एक हिंदू, खासतौर पर हिंदू महिला के रूप में मैं जानती हूँ कि एक इस्लामिक देश में मेरी क्या हैसियत होगी और मेरे क्या हक होंगे। इस्लामिक देश क्या, किसी भी ऐसी छोटी जगह पर भी, जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हों, वहाँ बतौर हिंदू महिला अपनी ‘औकात’ का अंदाजा है। मैं इस बात से पूरी तरह से वाकिफ हूँ कि इस्लाम की जमीन पर हिंदू सिर्फ अपमान का ‘सामान’ होता है। मैं ये बात भी जानती हूँ कि एक हिंदू के पास या तो मरने या फिर धर्म परिवर्तन करने का ही विकल्प होता है।
मैं ये भी जानती हूँ कि इस्लाम की धरती पर एक हिंदू महिला की किस्मत कितनी भयावह है- मैं एक ऐसे देश से आती हूँ, जहाँ योद्धा रानियों ने खुद को इसलिए जलाकर मार (जौहर) डाला, ताकि उनके शवों को इस्लामी हमलावर अपवित्र न कर सकें। ये सब जानते हुए भी बांग्लादेश में चल रही हिंसू और शेख हसीना के भागने के बाद हिंदुओं पर अत्याचारों को किस तरह से लीपा-पोती करके छिपाया जा रहा है, मैं हैरान हूँ। मैं हैरान हूँ कि किस तरह से इतने बड़े अपराधों का सरलीकरण किया जा रहा है, ताकि हिंदुओं की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाए और अगर जाए भी तो किसी तरह उन्हें इग्नोर कर दिया जाए।
सभ्य लोग इस बात से अभिशप्त हैं कि बर्बरता उन्हें आश्चर्य लगती है, जबकि उन्हें इसका अंदाजा होता है। फिर भी लोग ये सोचकर तिनके का सहारा लेते हैं कि कभी तो इस्लाम बदलेगा और ये शांति फैलाएगा, क्योंकि हमारी तो ब्रेनवॉशिंग कर दी गई है कि घटिया लोग तो इस महजब के बहुत छोटे से हिस्से हैं। सभ्य लोग कहते हैं कि ‘सभी मजहब शांति सिखाते हैं, लेकिन उस मजहब को मानने वाले इसे तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं।’ वो ऐसा इसलिए कहते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास होता है कि असलियत कभी न कभी तो सामने आएगी, कम से कम इसी बात का बहाना बनाकर मुँह छिपा लेंगे। ऐसे में वो कई मामलों के सामने होने के बावजूद मुँह घुमा लेते हैं।
शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा कोई नई बात नहीं है। यह पहली बार नहीं है कि हिंदुओं को सताया जा रहा है। हिंदुओं का व्यवस्थित और संस्थागत जातीय सफाया पहले से तय था क्योंकि कोई भी मुस्लिम समाज अपने मजहबी टारगेट से बहुत लंबे समय तक भटक नहीं सकता।
बांग्लादेश में अमेरिका के शासन परिवर्तन अभियान और जमात-ए-इस्लामी द्वारा शेख हसीना सरकार के पतन की साजिश रचने के बारे में काफी कुछ लिखा और कहा जा चुका है। लेकिन जिस बात पर ध्यान नहीं दिया गया, वह है जातीय सफाया और हिंदुओं के खिलाफ टारगेटेड हमले। 5 अगस्त 2024 को, जब दंगाइयों, अमेरिकी प्रतिष्ठान और मीडिया ने शेख हसीना सरकार के पतन का जश्न मनाया, तो बांग्लादेश के हिंदुओं के सामने एक भयावह सच्चाई उभरने लगी – वे अब जिहादियों की दया पर थे, जो सड़कों पर घूम रहे थे और उन्हें शिकार बनाने के लिए बेचैन थे।
4 अगस्त को, इस बात के संकेत मिलने लगे कि हिंसा हिंदुओं के खिलाफ टारगेटेड हमले में बदल रही है, जब सिराजगंज में रायगंज प्रेस क्लब में “प्रदर्शनकारियों” ने धावा बोल दिया और प्रदीप किमार भौमिक नामक एक हिंदू पत्रकार पर बेरहमी से हमला किया। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उसी दिन इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हराधन रॉय नाम के एक हिंदू नेता की हत्या कर दी। वह रंगपुर शहर के वार्ड 4 के पार्षद थे। रॉय के भतीजे को भी इस्लाम के रखवालों ने पीट-पीटकर मार डाला।
4 अगस्त को इसके संकेत तो मिल गए थे, लेकिन 5 अगस्त तक सब कुछ बिगड़ गया। जिहादी भीड़ ने घरों को जलाना, महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार करना, पुरुषों की हत्या करना, हिंदुओं के मालिकाना हक वाले व्यवसायों को लूटना और खास तौर पर हिंदू मंदिरों को तोड़ना शुरू कर दिया। ऑपइंडिया ने 6 अगस्त को ऐसे 54 मामलों की जानकारी दी थी, जो सिर्फ शुरुआत भर थी।
जैसे-जैसे हिंसा बढ़ती गई, यह स्पष्ट हो गया कि हिंदुओं के अस्तित्व पर खतरा बढ़ता गया।
एक हिंदू महिला ने कहा, “वो लोग रात में आए, उन्होंने हमारे घरों को तोड़ दिया और सब कुछ लूट लिया। हम छिप गए थे। उन्होंने मेरे भाई की पत्नी को पकड़ लिया और उसे दूसरे कमरे में ले गए। उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया। बाद में हम उसके पास पहुँचे, तो उसका चेहरा कपड़ों से बंधा हुआ था। वे (इस्लामिक हमलावरों की भीड़) उसका गला काटना चाहते थे। उसे (भाई की पत्नी) बचाने के लिए हमने उन्हें सारे सोने के गहने दे दिए।”
एक और महिला ने कहा, “हम सो रहे थे। रात में वे आए। वे हथियारों से लैस थे। उन्होंने हमें चेतावनी देते हुए कहा, ‘हमारे पचास लोगों ने तुम्हारे घर को घेर लिया है, तुम लोगों के पास भागने का कोई रास्ता नहीं है।’ उन्होंने सब कुछ लूट लिया। उन्होंने मुझे पकड़ लिया और बिस्तर पर ले गए। उन्होंने मुझे जान से मारने की धमकी दी। मैंने उनसे विनती की कि या तो मुझे छोड़ दें या फिर मार दें। वे मुझे रोने से रोकते रहे। उन्होंने मुझसे कहा कि हमारे पास जो भी कीमती सामान है, उसे दे दो। मैंने उन्हें अपने सारे गहने दे दिए, तो वे मुझे छोड़कर चले गए।”
अन्य महिलाएँ अपने मंदिरों को तोड़े जाने पर रो रही हैं। एक वीडियो में एक हिंदू महिला बार-बार चिल्लाती दिखी, “उन्होंने हमारे मंदिर को तोड़ दिया। उन्होंने हमारे मंदिर को तोड़ दिया।उन्होंने हमारे मंदिर को क्यों तोड़ा।”।
They have taken everything. They are destroying our Temple.
— Nupur J Sharma (@UnSubtleDesi) August 6, 2024
Throughout the video, she wails about her Temple being destroyed, Gods desecrated, and the attack on Hindus.
Don't look away. Don't shut your eyes and ears to her wails. Listen. Remember#AllEyesonBangladeshHindus pic.twitter.com/PRt94ZPV9b
एक अन्य महिला रोते हुए दिख रही है, “हम असहाय हैं, हमारे पास कोई नहीं है, कृपया हमें बचाएँ।”
This video is from yesterday. It was streamed live on Facebook. She keeps repeating that her temple has been broken. “We are helpless, we are helpless, please stand with us, we are helpless”.. she wails. #BangladeshHindus pic.twitter.com/hWvD1C2Dym
— Nupur J Sharma (@UnSubtleDesi) August 7, 2024
ऐसे अनगिनत वीडियो हैं, जिनमें बांग्लादेश में हो रही हिंदुओं के खिलाफ बर्बरता दिख रही है, लेकिन शायद ही ये बातें कभी सामने आएँ या मेनस्ट्रीम मीडिया का हिस्सा बन पाएँ, क्योंकि हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में ऐसा ही होता है। उसे कभी मीडिया दिखाता ही नहीं। करीब 3 साल पहले पश्चिम बंगान में जब मैं रिपोर्टिंग कर रही थी, तो विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी को जब जीत मिली, उसके बाद हिंदुओं पर जमकर अत्याचार हुए। उस समय हिंदुओं को चिन्हिंत कर उनपर हमले हो रहे थे, लेकिन हिंदुओं पर अत्याचार की घटनाएँ मीडिया में अपनी जगह नहीं बना पा रही थी।
वैसे, ऐसा होने के पीछे की कई वजहें हैं। प्रशासन की मिलीभगत की वजह से मामलों में एफआईआर नहीं हो पाती। राज्य सरकार द्वारा मीडिया के खिलाफ ही दमन की कार्रवाई की जाती है, जिसकी वजह से मीडिया हाउस, पत्रकार भी इन घटनाओं की रिपोर्टिंग से बचते हैं। बहुत सारे मामलों में पीड़ित भी नहीं बोल पाते, क्योंकि उन्हें आगे चलकर और भी गंभीर दुष्परिणामों का डर रहता है, वहीं, महिलाएँ इसलिए चुप्पी साधने को मजबूर होती हैं कि अपने ऊपर हुए अत्याचारों को बताने पर उनपर सामाजिक कलंक लगने का डर होता है।
इसलिए, यह मान लेना कि हिंसा का पैमाना सिर्फ़ रिपोर्ट की गई कहानियों तक सीमित है, एक गंभीर गलती होगी। अगर तीन महिलाओं ने हिंदू महिलाओं के खिलाफ़ यौन हिंसा के बारे में बात करने के लिए रिकॉर्ड पर बात की है, तो कोई यह मान सकता है कि इसका पैमाना कई गुना ज़्यादा है। अगर 100 हिंदुओं के घर जलाए जाने की तस्वीरें हैं, तो कोई यह मान सकता है कि हज़ारों लोग विस्थापित हुए होंगे। अगर कोई 50 हिंदुओं की हत्या की रिपोर्ट कर रहा है, तो असलियत में अनगिनत जानें गई होंगी।
लेकिन कोई व्यक्ति अगर स्थानीय लोगों और पीड़ितों से बात करे, तभी वो समझ सकता है कि हालात कितने भयावह होंगे।
बांग्लादेश के एक स्थानीय व्यक्ति ने मुझे बताया, “उन्होंने एक हिंदू पार्षद की निर्दयता से हत्या कर दी और उसके शव को सड़क के बीच में उल्टा लटका दिया। मुझे नहीं लगता कि मैं वो हैवानियत बयान भी कर सकता हैं, जो मुस्लिम भीड़ ने उनके साथ की थी। उन्होंने कुछ मुस्लिम नेताओं और पुलिसवालों को भी मार डाला, लेकिन हिंदुओं को मारने से पहले उनपर बहुत जुल्म ढाए गए, उन्हें तड़पाकर मारा गया।” वो व्यक्ति हराधन रॉय और उनके भतीजे के साथ ही एएसआई संतोष साहा की लिंचिंग का जिक्र कर रहा था। संतोष साहा को भीड़ ने जमकर मारा और फिर सबके सामने सड़क के बीच में ही उल्टा लटका दिया।
उस व्यक्ति ने आगे बताया, “मेरा पड़ोसी किराना स्टोर चलाता है। वे उसके घर गए और उसका घर जला दिया। उन्होंने उसकी दुकान भी जला दी और लाखों का माल लूट लिया। जब उसने विरोध करने की कोशिश की, तो उन्होंने उसे जान से मारने और उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करने की धमकी दी। वे उसे बार-बार ‘काफ़िर’ कह रहे थे और कह रहे थे कि अगर उसे जमात-ए-इस्लामी से कोई समस्या है, तो उसे भारत चले जाना चाहिए। जब उसके घर की महिलाओं को धमकाया गया, तो उन्होंने कहा कि महिलाएँ ‘गनीमत’ हैं। उन्होंने कम से कम 6 गायों को ज़बरदस्ती उठा लिया। जब वे धमका रहे थे और लूट रहे थे, तो उन्होंने कहा कि वे एक भी हिंदू को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। हम डरे हुए हैं। हमारी जान को खतरा है। हमें नहीं पता कि हम बचेंगे या नहीं। हमें नहीं पता कि हमें यहाँ रहना चाहिए या भाग जाना चाहिए। कोई भी हमारी मदद नहीं कर रहा है। मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप हमारी मदद करें। कृपया हमें बचाएँ।”
पीड़ित व्यक्ति ने बताया कि उस समय मौजूद 20 लोगों की भीड़ ने उन्हें धमकाया है कि वो इन बातों को अपने तक सीमित रखें, किसी से कहें नहीं। उन्होंने बताया कि हिंसा के बाद ज़्यादातर हिंदू अपने घरों या जहाँ कहीं भी भागे थे, वहाँ छिप गए हैं। वे बाहर नहीं निकल रहे थे क्योंकि हिंदू पहचाने जाने पर उन पर हमला हो सकता था।
मैंने उनसे पूछा कि जिस इलाके में वे रहते हैं, वहाँ के स्थानीय हिंदू संगठनों द्वारा क्या मदद की जा रही है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि टारगेटेड अटैक की वजह से पूजा समिति के प्रमुखों और हिंदू संगठनों के अन्य नेताओं को भी भागना पड़ा या छिपना पड़ा।
ये बात बाद में सामने आई कि जैसे ही शेख हसीना की सरकार का पतन हुआ और वो देश छोड़कर निकल गई, वैसे ही जमात-ए-इस्लामी ने हिंदू नेताओं, संगठनों, व्यवसायों और हिंदुओं के घरों की हिटलिस्ट तैयार करनी शुरू कर दी और फिर हमले शुरू हो गए।
पीड़ित से जब ये पूछा गया कि हिंसा को रोकने के लिए पुलिस क्यों नहीं पहुँची, तो पीड़ित ने कहा, “सभी पुलिस अधिकारी अपनी चौकियाँ छोड़ चुके हैं। बांग्लादेश में कहीं भी कोई पुलिस अधिकारी नहीं है। पुलिस वालों को जमात के लोग चुन-चुन कर मार रहे हैं, इसलिए पुलिस वाले अपनी चौकियाँ छोड़कर भाग गए। पुलिस वालों के भागने के बाद इस्लामिक भीड़ हिंदुओं को खुलेआम निशाना बना रही है। उन्होंने कहा कि सेना को बुला सकते थे, लेकिन हिंदू बेहद डरे हुए हैं। पहली बात तो ये कि हर जगह सेना समय पर नहीं पहुँच सकती। दूसरी बात-बांग्लादेशी सेना का एक बड़ा हिस्सा खुद भी जमात-ए-इस्लामी के प्रति सहानुभूति रखता है, यानि कि सेना हिंदुओं की मदद करेगी ही, इस बात की कोई गारंटी नहीं।
एक स्थानीय अवामी लीग हिंदू राजनेता ने भी कहा कि सेना और पुलिस कहीं नहीं दिख रही है और उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिल रही है। उनकी एकमात्र अपील थी कि भारत बांग्लादेशी हिंदुओं को स्वीकार करे – ताकि जो लोग शरण लेना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकें।
एक हिंदू पूजा समिति के अध्यक्ष ने कहा कि उनके इलाके में हिंदू आतंक में जी रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारे पास खाने के लिए मुश्किल से ही भोजन है। हम किसके पास जाएँ? हम किससे मदद माँगें? हमारे लिए कोई नहीं है।” उन्होंने कहा कि जिहादी भीड़ ने 650 साल पुराने प्राचीन मंदिर को नष्ट कर दिया। अब मंदिर खहंडर बन चुका है। उन्होंंने कहा, “इन हमलों के बाद अब हर हिंदू समुदाय आतंक में जी रहा है। मैं अपना गाँव नहीं छोड़ पा रहा हूँ। वे मेरे इलाके में हिंदुओं के घरों पर भी हमला कर रहे हैं।”
इस बीच, मैंने उनसे खहंडर हो चुके मंदिर की तस्वीर माँगी, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वो घर से बाहर निकलते ही मार दिए जाएँगे। अगर वे हमले से बच गए, तो बाद में तस्वीर भेज देंगे।
टूटने से पहले कुछ इस तरह दिखता था मंदिर
एक अन्य स्थानीय हिंदू ने आपबीती बताते हुए कहा कि इस्लामी भीड़ ने उसके घर के साथ-साथ उसके पड़ोसी के घर को भी जला दिया। उसने बताया कि बाकी हिंदुओं की तरह उनके पड़ोसी की गौशाला से कई गायें चुरा ली गई और कुछ को इस्लामिक आतंकवादियों ने जिंदा जला दिया।
बता दें कि हिंदुओं पर हमले और गायों को जलाने के मामले दूसरी जगह से भी सामने आ चुके हैं।
Miscreants set fire to the house of Amiya Singh, a resident of Quisharpar, Barigaon village of Comilla district, Bangladesh at 1 am. Their cattle shed was completely gutted in the fire and two cows were burnt to death.07-08-2024#SaveBangladeshiHindus #AllEyesOnBangladeshiHindus pic.twitter.com/MFpTIQ7Q1O
— Tinni Banik (@tinni_bani37545) August 8, 2024
जिहादी खास तौर पर गायों से बहुत नफरत करते हैं, क्योंकि हिंदू गाय को अपनी माता मानते हैं। ऐसे में गायों को निशाना बनाना जिहादियों के लिए मजहबी मामला है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, “हमें सुरक्षा देने के लिए कोई ‘बहिनी (वाहिनी-पुलिस-सेना बल)’ नहीं है। हमारे पास बहुत सारे लोग हैं, लेकिन हर कोई अपनी जान के लिए डरा हुआ है। अगर वे (सेना की टुकड़ी) आते भी हैं, तो उन्हें पहुँचने में इतना समय लग जाएगा कि तब तक हम सभी मर चुके होंगे। मेरे चाचा की दवा की दुकान है और उनकी दुकान पूरी तरह से लूट ली गई है और नष्ट कर दी गई है। सभी हिंदुओं की दुकानों को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। कृपया हमारे साथ खड़े हों। हम जिंदा रहना चाहते हैं। हम जीना चाहते हैं। हमारा विनती है कि कृपया हमें बचा लिया जाए। बीएसएफ हमें भारत में घुसने नहीं देगी, लेकिन हमें आनें दें, हमें भारत में घुसने का मौका दें। बांग्लादेश के हिंदुओं को बचाएँ।”
पीड़ित ने कहा अगर किसी हिंदू को निशाना बनाए जाने के दौरान कोई सेना का जवान मौजूद होता है, तो वे पहले तो सीधे तौर पर इस बात से इनकार करते हैं कि हिंदू व्यक्ति को सताया जा रहा है। वे हिंदू को देखते हैं और कहते हैं कि वे बढ़ा-चढ़ाकर बात कर रहे हैं और उनके साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। इसके बाद वे धर्म से जुड़ी गालियाँ देते हैं और काफिर करते हैं। उन्होंने कहा, “सेना कहती है कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है और तुम शिकायत करके हमारा समय बर्बाद कर रहे हो। वे हमें लगातार काफ़िर कहते हैं। वे कहते हैं कि हमारी संपत्ति उनकी ‘गनीमत’ है और हमारी महिलाएँ ‘जयाज़’ हैं।” उन्होंने आगे कहा कि जमात और दूसरे इस्लामिक कट्टरपंथी हिंदुओं से “ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूलुल्लाह” कहकर जान बचाने के लिए कह रहे हैं। यही नहीं, हमलावरों ने ये भी कहा है कि अगर वो जान बचाना चाहते हैं, तो भारत भाग जाएँ।
‘अस्पतालों ने हिंदू मरीजों का इलाज करने से किया इनकार’
स्थानीय हिंदू संगठन के नेता के अनुसार, बांग्लादेश में कई अस्पताल हिंदू मरीजों का इलाज करने से इनकार कर रहे हैं, क्योंकि उन पर मुस्लिम भीड़ ने हिंसक और कुछ पर गंभीर हमला किया है। “ये अस्पताल हिंदू पीड़ितों का इलाज करने से इनकार कर रहे हैं। अगर आप हिंदू हैं, तो हम आपका इलाज नहीं करेंगे। उनका कहना है कि हिंदुओं को सेवा देने से इनकार करना उनका अधिकार है। ऐसे कई लोग हैं जो इसलिए मर गए क्योंकि उन पर गंभीर हमला किया गया और जब वे अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें इलाज नहीं दिया गया।”
जब हिंसा शुरू ही हुई थी, उसी स्थानीय हिंदू नेता ने कहा था कि जमात-ए-इस्लामी के लोगों ने हिंदुओं, उनके प्रतिष्ठानों और संगठनों की हिट लिस्ट बना ली है। उन्होंने यह भी कहा था कि मुस्लिम भीड़ हथियारों के साथ सड़कों पर घूम रही थी ताकि वे किसी भी हिंदू पर हमला कर सकें। इसलिए, सड़कों पर भीड़ के कारण हिंदू अपने घरों में फंस गए थे। उन्होंने कहा, “आपने जिन लोगों से बात की है, उन सभी को नुकसान हुआ है। या तो उनके घर जला दिए गए हैं, या उन्होंने किसी ऐसे व्यक्ति को खो दिया है जिसे वे जानते थे। यह देश हमें खत्म कर देगा। हम बचेंगे नहीं। अगले कुछ सालों में, जो कुछ भी हो रहा है, उसके बाद इस देश में कोई हिंदू नहीं बचेगा।”
उन्होंने कहा, “यह हमारी जमीन है। हम यहाँ पैदा हुए हैं। यह हमारी जन्मभूमि है। हम यहाँ से क्यों जाना चाहेंगे? लेकिन हमें काफ़िर कहा जा रहा है। वे हमें मार रहे हैं और सड़कों पर लटका रहे हैं। हमारी महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है। हमारे भाइयों पर हमला हो रहा है। हम यहाँ कैसे रहें? डॉक्टर हमारा इलाज करने से मना कर रहे हैं। कोई भी यहाँ से जाना नहीं चाहता, लेकिन हम क्या करें? हम कहाँ जाएँ?” वो ऐसे हिंदुओं को जानते हैं, जिन्हें बांग्लादेश के शेरपुर जिले में अस्पतालों ने इलाज नहीं दिया। उन्होंने कहा, “मोहम्मद यूनुस के शपथ लेने के बाद, आप जल्द ही सुनेंगे कि हत्याएँ बढ़ गई हैं। यह रुकने वाला नहीं है।”
स्थानीय हिंदुओं के अनुसार, हिंसा शुरू होने के बाद से कम से कम 30 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया है। ये वो मामले हैं, जिनका पता चला है। ऐसे मामले पिरोजपुर जिले के रेयर खाती क्षेत्र, ब्राह्मण काठी क्षेत्र, बाजू खाती क्षेत्र, कोमिला जिला बोरोइगाओ, दिनाजपुर, जलखड़ा, नाओखली, पाबना और कुछ अन्य से हुए हैं। बांग्लादेश के स्थानीय मीडिया ने बताया है कि शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद 232 से अधिक लोग मारे गए हैं। उनमें से कितने हिंदू हैं, कोई नहीं बता सकता। शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद 29 अवामी लीग नेताओं की हत्या कर दी गई है।
कई महिलाओं ने अपनी अपने साथ हुए अत्याचारों को बयान किया है।
एक महिला ने रोते हुए बताया, “वे आए और हमारे घर को लूट लिया। उन्होंने हमारे पैसे, सोना और जो भी कीमती सामान हमारे पास बचा था, सब छीन लिया। उन्होंने मेरे 14 वर्षीय लड़के का भी अपहरण कर लिया। उन्होंने हमारे घर में तोड़फोड़ की और सब कुछ लूट लिया। उन्होंने हमें बुरी तरह पीटा भी। मेरे बेटे का कुछ पता नहीं चल पाया है।
एक अन्य हिंदू महिला ने बताया कि कैसे उसके परिवार को इस्लामी भीड़ ने रात भर निशाना बनाया। उसने बताया कि उसके 15 वर्षीय भाई पर चाकू से हमला किया गया। उन्होंने परिवार से 3 लाख रुपए भी चुरा लिए। अपनी आपबीती बताते हुए महिला ने कहा, “देखो, उन्होंने हमारे घरों में किस तरह से तोड़फोड़ की है…क्या यह किसी इंसान का काम है? वे दावा कर रहे हैं कि यह अब एक आजाद देश है। लेकिन उन्होंने मेरे नाबालिग भाई के साथ क्या किया?
हिंदू महिला ने आगे कहा, “बांग्लादेश में हिंदू होना अभिशाप है। मैं एक छात्रा के तौर पर पूछ रही हूँ कि मेरे घर को क्यों निशाना बनाया जा रहा है।” उन्होंने बताया कि 3-4 अन्य हिंदू घरों पर भी इसी तरह हमला किया गया। उन्होंने कहा, “हमें न्याय कौन देगा? हम हिंदुओं की रक्षा कौन करेगा? आज वे मुझ पर हमला कर रहे हैं। कल वे तुम पर हमला करेंगे। अगर हम अभी इसका सामना नहीं करेंगे, तो कल हम बच नहीं पाएँगे।”
एक अन्य महिला ने बताया कि मुसलमानों ने उसे और उसके परिवार को रातों-रात बांग्लादेश छोड़कर भाग जाने की धमकी दी थी।
Terrorist Riyaz Molla has threatened to kill the Hindu family if they do not flee the country overnight ‼️ Brutal robbery at Hindu house in Patuakhali!#SaveBangladeshiHindus #AllEyesOnBangladeshiHindus #HinduGenocideInBangladesh #HindusAreNotSafeInBangladeh pic.twitter.com/aZ2s2Ise5j
— Voice of Bangladeshi Hindus 🇧🇩 (@VoiceofHindu71) August 8, 2024
एक अन्य महिला ने दावा किया कि मदरसे में पढ़ने वाले 6 लड़कों ने एक हिंदू के घर की रखवाली की जिम्मेदारी ली और फिर उसी घर की युवती के साथ गैंगरेप किया।
स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि जिहादी भीड़ द्वारा की जा रही कार्रवाई में से एक यह थी कि उन सभी पुलिस अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को जिंदा जला दिया जाना चाहिए जो ‘लाल धागा’ पहनते हैं। लाल धागा एक धार्मिक प्रतीक है जिसे हिंदू कलाई पर पहनते हैं। उन्होंने कहा, “यह नारा जुलाई के पहले सप्ताह से दिया जा रहा था, अब जो हो रहा है, वो सिर्फ प्लानिंग पर अमल है।”
कई हिंदुओं ने इस बात की गवाही दी है कि बांग्लादेश में “विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले ज़्यादातर छात्र जमात और शिबिर से जुड़े हुए हैं। यह विरोध प्रदर्शन यह सुनिश्चित करने के लिए था कि वे सत्ता पर कब्ज़ा कर लें। इसका कोटा से बहुत कम लेना-देना था। वे कभी भी लोकतांत्रिक देश नहीं चाहते थे। वे एक इस्लामिक राष्ट्र चाहते थे। विरोध प्रदर्शन के दौरान उनका एक नारा था ‘हरे कृष्ण हरे राम, शेख हसीनार बापर नाम’ (हरे कृष्ण हरे राम शेख हसीना के पिता का नाम है)। अगर यह हिंदू विरोधी नहीं होता तो वे ऐसा क्यों कहते?”
बढ़ते सबूतों के बावजूद, मीडिया ने हिंदुओं के उत्पीड़न को सिरे से नकारने की कोशिश की है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने चल रहे नरसंहार को डाउन प्ले करते हुए इसे हिंदुओं के खिलाफ ‘बदला लेने वाला हमला’ बताया।
न्यूयॉर्क टाइम्स का ये लेख बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर लीपा-पोती करने का उदाहरण है। वो हिंदुओं पर हमले को बदला कहकर जमात-ए-इस्लामी को बचा रहा है, तो इस नरसंहार के पीछे हिंदुओं को ही वजह ठहरा रहा है। यही नहीं, इन हमलों में हिंदुओं के साथ आवामी लीग के कार्यकर्ता भी निशाने पर हैं, ये बात न्यूयॉर्क टाइम्स छिपा रहा है।
बांग्लादेशी हिंदुओं को डर है कि मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में जो कट्टरपंथी इस्लामिक सरकार सत्ता में आई है, उसकी वजह से बांग्लादेश में हिंदुओं का समूल सफाया किया जाएगा। उनका ये डर निराधार नहीं है। गुरुवार (8 अगस्त 2024) को मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी संभाल ली। इस अंतरिम सरकार में 17 सदस्य शामिल हैं, जिनमें डॉ. सालेहुद्दीन अहमद, बांग्लादेश के पूर्व चुनाव आयुक्त ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत्त) एम सखावत हुसैन, कानून के प्रोफेसर डॉ. एमडी नजरूल इस्लाम, मानवाधिकार कार्यकर्ता अदिलुर रहमान खान, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील एएफ हसन आरिफ, बांग्लादेश पर्यावरण कार्यकर्ता संघ की मुख्य कार्यकारी सैयदा रिजवाना हसन आदि शामिल हैं।
डॉ. एएफएम खालिद हुसैन कौन हैं?
अंतरिम मंत्रियों की सूची में शामिल किए गए चौंकाने वाले नामों में से एक इस्लामिक कट्टरपंथी अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन का है, जिसे डॉ. एएफएम खालिद हुसैन के नाम से जाना जाता है। हुसैन हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश का उपाध्यक्ष रह चुका है और मौजूदा समय में बांग्लादेशी देवबंदी इस्लामिक ग्रुप से जुड़ा है। हिफाजत-ए-इस्लामी एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसके सदस्यों पर पहले भी हिंदुओं पर अत्याचार करने के आरोप लगे हैं। वो भारत के खिलाफ मुस्लिमों को भड़काता रहा है।
डॉ एएफएम खालिद हुसैन हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश का पूर्व उपाध्यक्ष, अता-तौहीद पत्रिका का संपादक और बलाग अल-शर्क का सहायक संपादक हैं। उसने उमरगनी एमईएस कॉलेज में इस्लामी इतिहास और संस्कृति विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में काम किया, साथ ही निज़ाम-ए-इस्लाम पार्टी की छात्र शाखा इस्लामी छात्र समाज के केंद्रीय अध्यक्ष भी रहा है।
हिफाजत-ए-इस्लाम की स्थापना जनवरी 2010 में चटगाँव में इस्लामवादी अहमद शफी ने की थी, जिसका उद्देश्य इस्लाम को कथित इस्लाम विरोधी पहलों से ‘सुरक्षित’ रखना था। इस इस्लामी समूह का उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता को खत्म करना और कट्टर इस्लामी मान्यताओं का प्रचार करना भी था।
मार्च 2021 में जब पीएम मोदी बांग्लादेश की यात्रा पर थे, तब हिफाजत-ए-इस्लाम ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए थे, जिसके कारण पूरे देश में हिंसा और अराजकता फैल गई थी। देश के पूर्वी हिस्से में चटगाँव और ब्राह्मणबरिया में सरकारी कार्यालयों और संपत्ति को नुकसान पहुँचा। मोदी के जाने के बाद भी हिंसा जारी रही जब ब्राह्मणबरिया में एक ट्रेन और कई हिंदू मंदिरों पर हमला किया गया। हिफाजत-ए-इस्लाम के सदस्यों ने ‘एक्शन, एक्शन, डायरेक्ट एक्शन‘ के नारे लगाए। यहाँ ये बताना जरूरी है कि जिन्ना के ‘डायरेक्ट एक्शन’ की वजह से साल 1946 में बंगाल में हिंदुओं का नरसंहार हुआ था।
साल 2021 की इस हिंदू विरोधी हिंसा में कई हिंदुओं की जान चली गई थी। इसके बाद हसीना सरकार ने क्रैकडाउन करते हुए हिफाजत-ए-इस्लाम के सैकड़ों कट्टरपंथी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया था। यही नहीं, मौजूदा समय में चल रही हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में भी हिफाजत-ए-इस्लाम शामिल है और हिंदुओं पर हमलों को बढ़ावा दे रही है।
हिफाजत-ए-इस्लाम के कट्टरपंथी लोग और उसके जिहादी हिंदुओं को ‘भारत का दलाल’ कहते हैं और उन्हें भारत जाने के लिए कहते हैं। अब बताइए, कि जिस अंतरिम सरकार में हिफाजत-ए-इस्लाम का पूर्व उपाध्यक्ष ही शामिल हो, वो सरकार हिंदुओं की क्या ही रक्षा करेगी? यही डर बांग्लादेश के हिंदुओं का भी है कि अंतरिम सरकार में उनके खिलाफ हिंसा और नरसंहार तेज हो जाएगी। ये आशंकाएँ गलत भी नहीं लगती।
बता दें कि पीएम मोदी ने भी 8 अगस्त 2024 को एक्स पर बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा के मुद्दे पर लिखा। उन्होंने मोहम्मद यूनुस को बधाई दी, साथ ही हिंदुओं की रक्षा के मुद्दे को भी उठाया।
वहीं, 9 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि मोदी सरकार भारत-बांग्लादेश सीमा पर चल रही स्थिति की निगरानी के लिए एक समिति का गठन कर रही है। यह समिति बांग्लादेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों, हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी चर्चा करेगी।
एक तरफ भारत सरकार सीमा पर स्थिति की निगरानी के लिए एक समिति गठित कर रही है, तो दूसरी ओर खबरें सामने आई हैं कि 300 बांग्लादेशी हिंदू भारत में शरण पाने की उम्मीद में भारतीय सीमा की ओर चले आए हैं।
West Bengal: Hindus in Bangladesh are attempting to seek refuge in India amid the turmoil. About 300 Bangladeshis gathered at a border point near India's Jalpaiguri district pic.twitter.com/IHFe2vu3UT
— IANS (@ians_india) August 9, 2024
बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार को लेकर अभी तक भारत सरकार किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है, ऐसे में ये माना जा सकता है कि बीएसएफ इन हिंदुओं को भारत की सीमा में नहीं घुसने देगी। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि भारत सरकार अभी तक ये फैसला नहीं ले पाई है कि वो शरणार्थियों को स्वीकार भी करेगी या नहीं। एक तरफ भारत सरकार कोई फैसला नहीं ले पा रही है, तो दूसरी तरफ इस्लामिक स्कॉलर हिंदुओं के नरसंहार पर जश्न मना रहे हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले अबू नज्म फर्नांडो बिन अल-इस्कंदर का दावा है कि वो “इस्लामिक स्टडी” में पीएचडी कर रहा है और खुद को “स्वदेशी मुस्लिम” बताता है। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद जब हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की शुरुआत हुआ, तो उसने ट्वीट करके हिंदुओं के सफाए का आह्वान और समर्थन किया। उसकी मानें तो ‘अहल अस-सुन्नाह’ (पैगंबर मुहम्मद की परंपराएँ और प्रथाएँ, जिन्हें मुस्लिम मानते हैं) के हिसाब से हिंदुओं के पास सिर्फ 2 ऑप्शन होने चाहिए, इस्लाम अपनाना या फिर मर जाना। ये बात उसे बहुत सुकून दे रही थी।
उसने कहा, “हिंदुओं को आभारी होना चाहिए कि वे हनफियों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, न कि मालिकियों, शफीइयों या हनबलियों के साथ।” उसने सुन्नी इस्लामी विचारधाराओं का नाम लेते हुए उनका मजाक उड़ाया और कहा कि वे गैर-मुसलमानों के प्रति कहीं अधिक हिंसक और शत्रुतापूर्ण हैं तथा बांग्लादेश में कमजोर हिंदुओं के साथ और भी अधिक क्रूरता से पेश आते।
उसने सऊदी अरब और कतर के हरबनी इस्लामिक कानूनों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है, “इस प्रकार, इसके कारण, अपने बालों से खुद को मुसलमानों से अलग करने के लिए उनसे (यानी, सुरक्षा के अनुबंध के तहत गैर-मुसलमानों से) अपने सिर के सामने के हिस्से को मुंडवाने और अपने बालों को अलग न करने की अपेक्षा की जाती है, क्योंकि पैगंबर मुहम्मद ने अपने बालों को अलग किया था,” यह दिखाने के लिए कि कैसे काफिरों को अपमानजनक व्यवहार के साथ मिलना चाहिए क्योंकि वे मुसलमानों से कमतर हैं।
उन्होंने यह आश्वासन देकर अपनी ‘उदारता’ भी दिखाई कि उन्हें उन हिंदुओं से कोई समस्या नहीं है, जो मुस्लिम देशों में रहते हुए भी उनके गुलाम बन जाएँ और अपने धर्म “शिर्क” (मूर्तिपूजा, बहुदेववाद और अल्लाह से जुड़ाव) को त्याग दें और इस्लामी कानूनों और नियमों के हिसाब से जिंदगी जिएँ। उसने उम्मीद जताई कि “बांग्लादेश हिंदू प्रभाव और हस्तक्षेप से मुक्त हो जाएगा।” यही नहीं, एक तरफ तो वो हिंदुओं के सफाए की बात कर रहा है, दूसरी तरफ हिंदुओं पर हमलों की खबरों को वो हिंदू प्रोपेगेंडा कहकर खारिज भी कर रहा है।
बांग्लादेश में हिंदुओं का जो नरसंहार चल रहा है, उसमें भी पीड़ित हिंदू कोई मुआवजा नहीं माँग रहे, बल्कि वो सिर्फ अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं। वो इस्लामिक कट्टरपंथियों और जानवरों से अपनी जान बचाने की अपील कर रहे हैं। हिंदुओं के मंदिरों को जो तोड़ रहे हैं, उन्हें रोकने की माँग कर रहे हैं।
In protection of Dharma #Bangladesh pic.twitter.com/Q3SPBXHJGS
— Nupur J Sharma (@UnSubtleDesi) August 9, 2024
यह वीडियो शायद हिंदुओं की दुर्दशा को दर्शाता है। हम उस समय की तुलना नहीं कर सकते जब हिंदुओं ने अपने देवताओं को आक्रमणकारी बर्बर लोगों से बचाने के लिए उन्हें दफनाया था ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपने धर्म को बचा सकें – अगर वे बच गए।
हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। गंभीर… बेहद गंभीर हमले। मेरा मानना है कि ये पूरी तरह से नरसंहार है। इस नरसंहार में कितने लोग मारे गए, इसकी कोई संख्या नहीं है, लेकिन बहुत बड़े समूह का सिर्फ उनके हिंदू होने की वजह से सफाया कर दिया गया है। हिंदुओं को इस्लामिक कट्टरपंथी कभी बर्दाश्त नहीं करते हैं। रेप, टॉर्चर, उत्पीड़न, सिर काटने और जीवन जीने की मामूली जरूरतों को भी नष्ट करने के हमेशा की तरह मामले आ रहे हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं पर अक्सर ही हमले होते रहे हैं, वो निरंतर इन हमलों को झेलते रहे हैं। लेकिन इस बार हमला पूरी तरह से संगठित है। और अब तो जमात पूरा देश ही चलाने वाली है। उसके लोग अंतरिम सरकार में भी आ चुके हैं, ऐसे में हिंदुओं की क्या हालत होने वाली है, इसका अंदाजा भर लगाया जा सकता है।
मैंने जितने भी हिंदुओं से बात की, उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें सबसे बुरा होने का डर है। उन्होंने मुझे बताया कि अगर आज नहीं तो कुछ सालों में उनका सफाया हो जाएगा क्योंकि बांग्लादेश अब तालिबान जैसा बनने की राह पर है। उन्हें डर है कि यूनुस हिंदुओं के लिए बहुत बुरा साबित होगा क्योंकि वह जमात के साथ मिला हुआ है।
मैंने इस मामले में भारत सरकार से कुछ भी करने की अपील नहीं की है, या फिर इससे बचती रही हूँ, क्योंकि एक देश के काम करने का तरीका अलग होता है। हम बांग्लादेश में सेना लेकर घुस नहीं सकते, लेकिन हम कुछ तो कर ही सकते हैं। साल 2019 से मेरी सीएए से एक ही शिकायत रही है, उसकी कट-ऑफ डेट, जिसमें कुछ साल हिंदुस्तान में रहने के बाद ही भारत की नागरिकता दी जाती है। मैं उम्मीद करती हूँ कि सरकार सीएए के तहत कट-ऑफ के समय को हटा दे, क्योंकि प्राकृतिक तौर पर भारत ही हिंदुओं का अपना देश है। हमें अपने सभी लोगों का स्वागत करना चाहिए, जब भी वो दुनिया के किसी भी हिस्से में सताए जाएँ। हिंदुओं को भी घर लौटने का हक है।
हिंदुओं को यह जानना चाहिए कि उनकी माँ की गोद उनके बच्चों का इंतज़ार कर रही है। क्या सरकार ऐसा करेगी? मुझे नहीं पता। ईमानदारी से कहूँ तो मुझे इस पर शंका है। खूनी हिंदू विरोधी दंगों के बाद सीएए को अधिसूचित करने में हमें 3 साल लग गए। फिर भी मुझे उम्मीद है कि ऐसा होगा एक दिन।
बांग्लादेश के हिंदुओं को बचाया जाना चाहिए। उन्हें मदद की ज़रूरत है। उनका नरसंहार किया जा रहा है और उन्हें हमारी ज़रूरत है। हम सीमाएँ नहीं खोल सकते क्योंकि इससे फिर वही होगा, जो 1947 में हुआ। ऊपर वाला भी जानता है कि हमें इस देश में और बांग्लादेशी मुसलमानों की ज़रूरत नहीं है। भगवान जानता है कि हमें और जिहादियों की ज़रूरत नहीं है, लेकिन हिंदुओं को हमारी ज़रूरत है, बहुत ज़्यादा। मेरे पास जवाब नहीं हैं, लेकिन मुझे पता है कि मैंने एक ऐसी सरकार के लिए वोट दिया है जिसके पास जवाब होने की उम्मीद है। अगर मेरे पास सभी जवाब होते तो मैं सरकार चला रही होती।
मैं बस इतना जानती हूँ कि बांग्लादेशी हिंदुओं को हमारी ज़रूरत है। मैं बस इतना जानती हूँ कि अगर हम अपने साथी हिंदुओं को नहीं बचाएँगे तो हम हिंदुओं के लिए खड़े होने, हिंदुत्व में विश्वास करने और अपने पूर्वजों के बलिदान के योग्य होने का दावा नहीं कर सकते। उन्हें बचाना हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी की ज़िम्मेदारी है। यह हमारा धर्म है और जो लोग अपने धर्म से पीछे हटते हैं, वे न केवल बर्बाद होते हैं बल्कि उन्हें उन लोगों से भी धिक्कार मिलेगी, जो आज हम पर अपना विश्वास जताते हैं। नेहरू-लियाकत समझौते ने इस भूमि को हिंदुओं के खून से भिगो दिया है। अब समय आ गया है कि सब कुछ ठीक किया जाए।
अगर हम ऐसा नहीं कर पाए, या कुछ भी नहीं करते हैं, तो हमें कभी माफी भी नहीं मिल पाएगी। ये जानते हुए भी कि हमारे भाईयों और बहनों का नरसंहार होता रहा और हम कुछ नहीं कर पाए, तो हम इसका बोझ कभी नहीं झेल पाएँगे। हम ग्लानि में जलते रहेंगे। ईश्वर हमें देख रहा है। हमारे पूर्वज हमें देख रहे हैं। वो हमारे सही कदम उठाने का इंतजार कर रहे हैं। क्या हम इस बार खड़े हो जाएँगे और अपने लोगों की रक्षा कर पाएँगे? मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इसके लिए प्रार्थना जरूर करूँगी।
यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखा गया है। मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।