Saturday, July 27, 2024
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कॉन्ग्रेस, लेफ्ट, ममता: नहीं बदला बंगाल, 46 साल में भी पूरी नहीं हुई 110 किमी की परियोजना

बकौल रेल मंत्री, रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के ज्यादातर मामले पश्चिम बंगाल में ही हैं। इन्हें खाली कराने के लिए राज्य सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हो रही। सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान ज्यादातर ऐसी जगहों पर संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया।

कॉन्ग्रेस के बाद पश्चिम बंगाल ने वाम मोर्चे का लंबा राज देखा। करीब 9 साल से राज्य में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही है। लेकिन, बंगाल में जो नहीं बदला वह है सरकार के कामकाज का तरीका। विकास कार्यों के प्रति उदासीन रुख। राजनीतिक हिंसा।

राजनीतिक हिंसा के लिए तो बंगाल कुख्यात रहा है। बीजेपी समर्थकों को निशाना बनाने की घटनाएँ आए दिन सामने रहती है। अब राज्यसभा में रेल मंत्री पीयूष गोयल की ओर से रखे एक तथ्य से यह बात भी सामने आई है कि राज्य सरकार विकास परियोजनाओं को पूरा करने को लेकर भी उत्साहित नहीं है। राज्य में 1974 में 110 किमी लंबी एक रेल परियोजना शुरू हुई। आप जानकर हैरत में रह जाएँगे कि 46 साल में यह परियोजना महज 42 किमी ही पूरी हो पाई है।

इसके लटके होने का कारण है जमीन अधिग्रहण। इन 46 साल के दौरान राज्य में कॉन्ग्रेस, लेफ्ट फ्रंट और टीएमसी तीनों दलों की सरकारें रहीं, पर किसी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। मुख्यमंत्री बनने से पहले दो साल तक ममता बनर्जी केंद्र सरकार में रेल मंत्री भी रहीं थी। लेकिन, इस परियोजना का हाल देखकर लगता है कि सीएम बनते ही उन्होंने रेलवे की योजनाओं को अपने राज्य में भी बिसरा दिया।

अब सुनिए पीयूष गोयल ने संसद के उच्च सदन में क्या कहा। इसका विडियो उन्होंने खुद ट्वीट किया है।

विडियो में पीयूष गोयल को इस प्रोजेक्ट का जिक्र करते सुना जा सकता है। वे कहते हैं कि जिस समय 1974 में इस परियोजना का कार्य शुरू हुआ उस समय वह 10 साल के थे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मेरी दिली इच्छी है कि राज्य सरकार जमीन अधिग्रहण में सहयोग करें और मेरे जीते जी यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाए।

उन्होंने राज्यसभा में बोलते हुए कहा कि आगामी वर्षो में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि के जरिए लगभग 20,000 मेगावाट बिजली उत्पादन कर भारतीय रेलवे का 100 फीसदी विद्युतीकरण किया जाएगा। इससे कार्बन उत्सर्जन की मात्रा शून्य होगी और भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत होगी जिसे अभी कच्चे तेलों के आयात पर खर्च किया जाता है। इसके साथ ही रुपया मजबूत होगा और महँगाई घटेगी। इससे देश को 13 से 16 हजार करोड़ रुपए की सालाना बचत होगी।

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस दौरान राज्यसभा में ये भी साफ कर दिया कि भारतीय रेलवे देश की जनता की है और सरकार के पास इसके निजीकरण की कोई योजना नहीं है। दरअसल, कई विपक्षी सदस्यों की ओर से इस पर संदेह जताए जाने के बाद रेल मंत्री की ओर से ये यह बात कही गई।

रेल मंत्री ने सदस्यों का संदेह दूर करते हुए दो टूक कहा है कि, “मैं यह पूरी तरह से साफ कर देना चाहता हूँ कि भारतीय रेलवे के निजीकरण का कोई प्रस्ताव या योजना नहीं है, ऐसा नहीं होगा। भारतीय रेलवे इस देश के लोगों की है और यह उसी के पास रहेगी।” हालाँकि यहाँ पर उन्होंने ये बात भी बताई कि रेलवे के विकास के लिए सरकार कुछ सेवाएँ निजी क्षेत्रों को दे सकती है, जिससे कि यात्रियों को बेहतर से बेहतर सुविधाएँ मुहैया कराई जा सके।

इस दौरान उन्होंने कहा कि अगले 12 वर्षो में रेल की विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए लगभग 50 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता होगी जिसमें सभी अंशधारकों से मदद मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हम इस देश की जनता को भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने का मौक़ा देंगे।

रेलवे के लंबित परियोजनाओं के मुद्दे पर भाजपा की ओर से सांसद रूपा गाँगुली ने भी अपने क्षेत्र की माँग रखी। रूपा गांगुली ने रेलवे की डिमांड ग्रांट का जिक्र करते हुए कहा कि संघीय व्यवस्था के सम्मान की कमी की बात कही। उन्होंने अपने क्षेत्र के कसाई हाल्ट के मुद्दे को रखा।

इस दौरान बता दें, गोयल ने विपक्षी सदस्यों की ओर से रेलवे में कार्य की धीमी प्रगति पर पूछे गए वालों का भी जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि 2014-15 में कैपिटल एक्सपेंडिचर 58,000 करोड़ रुपए था, जो कि इस साल 1.61 लाख करोड़ रुपए रहने वाला है। उन्होंने दावा किया कि इतनी बड़ी मात्रा में निवेश से कार्यों में बड़ी प्रगति देखने को मिलेगी। रेलवे में काम को तेजी से पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों से जमीन दिलाने में सहयोग की भी अपील की है। उन्होंने रेलवे की उपलब्धि बताते हुए कहा है कि रायबरेली रेल कोच फैक्ट्री से इस साल 2,000 कोच बनकर निकलेंगे।

इस चर्चा में जब रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगाडी ने रेलवे जमीन के अतिक्रमण का मामला उठाया, तो पीयूष गोयल ने इसका भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल के हाल के दौरे में उन्होंने पाया कि रेलवे की जमीन के अतिक्रमण का ज्यादातर मामला पश्चिम बंगाल में (ही) है। राज्य सरकार की ओर से इसे खाली कराने की दिशा में कोई सक्रिय पहल नहीं दिखी। उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के दौरान ज्यादातर ऐसी जगहों पर संपत्ति को नुकसान पहुँचा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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