तमिलनाडु में कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा एक बार फिर गरमाया है। इस द्वीप को साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने एक समझौते के चलते श्रीलंका को दे दिया था। अब इस द्वीप से संबंधित जानकारी और दस्तावेज तमिलनाडु के भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने आरटीआई के जरिए इकट्ठा किए हैं। इस आरटीआई से पता चलता है कि ये द्वीप भारत के अधीन आता था और इसके हम पर सबूत भी थे लेकिन फिर भी इंदिरा गाँधी ने इसे श्रीलंका को दे दिया।
Eye opening and startling!
— Narendra Modi (@narendramodi) March 31, 2024
New facts reveal how Congress callously gave away #Katchatheevu.
This has angered every Indian and reaffirmed in people’s minds- we can’t ever trust Congress!
Weakening India’s unity, integrity and interests has been Congress’ way of working for…
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु में भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने आरटीआई के जरिए इस द्वीप को सौंपे जाने वाले दस्तावेज हासिल किए हैं। दस्तावेजों के हिसाब से यह द्वीप भारत से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसका आकार 1.9 वर्ग किलोमीटर का है। ज्वालामुखी होने के कारण इसपर कोई रहता नहीं रहता, लेकिन यहाँ एक चर्च है और इसके अलावा इसका इस्तेमाल मछुआरे किया करते थे। भारत की आजादी के बाद से ही श्रीलंका यानी तब का सीलोन इसपर अपने दावे करता था। 1955 में उनकी नौसेना ने इस द्वीप पर युद्धाभ्यास किया। वहीं भारतीय नौसेना को युद्धाभ्यास करने से रोक दिया गया।
बताया जाता है कि श्रीलंका को ये द्वीप दिए जाने से पहले ही पूर्व पीएम नेहरू संसद में कह चुके थे कि उन्हें इस द्वीप का विवाद संसद में नहीं सुनना है इसलिए अगर कभी भी ऐसा कोई विवाद होगा तो वो इसे छोड़ने में कोई विचार नहीं करेंगे। उनके इस कथन को उस समय के कॉमनवेल्थ सेक्रेट्री गुनदेविया ने नोट किया और बाद में उसे संसद की इनफॉरमल कंसल्टेटिव कमेटी के पास बैकग्राउंडर की तरह शेयर किया गया।
इस द्वीप को लेकर मौजूदा जानकारी भी बताती है कि 17वीं शताब्दी तक यह द्वीप मदुरई के राजा रामनद की जमींदारी के अधीन था। बाद में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यह मद्रास प्रेसिडेंसी के अधीन आ गया। शुरू में इस द्वीप का इस्तेमाल मछुआरे किया करते थे, लेकिन उस समय भी सीलोन के साथ इस द्वीप को लेकर तनाव रहता था। बाद में दोनों देशों के बीच बैठकें हुईं।
जानकारी के मुताबिक, एक बैठक कोलंबो में की गई और फिर दूसरी नई दिल्ली में। इसके बाद 1974 में इंदिरा गाँधी ने सहमति से ये द्वीप श्रीलंका को दे दिया बावजूद इसके कि भारत के पास इस द्वीप को लेकर कई सबूत थे। इसमें राजा रामनद का भी जिक्र था। वहीं श्रीलंका के पास कोई दावा नहीं था, फिर भी ये द्वीप उन्हें मिला।
अजीब बात तो ये है श्रीलंका को ये द्वीप देने के लिए विदेश सचिव द्वारा ये तक कहा गया कि इस द्वीप पर श्रीलंका का दावा मजबूत है। आरटीआई के मुताबिक ऐसा दिखाया गया कि ये द्वीप जफनापट्टनम का हिस्सा था। वहीं भारत की सर्वे टीम स्वीकार करती है कि उन्होंने यह नहीं बताया था कि रामनद के राजा के पास इसका ओरिजनल टाइटल था।
जब बाद में ये द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया तो इसके साथ कुछ समझौते हुए। इन समझौतों में शुरू में कहा गया कि मछुआरे अपने काम के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर पाएँगे। इसके अलावा इस द्वीप पर ने चर्च में भारतीय बिना वीजा के आ जा सकेंगे। लेकिन बाद में 1976 में हुए एक और समझौते में कहा गया कि भारतीय मछुआरे मछली पकड़ने वाले जहाज को लेकर श्रीलंका के एक्सक्लूसिल इकनॉमिक जोन में नहीं जा सकते।
इस समझौते के बाद इस द्वीप का विवाद काफी भड़का था। तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इसका खूब विरोध किया था। 1991 में तो तमिलनाडु की विधानसभा में इस द्वीप को भारत में मिलाने का प्रस्ताव भी पास किया गया। 2008 में जयललिता ने सर्वोच्च न्यायालय में सवाल उठाया था कि बिना संविधान संशोधन के भारत सरकार ने अपने द्वीप को किसी और देश को कैसे सौंप दिया गया। 2011 में उन्होंने इसे लेकर विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित करवाया, मगर अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने 2014 में कहा कि यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया है और इसे अगर लेना है तो युद्ध लड़ने के आलावा दूसरा कोई चारा नहीं है।
इसके अलावा पीएम मोदी ने भी इस द्वीप का मुद्दा संसद में 2023 में उठाया था। उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए कहा था, “ये जो लोग बाहर गए हैं, उनसे पूछिए ये कच्चातिवु द्वीप क्या है? और ये कच्चातिवु कहाँ है? जरा उनसे पूछिए… इतनी बड़ी बड़ी बातें कर के देश को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं… और ये डीएमके वाले, उनकी सरकार, उनके मुख्यमंत्री मुझे आज भी चिट्ठी लिखते हैं कि मोदी जी कच्चातिवु द्वीप को वापिस लाइए। ये कच्चातिवु है क्या? किसने किया… तमिल नाडु से आगे श्रीलंका से पहले एक टापू, किसने किसी दूसरे देश को दिया था? कब दिया था? क्या ये भारत माता नहीं थी वहाँ। क्या वो माँ भारती का अंग नहीं था। इसको भी आपने तोड़ा और कौन था उस समय। श्रीमती इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में हुआ था ये। कांग्रेस का इतिहास, माँ भारती को छिन्न-भिन्न करना का रहा है।”