उत्तर भारतीयों, खासकर बिहार के लोगों को लेकर अक्सर नस्लीय टिप्पणी कर के अपनी क्षेत्रीय राजनीति चमकाने वाले ठाकरे परिवार को लेकर एक किताब में खुलासा किया गया है।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, स्वर्गीय प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे की पुस्तक (ग्राम्यंचा सदिंता इतिहास अरहत नोकरशाहिचे बंदे/Gramnyancha Sadyanta Itihas Arhat Nokarshahiche Bande/A History of Village Disputes or Rebellion of the Bureaucracy) इस पुस्तक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु समुदाय, जिससे ठाकरे परिवार संबंध रखता है, प्राचीन मगध (वर्तमान बिहार में) से बाहर चले गए, महापद्म नंद के बाद, तीसरी या चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में समुदाय मगध से बाहर चला गया और ‘योद्धाओं और शास्त्री’ के रूप में अपना जीवनयापन करने लगा।
पत्रकार धवल कुलकर्णी की पुस्तक द कजिन्स ठाकरे: उद्धव, राज एंड द शैडो ऑफ द शैया (पेंग्विन रैंडम हाउस) में इस बात का जिक्र किया गया है।
शिवसेना प्रमुख स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे, शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने जमकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ राजनीति की है। लेकिन अब एक पत्रकार ने अपनी किताब में खुलासा किया है की शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के पिता स्वर्गीय प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे का परिवार बिहार से संबध रखता है।
इस पुस्तक में चचेरे भाइयों के बीच टकराव के बारे में भी कई खुलासे किए गए हैं, जिनमें बताया गया है कि इन भाइयों के बीच प्रतिस्पर्धा की शुरुआत दिसंबर 1993 में देखा गया था जब राज ठाकरे ने एक मोर्चा चलाया था।राज ठाकरे ने नागपुर में पहले बेरोजगार युवाओं के मोर्चा का आयोजन किया था। यह बात साफ थी कि यह मोर्चा काफी बड़ा होने जा रहा था।
मोर्चे से एक रात पहले, राज को मातोश्री (ठाकरे का घराना) से एक फोन आया, जिसमें उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि उद्धव को भी सार्वजनिक बैठक में बोलने के लिए मिला। राज, जो नागपुर में होटल सेंटर पॉइंट में रह रहे थे, परेशान थे क्योंकि उन्हें लगा कि उद्धव क्रेडिट का हिस्सा चाहते हैं।
पुस्तक में दोनों भाइयों के राजनीति के तरीकों के बारे में भी विस्तृत तरीके से बताया गया है और दोनों भाइयों द्वारा 1997 में खेले गए बैडमिंटन मैच का भी जिक्र किया गया है।