इंग्लैंड (England) की प्लेमाउथ यूनिवर्सिटी (Plymouth University) में महिला और पुरुष शौचालयों के बाहर विवादित पोस्टर चिपकाए गए हैं, जिसको लेकर बवाल हो रहा है। यूनिवर्सिटी में महिलाओं की सुरक्षा को नजरअंदाज करते हुए उन्हें चेतावनी दी गई है कि अगर मर्दाना लिंग वाली कोई महिला बाथरूम में घुस कर सामने सूसू करे तो लड़कियाँ बिल्कुल चुप रहें। यूनिवर्सिटी के चारों ओर दीवारों पर पुरुष और महिलाओं के शौचालयों के बाहर गुलाबी, नीले और सफेद रंग के चेतावनी भरे पोस्टर चिपकाए गए हैं। डेली मेल के मुताबिक, इसको लेकर यूनिवर्सिटी की आलोचना की जा रही है। आलोचकों ने इस कदम को ‘Repellent Gaslighting’ करार दिया है और सवाल किया कि इसके बजाय तीसरा शौचालय क्यों नहीं बनाया जा सका।
पोस्टर में लिखा है, “यहाँ आपका स्वागत है। क्या आपको लगता है कि कोई व्यक्ति ‘गलत’ बाथरूम का इस्तेमाल कर रहा है? कृपया करके उन्हें ये नहीं बताएँ कि वो गलत कर रहे हैं। उन्हें घूरें नहीं और ना ही उन्हें अपमानित करें। इसकी बजाय कृपया उनकी निजता का सम्मान करें।”
पोस्टर में आगे लिखा है, “तुम्हारे सामने जब वो सूसू करे तो भी चुप रहे लड़कियाँ और वहाँ से हट जाएँ। क्योंकि, वे उन शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं, जिनमें वे सुरक्षित महसूस करती हैं। उन्हें असहज महसूस न कराएँ, बल्कि उन्हें प्राइवेसी दें। ट्रांस, नॉन-बाइनरी छात्रों को यहाँ आने का पूरा अधिकार है।”
WomenAreWomen ने इस मामले को लेकर ट्विटर पर लिखा, “ध्यान दें कि इसमें स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा गया है कि महिला छात्रों का स्वागत है। Repellent gaslighting। यह एक कुकत्य है, जिसे जानबूझकर युवा महिलाओं को उनकी सीमा और उनके कानूनी अधिकारों से बाहर कर रहा है।” ट्रेसी हिल ने कहा, “निश्चित रूप से वे तीसरी जगह बना सकते हैं? लेकिन जो कदम इन्होंने उठाया है, उससे महिलाओं में भय का माहौल पैदा होगा। यहाँ उनके साथ कुछ भी हो सकता है। शौचालय में मर्दाना लिंग वाला भेजकर उन्हें असहज महसूस न कराएँ?”
उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों को भी इसके लिए आगे आना होगा और तीसरे यूनिसेक्स स्पेस की माँग करनी होगी। वहीं, प्लेमाउथ विश्वविद्यालय ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है और वह सभी के साथ समान व्यवहार करता है। यूनिवर्सिटी की एक प्रवक्ता ने कहा, “हमारे परिसर को खास तरह से डिजाइन किया गया है, ताकि हमारे कर्मचारी, छात्र और विजिटर यहाँ खुद को सहज और सुरक्षित महसूस कर सकें, जहाँ उन्हें single-sex और gender neutral सुविधाएँ मिल रही हैं। इससे हमारा पूरा विश्वविद्यालय और इससे जुड़े लोग खुद को सुरक्षित, सम्मानित और सशक्त महसूस कर रहे हैं।”