर रहे हैं, तो कश्मीरियों पर भी कर्फ्यू हटाकर उन्हें भी जश्न मनाने दिया जाए। उन्होंने भाजपा से आग्रह किया कि कर्फ्यू हटाया जाए और हिरासत में लिए गए सभी कश्मीरी नेताओं को रिहा किया जाए। इसके पहले उन्होंने भाजपा पर अपना चुनावी वादा पूरा करने के लिए संवैधानिक जिम्मेदारी भूलने और (कश्मीरियों से किया गया तथाकथित) संवैधानिक वादा तोड़ने का आरोप लगाया।

‘हमने कहा था कहीं भी भेज दो, कश्मीर के साथ मत रखो’

भाजपा की ओर से लोक सभा में मोर्चा संभालने वालों में से एक थे लद्दाख के सांसद जाम्यांग त्सेरिंग नामग्याल, जिन्होंने राज्य के विभाजन के समर्थन में लद्दाख का पक्ष रखा। उनका भाषण इतना प्रभावशाली रहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अलग से उसे ट्वीट कर उनकी तारीफ़ की।

अपने भाषण में नामग्याल ने कई महत्वपूर्ण बिंदु गिनाए। उन्होंने शुरूआत पूर्व-प्रधानमंत्री नेहरू पर तंज़ कसते हुए की। उन्होंने कहा कि 70 साल से लद्दाख को कश्मीर के साथ रखने वालों को वहाँ की स्थानीय संस्कृति, वहाँ की सभ्यता, वहाँ की आकांक्षाओं के बारे में ज्ञान नहीं था; उनके लिए तो यह बंजर भूमि थी जिसपर घास का तिनका भी नहीं उगता। मालूम हो कि अक्साई चिन पर चीन के कब्ज़े पर पंडित नेहरू ने संसद में कहा था कि अरुणाचल और लद्दाख के पहाड़ों पर तो एक पत्ता घास का भी नहीं उगता, तो ऐसे में उनकी समझ में नहीं आ रहा कि उसके पीछे संसद का कीमती समय बर्बाद करने का क्या मतलब है

नामग्याल ने दावा यह भी किया कि लद्दाख के लोगों ने शुरू से ही सरकार को बता दिया था कि उन्हें (मुस्लिम-प्रभुत्व वाले) कश्मीर के अलावा किसी भी और तरीके से देश में रहना मंज़ूर है- भले ही वह केंद्र-शासित प्रदेश (UT) के रूप में हो, पूर्वी पंजाब के साथ विलय हो, या कुछ और। हिंदी में बोल रहे नामग्याल ने कहा कि हिंदुस्तान का हिस्सा बने रहने के लिए ही लद्दाख ने 70 साल UT बनने की लड़ाई लड़ी, लेकिन पिछली सरकारों ने लद्दाख को ‘फेंककर’ रखा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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