Friday, November 15, 2024
Homeरिपोर्टअंतरराष्ट्रीयWHO की फंडिंग पर अमेरिका ने लगाई रोक, चीन के साथ मिलीभगत पर ट्रंप...

WHO की फंडिंग पर अमेरिका ने लगाई रोक, चीन के साथ मिलीभगत पर ट्रंप ने लगाए गंभीर आरोप

WHO ने ताइवान को भी नजरअंदाज कर दिया था, जिसने बताया था कि उसके पास वायरस के मानव-से-मानव में पहुँचने के सबूत हैं। ताइवान ने इस बारे में 31 दिसंबर 2020 को WHO को लिखा था, लेकिन इसके बाद भी WHO जनवरी के मध्य तक कोरोना संक्रमण के मानव-से-मानव में पहुँचने से इनकार करता रहा।

इन दिनों कोरोना महामारी से बुरी तरह जूझ रहे अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को मिलने वाले फंड पर रोक लगा दी है। इसका ऐलान करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने अपने प्रशासन को WHO की फंडिंग को रोकने के निर्देश दिए हैं। साथ ही ट्रंप ने कहा है कि कोरोना वायरस के चीन में उभरने के बाद इसके प्रसार को छिपाने और गंभीर कुप्रबंधन में संगठन की भूमिका की समीक्षा की जा रही है।

ट्रंप ने मंगलवार मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, “आज मैं अपने प्रशासन को विश्व स्वास्थ्य संगठन के वित्त पोषण को रोकने का निर्देश दे रहा हूँ। हर कोई जानता है कि वहाँ क्या चल रहा है। WHO को अमेरिकी करदाता प्रत्येक वर्ष 400-500 मिलियन डॉलर सहयोग के तौर पर देता है और वहीं इसके विपरीत चीन संगठन को लगभग 40 मिलियन डॉलर से भी कम प्रति वर्ष योगदान के रूप में देता है।

ट्रंप ने तर्क देते हुए कहा कि संगठन के प्रमुख प्रायोजक के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका का कर्तव्य है कि वह WHO की पूर्ण जवाबदेही पर जोर दे। राष्ट्रपति ट्रंप ने आरोप लगाया है कि चीन के वुहान शहर में जब कोरोना वायरस के मामले सामने आए तो WHO उसका आकलन करने में असफल रहा। उन्होंने पत्रकारों से पूछा कि क्या WHO ने मेडिकल एक्सपर्ट के जरिए चीन के जमीनी हालात का आकलन किया। या क्या इसका पता लगाया कि इस प्रकोप को उसके मूल स्थान पर ही सीमित किया जा सकता है या नहीं?

ट्रंप ने कहा कि अगर WHO इस तरह का प्रयास करता तो से हजारों जानें बच जातीं और विश्व की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान नहीं पहुँचता। इसके बजाय WHO चीन के ऐक्शन का बचाव ही करता रहा। एक आँकड़े के मुताबिक 15 अप्रैल तक विश्व में लगभग 20 मिलियन लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इसके लिए चीन और WHO को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। इससे पहले भी ट्रंप ने डब्लूएचओ पर चीन का पक्ष लेने का आरोप लगाया था।

यहाँ तक कि जनवरी में WHO के एक चीनी अधिकारी ने कहा था कि कोरोना वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। इसलिए वह (WHO) यात्रियों के लिए और वुहान से किसी भी विशिष्ट स्वास्थ्य उपायों की सिफारिश नहीं करता है।

इतना ही नहीं WHO ने ताइवान को भी नजरअंदाज कर दिया था, जिसने बताया था कि उसके पास वायरस के मानव-से-मानव में पहुँचने के सबूत हैं। ताइवान ने इस बारे में 31 दिसंबर 2020 को WHO को लिखा था, लेकिन इसके बाद भी WHO जनवरी के मध्य तक कोरोना संक्रमण के मानव-से-मानव में पहुँचने से इनकार करता रहा। याद रहे कि ताइवान को चीन की आपत्तियों के कारण WHO की सदस्यता से वंचित किया गया है।

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह ढिलाई उस तबाही के लिए जिम्मेदार है, जिससे दुनिया आज लड़ रही है। चीनी प्रीमियर शी जिनपिंग की तरह WHO के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेयिसस को भी इस घातक महामारी के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

टेड्रोस पर अपने गृह देश इथियोपिया में महामारी को कवर करने का आरोप लगाया गया था, जबकि वह WHO के निदेशक बनने से पहले सरकार के स्वास्थ्य मंत्री रहे थे। एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, जो WHO के शीर्ष स्थान के लिए टेड्रोस के प्रतिद्वंद्वी के लिए एक अनौपचारिक सलाहकार भी थे, ने उन पर इथियोपिया में तीन महामारी को कवर करने का आरोप लगाया था।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

थीसिस पेश करने से लेकर, डिग्री पूरी होने तक… जानें जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ होता है कैसा बर्ताव, सामने आई रिपोर्ट

'कॉल फॉर जस्टिस' की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से पता चलता है कि जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर-मुस्लिमों के साथ न केवल भेदभाव हुआ बल्कि उन्हें धर्मांतरण के लिए उकसाया भी गया।

बांग्लादेश में संविधान का ‘खतना’: सेक्युलर, समाजवादी जैसे शब्द हटाओ, मुजीब से राष्ट्रपिता का दर्जा भी छीनो – सबसे बड़े सरकारी वकील ने दिया...

युनुस सरकार बांग्लादेश के संविधान से 'सेक्युलर' शब्द निकालने की तैयारी कर रही है। इसे इस्लामीकरण की दिशा में एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -