कॉन्ग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की जिन भी कारणों से आलोचना करती है, राजस्थान में वही चीजें आलोचना से परे हो जाती हैं। ये अलग बात है कि यूपी में कॉन्ग्रेस को जबरन हाथरस जैसे मामले ‘क्रिएट’ कर के मीडिया आउटरेज कराना पड़ता है। अब संविदा पर कर्मचारियों की बहाली को लेकर भी प्रियंका गाँधी की राय बदल सकती है, क्योंकि ये राजस्थान में हो रहा है।
खबर के अनुसार, राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने निर्णय लिया है कि शिक्षा विभाग में कुल 9862 बेसिक कम्प्यूटर शिक्षकों तथा 591 वरिष्ठ कम्प्यूटर शिक्षकों के पद सृजित किए जाएँगे। बेसिक कम्प्यूटर अनुदेशक की सैलरी सूचना सहायक पद के समकक्ष और और वरिष्ठ कम्प्यूटर अनुदेशक का वेतनमान सहायक प्रोग्रामर के पद के बराबर होगा। सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के इन दोनों पदों की जो योग्यता है, कम्प्यूटर वाली संविदा की बहाली में भी यही सैलरी होगी।
अगर इसे प्रियंका गाँधी के ही शब्दों में समझें तो राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार युवाओं के दर्द पर मरहम लगाने की जगह उनका दर्द बढ़ाने की तैयारी कर रही है। चौंक गए? असल में जब उत्तर प्रदेश में संविदा पर बहाली हो रही थी तो प्रियंका गाँधी ने कुछ इसी तरह का बयान दिया था। अब उम्मीद करना बेमानी है कि प्रियंका गाँधी राजस्थान के लिए अपने इस बयान को दोहराएँगी, लेकिन कम से कम बता तो देतीं कि वो अपने उस बयान पर अब भी कायम हैं या नहीं।
दरअसल, हुआ कुछ यूँ था कि सितंबर 2020 में योगी सरकार समूह ‘ख’ व समूह ‘ग’ की भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव करने पर विचार कर रही थी। इसके तहत प्रस्ताव लाया गया था कि चयन के बाद शुरुआती 5 वर्ष तक कर्मियों को संविदा के आधार पर नियुक्त किया जाएगा। इसके बाद छँटनी होगी और जो बचेंगे, उन्हें स्थायी नियुक्ति दी जाएगी। परफॉर्मेंस के आधार पर किसी को नौकरी देना कहाँ तक गलत है?
लेकिन, तब प्रियंका गाँधी ने इसका विरोध करते हुए कहा था, “संविदा = नौकरियों से सम्मान विदा। 5 साल की संविदा = युवा अपमान कानून। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी इस तरह के कानून पर अपनी तीखी टिप्पणी की है। इस सिस्टम को लाने का उद्देश्य क्या है? सरकार युवाओं के दर्द पर मरहम न लगाकर दर्द बढ़ाने की योजना ला रही है। नहीं चाहिए संविदा।” अफ़सोस कि राजस्थान वाले मुद्दे पर उनका कोई ट्वीट नहीं आया है।
संविदा = नौकरियों से सम्मान विदा
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) September 15, 2020
5 साल की संविदा= युवा अपमान कानून
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी इस तरह के कानून पर अपनी तीखी टिप्पणी की है।
इस सिस्टम को लाने का उद्देश्य क्या है? सरकार युवाओं के दर्द पर मरहम न लगाकर दर्द बढ़ाने की योजना ला रही है।#नहीं_चाहिए_संविदा
प्रियंका गाँधी से अनुरोध है कि वो हमें नहीं तो कम से कम राजस्थान की जनता की तो सुने। राज्य में स्थायी भर्ती के लिए बेरोजगार कम्प्यूटर शिक्षक लम्बे समय से आंदोलन चला रहे हैं और अभी भी सोशल मीडिया के जरिए अभियान निरंतर जारी है। ऐसे में इस फैसले के बाद राज्य के ‘बेरोजगार महासंघ’ ने संविदा पर बहाली का विरोध किया है। महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव ने इसे गलत निर्णय करार देते हुए कहा कि नियमित आधार पर भर्तियाँ निकाल कर बेरोजगारों को राहत दी जाए।
प्रियंका गाँधी के लिए ये कोई नई बात नहीं है। जब दिल्ली और मुंबई ने यूपी-बिहार-झारखंड के मजदूरों को छोड़ दिया था तो वो अपने-अपने राज्य वापस आ गए थे। तब उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके आवागमन की मुफ्त व्यवस्था की। उस समय प्रियंका गाँधी योगी सरकार को मजदूरों के खिलाफ बताते हुए आलोचना में लगी थीं, जबकि राजस्थान में मजदूरों का बुरा हाल था लेकिन कॉन्ग्रेस के किसी भी नेता ने इस पर चूँ तक नहीं किया।
ये कॉन्ग्रेस के प्रथम परिवार का दोहरा मापदंड है। प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश में ऐसा प्रस्ताव भर आता है तो इसे ‘5 साल युवाओं का अपमान’ बताते हुए ‘बंधुआ मजदूरी’ से संविदा की तुलना करती है, जबकि राजस्थान में पूरा फैसला ही लागू हो जाता है फिर भी चूँ तक नहीं करतीं। उन्होंने तब गुजरात में यही सिस्टम होने की बात कहते हुए कहा था कि इससे युवाओं का आत्मसम्मान छिन जाता है। फिर, क्या राजस्थान के युवाओं का उनकी नजर में कोई आत्मसम्मान नहीं?
इसी तरह बोर्ड परीक्षा के मामले में भी केंद्र सरकार की आलोचना करने वाली प्रियंका गाँधी ने राजस्थान में अपनी सरकार की तरफ से आँख मूँद लिया था। राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा बार-बार घोषणा करते रहे कि परीक्षाएँ होंगी, और इधर प्रियंका केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिख कर CBSE की परीक्षाएँ रद्द कराने की माँग कर रही थीं। उन्होंने एक पत्र अशोक गहलोत के नाम क्यों नहीं लिखा?
वो तो भला हो कि बाद में आनन-फानन में बैठक बुला कर राजस्थान में भी परीक्षाएँ रद्द कर दी गईं। संविदा वाले मामले में दिक्कत सिर्फ प्रियंका गाँधी का दोहरा रवैया नहीं है, बल्कि चुनाव पूर्व किया गया कॉन्ग्रेस का वादा भी है। ये कॉन्ग्रेस का चुनावी वादा था कि वो संविदा कर्मियों को स्थायी करेगी। सरकार बनने के बाद समिति भी बनी। 8 बैठकें हो गई हैं लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात। प्रदेश के 11,000 स्कूलों में कम्प्यूटर लैब हैं, ऐसे में मामला संवेदनशील है।
हाथरस मामला, जिसमें पोस्टमॉर्टम और फॉरेंसिक रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हुई थी, उसे लेकर कॉन्ग्रेस ने अच्छा-खासा हंगामा मचाया था। दोषियों को सज़ा दिलाने की माँग की जगह इस घटना का तमाशा बना दिया गया। जबकि राजस्थान में कानून के रखवालों पर ही यौन शोषण और रेप के आरोप लगने के बावजूद उन्होंने कुछ नहीं कहा। राजस्थान से तो उत्तर प्रदेश की सीमा भी लगती है, ऐसे में प्रियंका गाँधी तक ये खबरें जल्दी पहुँचनी चाहिए।
संविदा की बहाली का मुद्दा हो या फिर अपराध का, प्रियंका गाँधी को एक पर रहना चाहिए, ‘घोड़ा-चतुर’ नहीं खेलना चाहिए। लेकिन, ये कॉन्ग्रेस के DNA में है। राहुल गाँधी तो बार-बार अपना बयान और आँकड़े बदलने के लिए मशहूर हैं। वामपंथी दल बंगाल में इनके दोस्त और केरल में दुश्मन हो जाते हैं। जब कोई विचारधारा ही नहीं है तो किसी चीज पर वो कायम कैसे रहेंगे? फिलहाल, चुनौती न सिर्फ राजस्थान में पायलट-गहलोत की कलह सुलझाने की है, बल्कि बेरोजगारों के क्रोध को शांत करने की भी है।