Thursday, November 14, 2024
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जो था भारत का राजदंड, उसे बना दिया नेहरू की ‘स्वर्ण छड़ी’: जानिए कैसे PM मोदी की नजर में आया ‘सेंगोल’ का गुमनाम इतिहास

सेंगोर सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। 1947 में आखिरी वायसराय ने इसे पंडित नेहरू को सौंपा था। बाद में इसे इलाहाबदा में रख दिया गया और लिखा गया कि ये नेहरू को तोहफे में मिली स्वर्ण छड़ी है।

नए संसद भवन के उद्घाटन की खबर के साथ चर्चा में आए ‘सेंगोल’ को कुछ समय पहले कोई जानता तक नहीं था। मगर पीएम मोदी के प्रयासों से अब इसकी महत्वता और इसका इतिहास सब मुख्यधारा मीडिया में है। साल 1947 में स्वतंत्रता के समय आखिरी वायसराय माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ‘सेंगोल’ पंडित नेहरू को सौंपा था। इसके बाद इसे इलाहाबाद संग्राहलय में ‘नेहरू को तोहफे में मिली स्वर्ण छड़ी’ बताकर रख दिया गया।

प्नधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी सूचना कुछ साल पहले एक वीडियो से लगी। 5 फीट लंबे सेंगोल पर वीडियो ‘वुम्मिडी बंगारू ज्वेलर्स (VBJ)’ ने बनाई थी। इसके मैनेजिंग डायरेक्टर आमरेंद्रन वुम्मिडी ने कहा कि उन्हें सेंगोर के बारे में खुद भी नहीं पता था। वो तो 2018 में एक मैग्जीन में इसका जिक्र देखा और जब खोजा तो 2019 में उन्हें ये इलाहाबाद के एक म्यूजियम में रखा हुआ पाया।

इसके बाद उन्होंने म्यूजियम के अधिकारियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की सोची। हालाँकि महामारी के कारण ऐसा नहीं हो पाया, और सेंगोल पर एक वीडियो बनाई गई। बाद में यह वीडियो पीएम मोदी के संज्ञान में आई। पीएम कार्यालय ने एक टीम नियुक्त की जिसने वुमुड्डी ग्रुप से संपर्क किया। खोजबीन में सामने आया कि ये सेंगोल को बंगलौर के फेमस वुम्मिडी बंगारू चेट्टी एंड सन्स ज्वैलर्स एंड डायमंड मर्चेंट्स ने ही तैयार किया था। उनके परिवार के पास सेंगोर की एक तस्वीर भी है।

इस दौरान यह भी पता चला कि 1947 में सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाने के लिए सी राजगोपालाचारी के अनुरोध पर तमिलनाडु (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) में तिरुववदुथुरई अधिनाम द्वारा राजसी 5 फीट लंबा सेंगोल का निर्माण किया गया था। इसे बनाने के लिए वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को मिली थी।

बंगारू चेट्टी द्वारा सेंगोल को 100 से अधिक सोने के गहनों से बनाया गया था। जिन्होंने उस समय इसे बनाने के केवल 15000 रुपए लिए थे और 30 दिन से भी कम का समय में इसे तैयार कर दिया था। उनके साथ इसे बनाने में इसे बनाने में उनके बेटों वुम्मिदी एथिराजुलू और वुम्मिदी सुधाकर ने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। लेकिन इनका परिवार वक्त के साथ सेंगोल को भूल गया।

आमरेंद्रन कहते हैं कि उन्हें नहीं पता था कि सेंगोल कैसा दिखता है और उसे कैसे बनाया गया। वुम्मिडी परिवार की मानें तो वो खुद उस सेंगोल को भुला चुके थे। ये भी नहीं पता था सेंगोल लंबे समय से कहा था। सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। इसकी प्रथा तमिलनाडु में शासन करने वाले चोल, पांडियार, पल्लव राजवंशों के समय से है। उन्होंने सेंगोर को नेहरू की स्वर्ण छड़ी बताने पर कहा कि हाँ मैंने म्यूजियम में रखे सेंगोर की कुछ तस्वीरें देखीं, गलती हुई है।

वहीं इंडिया टुडे से बातचीत में वुम्मिदी एथिराजुलू के बेटे उजय वुम्मिदी ने बताया वो कहते हैं कि उन्हें नहीं पता था सेंगोल लंबे समय से कहाँ था। अगर आज ये दोबारा मिला तो इसके लिए मीडिया और पीएम मोदी का आभार। पीएम मोदी ने हमें ढूँढकर इसके बारे में पूछा और हमारी स्मृतियों को जिंदा किया। वैसे ये सेंगोल कहीं खोया नहीं था। बस यादों से धूमिल हो गया था। कुछ समय पहले उनके मार्केटिंग हेड को ये छड़ी के रूप में इलाहाबाद म्यूजियम में मिला। इसे बॉक्स में रखा गया था और लिखा कि ये स्वर्ण छड़ी नेहरू को तोहफे में मिली थी।

बता दें कि सेंगोल 1947 में नेहरू को मिलने के बाद से गायब हो गया था। लेकिन 15 अगस्त 1978 में कांचीपुरम के कांची कामकोटि पीतम के 68वें संत श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती स्वामिगल जिन्हें महा पेरियावा नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने इसके बारे में एक आयोजन में अपने अनुयायी डॉ बी आर सुब्रमण्यम को बताया और उन्होंने इसका जिक्र अपनी किताब में किया। इसके बाद इसी किताब के हवाले से मीडिया में लेख प्रकाशित हुए और उन्हीं लेखों की बदौलत आजाद भारत में पंडित नेहरू को मिले सेंगोल की कहानी हमारे सामने है।

मीडिया में यह भी बताया जा रहा है कि सेंगोर की जानकारी पीएम मोदी को प्रसिद्ध डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने एक चिट्ठी के जरिए भी दी गई थी। उन्होंने अपनी चिट्ठी में एक तमिल मैग्जीन ‘तुगलक’ में प्रकाशित एक लेख का हवाला देते हुए ‘सेंगोल’ के बारे में पीएम को बताया। साथ ही माँग उठाई की पीएम इस बारे में जानकारी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सभी देशवासियों के साथ साझा करें।

पीएम मोदी कार्यालय में ये चिट्ठी रिसीव होने के बाद भी सेंगोल की खोजबीन शुरू हुई। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स के विशेषज्ञों की मदद ली और राष्ट्री अभिलेखागार से लेकर उस वक्त तमाम अखबारों और डॉक्यूमेंट्स में इसके बारे में खँगाला गया। हालाँकि बाद में पता चला कि ये सेंगोल प्रयागराज के आनंद भवन में है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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