Thursday, April 25, 2024
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‘लोकतंत्र की हत्या’ गिरोह को संसद में PM मोदी ने दिया करारा जवाब, नेताजी बोस को बताया ‘प्रथम प्रधानमंत्री’

"हमारा लोकतंत्र किसी भी मायने में पश्चिमी संस्थान नहीं है, ये एक मानव संस्थान है। आज इस लोकतंत्र पर चौतरफा हमला हो रहा है। ये न तो आक्रामक है, न संकीर्ण है। ये सत्यम, शिवम्, सुंदरम से प्रेरित है।"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (फ़रवरी 8, 2021) को राज्यसभा में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दिया। संसद के उच्च-सदन में अभिभाषण पर चर्चा शुक्रवार को ही ख़त्म हो गई थी। प्रधानमंत्री का ये सम्बोधन ऐसे समय में हुआ, जब दिल्ली और आसपास के इलाकों में चल रहे ‘किसान आंदोलन’ संसद में बहस का मुद्दा बना रहा। वहीं असम और पश्चिम बंगाल में इस साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं।

इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरा विश्व अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है और शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मानव जाति को ऐसे कठिन दौर से गुजरना होगा, ऐसी चुनौतियों के बीच। उन्होंने कहा कि जब हम पूरी दुनिया को देखते हैं और फिर भारत की तरफ ध्यान देते हैं तो पता चलता है कि हमारा देश युवा प्रतिभाओं के लिए मौकों का देश बन गया है। उन्होंने कहा कि भारत आज एक युवा, उत्साही और मेहनती देश है।

पीएम मोदी ने 13-14 घंटे तक 50 से अधिक सदस्यों द्वारा अपने विचार रखने को लेकर धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि अनेक चुनौतियों के बीच राष्ट्रपति का इस दशक का प्रथम भाषण हुआ। लेकिन, ये भी सही है जब पूरे विश्व पटल की तरफ देखते हैं, भारत के युवा मन को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आज भारत सच्चे में एक अवसरों की भूमि है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि अनेक अवसर हमारा इंतजार कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हम सभी के लिए ये भी एक अवसर है कि हम आजादी के 75 वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, ये अपने आप में एक प्रेरक अवसर है। साथ ही लोगों से अपील की कि हम जहाँ भी, जिस रूप में हों, माँ भारती की संतान के रूप में इस आजादी के 75वें पर्व को हमें प्रेरणा का पर्व मनाना चाहिए।

साथ ही कहा कि भारत के लिए दुनिया ने बहुत आशंकाएँ जताई थीं और विश्व बहुत चिंतित था कि अगर कोरोना की इस महामारी में अगर भारत अपने आप को संभाल नहीं पाया तो न सिर्फ भारत पूरी मानव जाति के लिए कितना बड़ा संकट आ जाएगा।

प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में कहा कि कोरोना की लड़ाई जीतने का यश किसी सरकार को नहीं जाता है, किसी व्यक्ति को नहीं जाता है, लेकिन पूरे हिंदुस्तान को तो जाता है। उन्होंने पूछा कि गर्व करने में क्या जाता है? विश्व के सामने आत्मविश्वास से बोलने में क्या जाता है? उन्होंने लोकतंत्र पर शक उठाने वालों को करारा जवाब देने के लिए नेताजी का उद्बोधन साझा किया। उन्होंने कहा कि हमने अपने युवा पीढ़ी को ये नहीं दिखाया कि हम लोकतंत्र की जननी हैं।

“हमारा लोकतंत्र किसी भी मायने में पश्चिमी संस्थान नहीं है, ये एक मानव संस्थान है। भारत का इतिहास लोकतांत्रिक संस्थानों से भरा पड़ा है। प्राचीन भारत में 81 लोकतंत्र का वर्णन मिलता है। आज इस लोकतंत्र पर चौतरफा हमला हो रहा है। ये न तो आक्रामक है, न संकीर्ण है। ये सत्यम, शिवम्, सुंदरम से प्रेरित है।” – पीएम मोदी ने कहा कि ये बयान ‘आज़ादी हिन्द फ़ौज के प्रथम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री’ नेताजी सुभास चंद्र बोस ने दिया था।

उन्होंने कहा कि जब दुनिया भर में निराशा का माहौल है, भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ रहा है, अन्न उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर है और इंटरनेट यूजरों के मामले में हम दूसरे बड़े देश हैं। उन्होंने कहा कि अब देश में निवेश बढ़ रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 2 वर्ष पहले इसी सदन में कुछ लोग कह रहे थे कि लोगों के पास मोबाइल फोन कहाँ है, डिजिटल लेनदेन कैसे होगा लेकिन अब हर महीने 4 लाख करोड़ रुपए का लेनदेन डिजिटली हो रहा है।

उन्होंने कहा कि यहाँ की धरती पर हुए स्टार्टअप्स की जयजयकार दुनिया कर रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अक्षय ऊर्जा से लेकर जल-नभ और थल तक भारत आगे बढ़ रहा है। उन्होंने संसद में 2014 में दिए अपने पहले भाषण की याद दिलाई, जब उन्होंने अपनी सरकार को गरीबों को समर्पित बताया था। उन्होंने कोरोना के दौरान करोड़ों लोगों को अनाज दिए जाने से लेकर अपनी अन्य योजनाओं के बारे में गिनाया।

उन्होंने कहा कि इस कोरोना काल में भारत ने वैश्विक संबंधों में एक विशिष्ट स्थान बनाया है, वैसे ही भारत ने हमारे फेडरल स्ट्रक्चर को इस कोरोना काल में, हमारी अंतर्भूत ताकत क्या है, संकट के समय हम कैसे मिल कर काम कर सकते हैं, ये केंद्र और रज्य सरकार ने मिल कर कर दिखाया है। साथ ही कहा कि भारत का लोकतंत्र ऐसा नहीं है कि जिसकी खाल हम इस तरह से उधेड़ सकते हैं। देश के नागरिक कभी इसे नहीं मानेंगे।

प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि चुनौतियाँ तो हैं, लेकिन हमें तय करना है कि हम समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या समाधान का माध्यम बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि जाने-अनजाने में हमने नेताजी की भावना को, उनके आदर्शों को भुला दिया है। उसका परिणाम है कि आज हम ही, खुद को कोसने लगे हैं। हमने अपनी युवा पीढ़ी को सिखाया नहीं कि ये देश लोकतंत्र की जननी है। हमें ये बात नई पीढ़ी को सिखानी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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