Friday, April 26, 2024
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यौन अपराध के पीड़ित ही नहीं ‘आरोपितों’ की भी पहचान छिपाई जानी चाहिए: SC में याचिका

आज हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से बनाए गए कानूनों का कुछ लोगों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। जिसके कारण इस तरह की याचिका दायर करने की जरूरत पड़ी।

यौन अपराध के आरोपितों की पहचान छुपाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में मामले की जाँच पूरी होने तक आरोपित की पहचान छिपाने के लिए दिशानिर्देश तय करने के संबंध में निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। साथ ही याचिका के जरिए माँग की गई है कि यह निर्देश मीडिया को भी दिए जाएँ।

यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय के यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि कभी-कभी झूठे आरोप लगने के कारण एक निर्दोष का पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है, इसके कई उदाहरण है, जिनमें किसी को फंसाया गया। जिसके कारण आरोपित ने आत्महत्या कर ली। बता दें कि यौन अपराध के मामलों में पीड़ित की पहचान नहीं उजागर की जा सकती है।

आज हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से बनाए गए कानूनों का कुछ लोगों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। जिसके कारण इस तरह की याचिका दायर करने की जरूरत पड़ी। निसंदेह ही एक बलात्कारी को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए, लेकिन ये भी सच है कि कानूनों का दुरुपयोग करके किसी निर्दोष को नहीं फँसाया जाना चाहिए। जिस तरह यह जरूरी नहीं है कि यौन अपराध की पीड़ित कोई महिला ही हो, उसी प्रकार यह जरूरी नहीं है कि यौन अपराध का आरोपित पुरुष ही हो।

साल 2016 में दिल्ली की एक अदालत ने एक निर्दोष व्यक्ति को बरी किया था जिस पर पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर इलाके में 2013 में पहचान वाली एक महिला के साथ दुष्कर्म करने का आरोप था। इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि ऐसे मामलों में न केवल आरोपी की प्रतिष्ठा और गरिमा को बहाल करना मुश्किल हो जाता है बल्कि अपमान, दुख, संकट और आर्थिक नुकसान की भरपाई करना भी काफी मुश्किल हो सकता है, लेकिन बरी किए जाने से उसे कुछ सांत्वना मिल सकती है और वह नुकसान के लिए मामला दर्ज करा सकता है। गौरतलब है इस सुनवाई के दौरान व्यक्ति ने दावा किया था कि वह पिछले पाँच साल से महिला को जानता है तथा महिला उससे पैसे ऐंठने की कोशिश कर रही थी। उसने यह भी कहा कि उन दोनों के शारीरिक संबंध आपसी सहमति के आधार पर बने थे।

इतना ही नहीं साल 2018 में दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में जनवरी से मई के बीच 6 जिलों से जुटाए आँकड़ों के अनुसार कुल 266 दुष्कर्म के केस दर्ज हुए थे। इनमें 50 फर्जी साबित हुए थे। अब ऐसी स्थिति में ये वाकई विचार करने का विषय है कि यौन अपराध के आरोपित पर अपराध सिद्ध होने तक उसकी पहचान उजागर की जाए या नहीं। देखना है कि कोर्ट का इस याचिका पर क्या फैसला आता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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