Thursday, March 20, 2025
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राज्य सभा के लिए कौन हो सकते हैं नामित: क्या प्रशांत भूषण जानबूझकर बोल रहे झूठ?

इस सूची में कई बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, इतिहासकार, वैज्ञानिक, कवि, इंजीनियर, अर्थशास्त्री, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता के भी नाम हैं। लेकिन कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है कि कानूनविद राज्यसभा के लिए नामित नहीं हो सकते। तो सवाल उठता है कि प्रशांत भूषण क्यों...

पूर्व सीजेआई गोगोई का नाम राज्यसभा के लिए नामित होने के बाद बड़े-बड़े बुद्धिजीवी निकलकर सामने आ रहे हैं। पहले तो हर मुमकिन प्रयास करके ये प्रसारित करने की कोशिश की जा रही थी कि राष्ट्रपति कोविंद ने गोगोई को जो राज्यसभा भेजने के लिए नामित किया, वो केवल उनके ‘एकतरफा’ फैसलों के कारण। लेकिन अब संविधान के अनुच्छेदों का उदाहरण देकर राष्ट्रपति के चयन को गलत साबित किया जा रहा है।

अब ऐसा करने वाले कोई और नहीं, बल्कि खुद जाने-माने वकील प्रशांत भूषण हैं। प्रशांत भूषण का कहना है कि आर्टिकल 80 (3) के तहत यदि कोई व्यक्ति कला, विज्ञान, साहित्य या समाज सेवा में विशेष ज्ञान रखता है, तो उसे राज्य सभा में नामांकित किया जा सकता है। लेकिन गोगोई की प्रतिभा और कला, विज्ञान, साहित्य या सामाजिक सेवा में विशेष ज्ञान एक सील कवर में अच्छी तरह से छिपा हुआ लगता है!

प्रशांत भूषण वकालत की दुनिया में वामपंथियों के एक ‘वरिष्ठ’ उम्मीद हैं। तो उनके द्वारा किया गया मार्गदर्शन भी अंतिम सत्य की तरह माना जाता है। लेकिन प्रमाणों की तरफ यदि गौर किया जाए तो प्रशांत भूषण और उनके समर्थकों का एजेंडा पूरी तरह ध्वस्त होता दिखता है।

साल 2005 में आई एक लिस्ट पढ़िए। इस लिस्ट में 107 ऐसे लोगों के नाम हैं, जिन्हें 1952 से लेकर 2005 तक राज्यसभा के लिए नामित किया गया। इनमें करीब 4 नाम ऐसे हैं, जिनका वकालत संबंधी बैकग्राउंड होने के बावजूद उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया।

इसके अलावा हाँ, इस सूची में कई बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, इतिहासकार, वैज्ञानिक, कवि, इंजीनियर, अर्थशास्त्री, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता के भी नाम हैं। लेकिन कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है कि कानूनविद राज्यसभा के लिए नामित नहीं हो सकते। तो सवाल उठता है कि जब 1952 से इस बात पर गौर नहीं किया गया, तो आज क्यों?

क्या कानूनी जानकार होने के बाद प्रशांत भूषण अपने फॉलोवर्स को गलत सूचना प्रसारित करने पर आतुर हो चुके हैं? या केवल अपना अजेंडा साधने के लिए और भाजपा के प्रति अपनी नफरत निकालने के लिए अपने प्रोफेशन और अपनी विश्वसनीयता के साथ ख़िलावाड़ कर रहे हैं? या ये भी कह सकते हैं कि वो पूर्व सीजेआई के प्रति अपनी कुँठा निकाल रहे हैं, क्योंकि पिछले साल उन्हें कई मौकों पर उनके रवैये के कारण लताड़ा गया था।

गौरतलब है कि पिछले साल 16 जनवरी को लोकपाल मामले में बहस के दौरान चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया ने प्रशांत भूषण को जमकर फटकार लगाई थी। उस समय चीफ जस्टिस ने प्रशांत भूषण नसीहत देते हुए चीजों को सकारात्मक तरीके से देखने की बात कही थी। लोकपाल मामले पर बहस के दौरान कोर्ट में जब प्रशांत भूषण ने सर्च कमिटी के उपर सवाल खड़ा किया था तो चीफ़ जस्टिस ने तल्ख अंदाज में प्रशांत भूषण को ये जवाब दिया- “ऐसा लगता है आप जजों से भी ज्यादा जानते हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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