Friday, November 15, 2024
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बंगाल: बिना अनुमति कोरोना टेस्ट कर सकेंगे डॉक्टर, बैकफुट पर ममता सरकार

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर कहा है कि यह भाजपा के लिए एक बड़ी जीत है। आखिरकार लॉकडाउन के 38 दिन बर्बाद करने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने आधिकारिक तौर पर अपने उस आदेश को वापस ले लिया है, जिसमें डॉक्टरों के लिए कोरोना की जाँच करने से पहले सरकार की मँजूरी लेनी जरूरी थी।

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने वह आदेश वापस ले लिया है जिसमें कोरोना टेस्ट से पहले डॉक्टरों को अनुमति लेने को कहा गया था। अब प्रदेश के डॉक्टर सरकार की अनुमति के बिना भी कोरोना की जाँच कर सकेंगे। इस मामले में ममता सरकार लगातार बैकफुट पर नजर आ रही है। उस पर कोरोना से जुड़े आँकड़े छिपाने के भी आरोप लग रहे हैं।

पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग की ओर से 30 अप्रैल को जारी एडवायजरी के दूसरे बिंदू में कहा गया है, “यह स्पष्ट किया जाता है कि आईसीएमआर जाँच प्रोटोकॉल के तहत अब किसी भी अस्पलात में किसी मरीज को भर्ती करने या इलाज करने या फिर व्यक्तिगत तौर पर कोरोना की जाँच के लिए सरकार से अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है।”

स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर कहा है कि यह भाजपा के लिए एक बड़ी जीत है। आखिरकार लॉकडाउन के 38 दिन बर्बाद करने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने आधिकारिक तौर पर अपने उस आदेश को वापस ले लिया है, जिसमें डॉक्टरों के लिए कोरोना की जाँच करने से पहले सरकार की मँजूरी लेनी जरूरी थी। बंगाल ने इस फैसले के कारण कई लोगों की जिंदगियों को छीन लिया, जो कि दुखद है।

मालवीय ने दूसरे ट्वीट में लिखा कि यह एडवाइजरी पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की उस शिकायत के बाद जारी की गई, जिसमें किसी भी व्यक्ति के कोरोना जाँच के लिए ममता सरकार की अनुमति जरूरी थी। यह कोरोना मामलों की संख्या को कम रखने का बंगाल सरकार का एक तरीका था, जबकि यह पार्दर्शिता का समय है।

दरअसल इस महीने की शुरुआत में पश्चिम बंगाल सरकार ने मृत्यु का वास्तविक कारण तय करने के लिए पाँच डॉक्टरों की एक समिति का गठन किया था। इस कदम से संदेह पैदा हो गया था कि पश्चिम बंगाल अन्य राज्यों के विपरीत, कोरोनो वायरस रोगियों की मौतों के लिए पहले से मौजूद स्थितियों के कारण अनिच्छुक है।

ममता सरकार के आदेश में कहा गया था कि मृत्यु प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले डॉक्टरों को एक फॉर्म भरना होगा, जिसके बाद पाँच डॉक्टरों की एक समिति द्वारा जाँच की जाएगी। इसके अलावा, उन्हें स्क्रब टाइफस, डेंगू, मलेरिया और अन्य सहित परीक्षण रिपोर्ट संलग्न करना भी आवश्यक होगा।

इसके बाद बंगाल के नॉन रेसिडेंट मेडिकल प्रोफेशनलों ने कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों के हवाले से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक खुली चिट्ठी लिखकर कहा था, सिर्फ सरकार की ओर से नियुक्त कमिटी ही इसकी घोषणा करती है कि मरीज कोरोना से मरा है।

जब कोरोना वायरस का मरीज भी साँस संबधी रुकावटों की वजह से मर गया, समिति ने कोरोना वायरस को मौत की वजह नहीं बताया। कोरोना वायरस को मौत की वजह नहीं बताना आँकडों के साथ फर्जीवाड़ा करना है, जबकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने अपनी गाइडलाइंस में इसके स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं।

गौरतलब हो कि पिछले दिनों पश्चिम बंगाल से कुछ ऐसी खबरें भी सामने आई थीं कि पुलिसकर्मी और स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी पहचान छिपाते हुए रात में मृतकों के संस्कार किया था, जिससे पश्चिम बंगाल में कोरोनो वायरस के केसों को लेकर संदेह और बढ़ गया था।

वहीं बंगाल के डॉक्टरों ने दावा किया था कि कोरोना वायरस को लेकर राज्य सरकार द्वारा दी जा रही जानकारियों में हेरफेर है। वास्तिवक मामलों का खुलासा करने पर डॉक्टरों ने अपनी नौकरी खोने की आशंका व्यक्त की। डॉक्टरों का कहना था कि राज्य की ओर से जारी आधिकारिक आँकड़े संक्रमित मरीजों की वास्तविक संख्या से बहुत कम है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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