हम बाला साहेब के पक्के शिव सैनिक हैं… बाला साहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है। बाला साहेब के विचारों और धर्मवीर आनंद दीघे साहब की शिक्षाओं के बारे में सत्ता के लिए हमने कभी धोखा नहीं दिया और न कभी धोखा देंगे।
यह बयान एकनाथ शिंदे का है। उन्होंने अपनी बगावत से न केवल शिवसेना और महाराष्ट्र की सरकार को हिला डाला है, बल्कि बाल ठाकरे की हिंदुत्व वाली राजनीति पर भी दावा ठोक दिया है।
वैसे भी शिवसेना की जब भी बात होती है, बाल ठाकरे चर्चा में आ ही जाते हैं। एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद से भी वे अलग-अलग वजहों से चर्चा में हैं। उनके पुराने वीडियो तक वायरल हो रहे हैं। शिंदे ने इस समय असम में डेरा डाल रखा है। उनका दावा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं। इसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर खतरा पैदा कर दिया है। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र से महाविकास अघाड़ी, जिसमें कॉन्ग्रेस और एनसीपी भी साझेदार है, की सरकार जानी तय है।
आम्ही बाळासाहेबांचे कट्टर शिवसैनिक आहोत… बाळासाहेबांनी आम्हाला हिंदुत्वाची शिकवण दिली आहे.. बाळासाहेबांचे विचार आणि धर्मवीर आनंद दिघे साहेबांची शिकवण यांच्याबाबत आम्ही सत्तेसाठी कधीही प्रतारणा केली नाही आणि करणार नाही
— Eknath Shinde – एकनाथ शिंदे (@mieknathshinde) June 21, 2022
इसकी एक वजह यह भी है कि बाल ठाकरे के जमाने में भी शिवसेना बगावत को रोकने में असफल रही। उनके मुकाबले उद्धव राजनीतिक तौर पर कम प्रभावशाली माने जाते हैं। कम से कम ऐसे मौके बाल ठाकरे के जीवनकाल में शिवसेना ने देखे जब पार्टी को काफी तगड़ा झटका लगा। इन बागियों में से एक ने बाद में महाराष्ट्र का गृह मंत्री बनने पर बाल ठाकरे की गिरफ्तारी भी करवाई थी। उस समय बाल ठाकरे को पुलिस के सामने सरेंडर करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
यह भी दिलचस्प है कि कभी शिवसैनिक रहे यही छगन भुजबल आज की उद्वव सरकार में भी मंत्री हैं। इसी तरह जिस संजय निरूपम की बगावत के बाद बाल ठाकरे ने कुत्ता पालना छोड़ दिया, वो निरूपम आज कॉन्ग्रेस में हैं और उनकी पार्टी उद्धव की सरकार में साझीदार है।
“A total of 40 MLAs are present here. We will carry Balasaheb Thackeray’s Hindutva,” said Shiv Sena leader Eknath Shinde after arriving in Guwahati, Assam pic.twitter.com/1v2nKoTBZR
— ANI (@ANI) June 22, 2022
छगन भुजबल
सबसे पहले छगन भुजबल ने पार्टी में बगावती बिगुल फूँका था। ये कहानी तब की है जब महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहेब ठाकरे का दबदबा हुआ करता था। महाराष्ट्र में छगन भुजबल की पहचान एक दबंग ओबीसी नेता की है। बाला साहेब के साथ भी उनके रिश्ते काफी अच्छे थे। लेकिन 1985 में दोनों के बीच मतभेद होने शुरू हुए। बाला साहेब ने भुजबल के पर कुतरते हुए उन्हें प्रदेश की राजनीति से हटाकर सिर्फ मुंबई तक सीमित कर दिया। छगन भुजबल ने शिवसेना के दिग्गज नेता मनोहर जोशी से विवाद और पार्टी में नेता प्रतिपक्ष का पद ना मिलने से नाराज होकर साल 1991 में भुजबल ने खुलकर बगावत कर दी। वे अपने साथ 17 विधायक लेकर कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए। ये पहली बार था जब ठाकरे परिवार को कहीं से धोखा मिला था। हालाँकि, भुजबल कॉन्ग्रेस में भी नहीं रुके और वर्ष 1999 में शरद पवार के नेतृत्व में गठित एनसीपी में शामिल हो गए। आज छगन भुजबल बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की कैबिनेट में मंत्री हैं।
गणेश नाइक
नब्बे के दशक में गणेश नाइक ने शिवसेना को दूसरा बड़ा झटका दिया था। वर्ष 1995 में विधायक बनने के बाद नाइक को उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें महत्वपूर्ण मंत्री पद मिलेगा। लेकिन उन्हें पर्यावरण मंत्री बना दिया गया। इससे नाराज हुए नाइक वर्ष 1999 में गठित शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी में शामिल हो गए थे। नाइक वर्षों बाद एनसीपी छोड़ अब बीजेपी में हैं।
नारायण राणे
मनोहर जोशी की जगह जिस नारायण राणे को बाला साहेब ने महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया था, उन्होंने भी शिवसेना को वर्ष 2005 में अलविदा कह दिया था। राणे अपने 10 समर्थक विधायकों के साथ कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए थे। राणे ने उद्धव ठाकरे की वजह से शिवसेना छोड़ने की बात कही थी। उनके बगावत से कोंकण में शिवसेना को जोरदार झटका लगा था। बाद में राणे ने भी कॉन्ग्रेस में भविष्य न देखते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया।
राज ठाकरे
वर्ष 2006 में शिवसेना में एक और बड़ी बगावत ठाकरे परिवार के अंदर ही हुई। जब शिवसेना का उत्तराधिकारी बनाने की बात आई तो बाल ठाकरे ने भतीजे राज के बजाय बेटे उद्धव को तरजीह देने के संकेत दिए। इससे नाराज होकर राज ठाकरे ने शिवसेना से बगावत कर दी। उस दौरान शिवसेना के कई दिग्गज नेता और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता राज ठाकरे की नवगठित महाराष्ट्र नव निर्माण सेना में शामिल हो गए थे। आज महाराष्ट्र विधानसभा में उनका सिर्फ एक विधायक है।
संजय निरुपम
संजय निरुपम शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की वजह से राजनीति में आए थे। निरुपम कभी शिवसेना के मुखपत्र ‘दोपहर का सामना’ का एग्जीक्यूटिव एडिटर हुआ करते थे। 1996 में ठाकरे ने निरुपम राज्यसभा भेजा था। हालाँकि 2005 में निरुपम ने शिवसेना से इस्तीफा देकर कॉन्ग्रेस की सदस्यता ले ली। निरुपम के जाने के बाद एक मौके पर बाल ठाकरे ने कहा था कि मैंने कुत्ता पालना छोड़ दिया है। 2014 में लोकसभा चुनाव में निरुपम को बीजेपी के उम्मीदवार से बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कॉन्ग्रेस के टिकट पर शिवसेना के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा था।