केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर 2023 के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इस सत्र को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इनमें से एक यह भी है कि मोदी सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) का बिल ला सकती है। अब खबर आ रही है कि इसको लेकर सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई है। हालाँकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर लंबे समय से चर्चा होती रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक कमिटी का गठन किया है। कहा जा रहा है कि इस कमिटी को लेकर सरकार शुक्रवार (1 सितंबर, 2023) को नोटिफिकेशन जारी कर सकती है। इस नोटिफिकेशन में कमिटी के सदस्यों के नाम, कार्यकाल समेत अन्य जानकारियाँ होंगी।
Government has constituted a committee headed by ex-President Ram Nath Kovind to explore possibility of 'one nation, one election': Sources
— Press Trust of India (@PTI_News) September 1, 2023
यह कमिटी ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू करने से जुड़े सभी कानूनी पहलुओं पर गौर करेगी। साथ ही इसको लेकर देश की जनता से भी राय लेने की बात सामने आ रही है। इस कमिटी के बनने के बाद इस बात को लेकर चर्चा तेज गई है कि मोदी सरकार संसद के विशेष सत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ पर बिल ला सकती है।
हालाँकि विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। विपक्ष कहना है कि सरकार ने इसको लेकर उनसे बात नहीं की। इसके अलावा इसकी संवैधानिकता पर भी सवाल उठाया जा रहा है। वहीं मीडिया में कमिटी गठन की खबर आने के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की है।
#WATCH | Delhi: BJP national president JP Nadda meets former President Ram Nath Kovind, who will head a committee for 'One Nation, One Election'. https://t.co/lCrAKUbCxn pic.twitter.com/pMuEGKvICR
— ANI (@ANI) September 1, 2023
‘एक देश, एक चुनाव’ यानी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है। इसमें संभावना यह भी है कि त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव भी एक साथ कराए जाएँ। दरअसल, अलग-अलग चुनाव होने से देश में हर 3-4 महीने में चुनाव होते रहते हैं। इससे उन क्षेत्रों में आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। इससे विकास कार्य ठप्प पड़ जाते हैं। इसके अलावा, चुनावों में करोड़ों रुपए भी खर्च होते हैं। इससे सरकार पर बोझ बढ़ता है। इन सब चीजों से बचने के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ की माँग होती रहती है।
ज्ञात हो कि आजादी के बाद 1951-52 में देश में पहली बार चुनाव हुए थे। तब लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी कराए गए थे। इसके बाद साल 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए। इसके बाद साल 1968-69 में कई सरकारें भंग कर दी गईं। वहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने साल 1971 में समय पहले ही लोकसभा चुनाव कराए थे। इस तरह से देश में एक साथ होने वाले चुनावों की परंपरा टूट गई। इसके बाद की सरकारों ने देश में एक साथ चुनाव कराने की कोशिश नहीं की।