भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी सुरेश रैना की ‘मैं ब्राह्मण हूँ’ वाले बयान की जमकर आलोचना हो रही है। दिलचस्प यह है कि उत्तर प्रदेश से आने वाले रैना के इस बयान पर बवाल तब मचाया जा रहा है, जब राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ‘ब्राह्मण’ वर्ग को लुभाने में अभी से विपक्ष जुट गया है। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा परशुराम प्रतिमा लगाने जा रही है तो मायावती की बसपा ब्राह्मण सम्मेलन करने वाली है। दिलचस्प यह भी है कि अखिलेश और मायावती के इस पॉलिटिकल स्टंट पर वाह-वाह करने वाली जमात ही रैना के बयान पर थू-थू करने में जुटी है।
उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों का ब्राह्मणों पर अचानक ‘प्यार’ उमड़ना उनकी वह सियासी ताकत है जो पिछले तीन चुनावों से राज्य में दिख रही है। बीते तीन चुनाव में जो पार्टी सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक जितवाने में कामयाब रही है सरकार उसी की बनी है। तिलक, तराजू और तलवार, उसको मारो जूते चार जैसे नारे से शुरुआती सियासत करने वाली बसपा ने बाद में नारा दिया ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा और इस नारे की बदौलत ही वह 2007 में अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही।
पर असल सवाल यह है कि क्या ब्राह्मण विपक्ष के इस मौसमी प्यार के जाल में फँसेगा? उस पहले राज्य में ब्राह्मणों की राजनैतिक हैसियत पर नजर डालते हैं।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की जनसंख्या 8-10 प्रतिशत बताई जाती है। कुछ लोग इससे अधिक भी बताते हैं और कुछ लोग इससे कम भी। भूमिहार या त्यागी वर्ग की संख्या मिला दें तो यह 10-12 प्रतिशत हो जाती है। यह ऐसा प्रतिशत है, जो किसी की सरकार को बनाने और बिगाड़ने का दमखम रखता है। ऐसे में ब्राह्मण जनसंख्या अगर किसी दल से छिटक जाए तो उसके लिए सत्ता में बने रहना मुश्किल हो सकता है।
यही कारण है कि एक बार फिर ब्राह्मणों को साधने में लगे हैं। पार्टी महासचिव सतीशचंद्र मिश्रा ने उत्तर प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे के शॉर्प शूटर अमर दूबे की पत्नी खुशी दूबे का केस लड़ने की बात कह खुद को ब्राह्मण समाज का रहनुमा और बसपा को ब्राह्मण हितैषी होने की कोशिश की है। अब वे 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन करने जा रहे हैं। वहीं, मनुवाद के नाम पर इस वर्ग को गाली देने वाले मुलायम यादव और उनके उत्तराधिकारी अखिलेश यादव अब परशुराम की मूर्ति बनाकर उन्हें अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं।
वैसे राज्य के मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए इसकी उम्मीद कम ही लगती है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में जिस बीजेपी के टिकट पर 46 ब्राह्मण विधायक जीते थे, उससे यह वर्ग किनारा करेगा। साथ ही अतीत के वे अनुभव भी इस वर्ग को ऐसा करने से रोकेंगे जो बताते हैं कि तमाम दावों के बावजूद सपा-बसपा सत्ता में आने पर उसे हाशिए में धकेल देती है।