Saturday, July 27, 2024
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बिहार में आंध्र से आने वाली मछलियाँ बैन, व्यापारियों में भारी आक्रोश

बिहार के मछली व्यापारियों का कहना है कि जब इन्हीं मछलियों की जाँच आंध्र प्रदेश में की गई तो ये सही थे और इसका अप्रूवल रिपोर्ट भी उनके पास मौज़ूद है

बिहार में आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों से आयातित मछलियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। बिहार मछलियों का बहुत बड़ा बाज़ार है और राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद मछली व्यापारियों को अपने धंधों के ठप हो जाने का डर सता रहा है। इस मामले में बिहार मछली व्यवसायी संघ के सचिव अनुज कुमार ने अन्य प्रदेशों से आयातित मछली में फार्मलिन सहित अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक होने से इनकार किया, जो कि सरकार की तरफ़ से बताया जा रहा है।

बिहार सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ मछली व्यापारियों ने कड़ा विरोध दर्ज़ कराया है। उन्होंने कहा कि उन्हें ये बातें अख़बारों से माध्यम से पता चलीं। राज्य सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज़ कराने के लिए क़रीब 500 मछली व्यापारियों ने पटना की मछली मंडी में शनिवार (जनवरी 12, 2019) को एक बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में व्यापारियों ने बिहार सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि जिस फार्मलिन की बात सरकारी महक़मों द्वारा की जा रही है, वो सरासर झूठी और बेबुनियाद है।

पटना की मछली मंडी बंद है, व्यापार ठप

व्यापारियों ने शिकायत करते हुए बताया कि अक्टूबर 2018 में सरकार ने उनसे सैंपल लेकर जाँच की थी। उस जाँच की रिपोर्ट अब आई है। रिपोर्ट आने में होने वाली तीन महीने की देरी पर भी व्यापारियों ने सवाल खड़े किए। मछली व्यापारियों ने कहा कि मछली एक कच्चा माल है और कोई भी कच्चा माल 4 से 6 दिन में ही खराब हो जाता है। उन्होंने पूछा कि जिस फार्मलिन को किट से महज़ 2 मिनट में जाँचा जा सकता है, उसमें इतनी देरी क्यों लगाई गई?

मछली व्यापारियों ने दावा किया कि आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा भी फार्मलिन किट से ही जाँच की जाती है। आंध्र के जाँच में मछलियाँ सही पाई गईं हैं और व्यापारियों के पास इसका ‘अप्रूवल रिपोर्ट’ भी है। उन्होंने यह बात भी पूछा कि बिहार सरकार द्वारा इन आयातित मछलियों को बैन करने के पीछे तर्क क्या है?

‘ताज़े फ़िश’ स्टार्ट-अप के मालिक रंजीत कुमार के 4 सवाल:

  • बिहार सरकार के तुगलकी रवैये के कारण रोजगार से ज्यादा बेरोजगार बढ़ रहा है। फार्मलिन जाँच की बात सरकार कहती है लेकिन यह नहीं बताती कि आख़िर जाँच में इतनी देरी क्यों होती है जबकि बंगाल और गुवाहाटी में 1 दिन में फैसला आता है।
  • मैंने ताज़े फिश ऑनलाइन खोला था। मछली ज़्यादा बिकने लगी थी। अपनी पूंजी लगा कर, हम मछली अपनी गाड़ी से मँगवाने लगे और कुछ मंडी से ख़रीदने लगे। अब बंद कर दिया गया तो मेरी पूंजी गई और बचा माल तो गया ही।
  • बिहार सरकार की रिपोर्ट में यह लिखा है कि जिंदा मछली में फार्मलिन पाया गया है। अब जो लेप बस मुर्दा मछली पर लग सकता है क्या वो कोई जिंदा में लगा भी सकता है ? लॉजिक गज़ब है सरकार का।
  • 2 वैन से राज्य सरकार ख़ुद से मछली बेचेगी? 2 गाड़ी से पूर्ति हो जाएगा? सब आदमी के कमाने का साधन छीन के जब सरकार ही हर काम करेगी तो हमलोग क्या करेंगे, दूसरे राज्य में जाके मार खाएँगे?

बिहार मछली व्यापारी संघ ने आग्रह किया कि बिहार सरकार फिर से व्यापारियों के सामने जाँच करवाए और रिपोर्ट उनके सामने दे। उन्होंने दावा किया कि अगर उनकी मछलियॉं खाने योग्य नहीं निकलती हैं तो वे ख़ुद इसे बैन कर देंगे। व्यापारियों की इस माँग पर सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रया नहीं आई है।

बिहार सरकार के इस निर्णय के बाद मछली व्यापारियों को काफ़ी घाटे का सामना करना पड़ रहा है। मछलियों की होम डिलीवरी करने वाले स्टार्ट-अप को ₹40 लाख का भारी घाटा हुआ है। साथ ही, इससे वहाँ के व्यापारियों का घाटा करोड़ों में है।

ज्ञात हो कि बिहार सरकार ने आंध्र और बंगाल से आने वाली मछलियों पर रोक लगाने के साथ ही इनके भण्डारण पर भी तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगा दिया है। अगर कोई इन नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है तो उसे सात सालों तक की सज़ा हो सकती है। यही नहीं, इसके लिए ₹10 लाख तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। सज़ा के इतने कड़े प्रावधानों के कारण मछली व्यापारियों में डर का भी माहौल है।

स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय सिंह ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस बारे में और अधिक अध्ययन किया जा रहा है और पशुपालन विभाग के एक्सपर्ट्स भी इस मामले को देख रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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