कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए ऑडिट पैनल ने अपनी रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब पूरा देश मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए संघर्षरत था, तब अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने 4 गुणा अधिक ऑक्सीजन की माँग की थी।
इस दौरान राजनैतिक लाभ लेने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने लगातार यह कहा था कि दिल्ली को उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं प्राप्त हो रही है, इसके कारण दिल्ली को आवश्यकता से अधिक ऑक्सीजन प्रदान करनी पड़ी। यह सब तब हुआ जब बाकी राज्य लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन के लिए लगातार प्रतीक्षा कर रहे थे।
ऑडिट पैनल की रिपोर्ट में PESO के द्वारा किए गए अध्ययन को शामिल किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्य टैंकर और कंटेनर की कमी से जूझ रहे थे, वहीं दिल्ली के 4 कंटेनर सूरजपुर आईनॉक्स में खड़े थे। ये कंटेनर इसलिए खड़े थे, क्योंकि दिल्ली में आपूर्ति आवश्यकता से ज्यादा थी और लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन को स्टोर करने की कोई जगह नहीं थी। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि दिल्ली द्वारा जितनी ऑक्सीजन की माँग की जा रही थी, वास्तविक आवश्यकता उससे कहीं कम थी।
अब चूँकि दिल्ली के अस्पतालों में आवश्यकता से अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध थी। इसलिए ऑक्सीजन निस्तारण में अधिक समय लगने लगा। इससे रिलायंस जैसे अपूर्तिकर्ताओं को भी अपने कंटेनर प्राप्त करने और उन्हें रिफिल करके भेजने में औसत से अधिक समय लग गया।
अंतरिम रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली न तो ऑक्सीजन के वास्तविक उपयोग का ऑडिट कर रही थी, न ही इसकी वास्तविक माँग का आकलन कर रही थी। इससे केंद्र सरकार उत्तरी भारत के अन्य राज्यों को ऑक्सीजन आवंटित कर सकने में असमर्थ थी, जहाँ अस्पतालों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (LMO) की वास्तविक आवश्यकता थी।
ऑडिट पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, 5 मई से 11 मई के बीच पेट्रोलियम एंड ऑक्सीजन सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (PESO) द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया था कि दिल्ली के लगभग 80% प्रमुख अस्पतालों में 12 घंटे से अधिक समय तक LMO का स्टॉक था। औसत दैनिक खपत 282 मीट्रिक टन से 372 मीट्रिक टन के बीच पाई गई और दिल्ली में उस समय मांग की जा रही 700 मीट्रिक टन LMO के लिए पर्याप्त भंडारण सुविधाएँ नहीं थीं।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली सरकार द्वारा LMO की कमी का दावा किया गया था। उसके बाद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया था। वहीं, केंद्र ने विशेषज्ञों के सुझाव के आधार पर 415 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति निश्चित करने की बात कही थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 9 मई से केजरीवाल सरकार पड़ोसी राज्यों में वैकल्पिक भंडारण स्थान प्राप्त करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि उनके पास LMO के लिए भंडारण स्थान समाप्त हो गया था। दिल्ली सरकार ने भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण एयर लिक्विड कंपनी से आवंटित LMO (150 एमटी) की तुलना में कम मात्रा में ऑक्सीजन उठाई थी। केजरीवाल सरकार ने कंपनी से पानीपत और रुड़की में अपने संयंत्रों में उनके लिए LMO स्टोर करने के लिए भी कहा था।
इतना ही नहीं, दिल्ली की AAP सरकार के कारण ओडिशा में लिंडे और JSW झारसुगुड़ा जैसे संयंत्रों को अपने टैंकर होल्ड करने और अन्य राज्यों को आपूर्ति में देरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। दरअसल, दिल्ली सरकार ने उपलब्ध और आवंटित ऑक्सीजन टैंकरों का उपयोग ही नहीं किया अथवा अस्पतालों में स्टोरेज की अनुपस्थिति के कारण टैंकर वापस कर दिए गए। गोयल गैसेस ने सूचित किया था कि दिल्ली के अस्पतालों के पास आवश्यक ऑक्सीजन उपलब्ध है और उनके पास कोई अतिरिक्त भंडारण सुविधा उपलब्ध नहीं है इसलिए उनके टैंकर लंबे समय तक इंतजार करते रहे जिसके परिणामस्वरूप अन्य राज्यों को ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी हो गई।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने केंद्र सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए बड़े पैमाने पर हंगामा किया और दिल्ली की ऑक्सीजन को रोके रखने के लिए अन्य राज्यों को भी जिम्मेदार ठहराया था। केजरीवाल ने तो प्रोटोकॉल को भी तोड़ा और पीएम मोदी के साथ मुख्यमंत्रियों की गोपनीय बैठक के वीडियो फुटेज को टीवी पर दिखा दिया। मीटिंग में उन्हें यह कहते हुए देखा गया कि दिल्ली को ऑक्सीजन की बहुत अधिक जरूरत है। दिल्ली सरकार का राजनैतिक और मीडिया का ड्रामा इतना अधिक हो गया था कि अंततः सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा।