ये घटना तब की है, जब बांग्लादेश ‘पूर्वी पाकिस्तान’ हुआ करता था, पाकिस्तान का एक हिस्सा। वहाँ आज़ादी का आंदोलन चल रहा था। उसे कुचलने के लिए पाकिस्तानी फ़ौज क्रूरता की हर सीमा पार कर रही थी। न केवल बंगाली बोलने वाले लोगों, बल्कि उनके साथ-साथ बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को भी निशाना बनाया जा रहा था। उन्हीं वीभत्स घटनाओं में से एक है जिंजीरा का नरसंहार।
जिंजीरा नरसंहार 1971 में ‘बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन’ के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा योजनाबद्ध तरीके से की गई हिन्दुओं के नरसंहार की दास्ताँ है। यह हत्याकांड ढाका से बूढ़ीगंगा नदी के आसपास केरानीगंज उपजिला के जिंजीरा, कालिंदी और शुभद्या जैसे स्थानों पर हुआ, जिसमें एक ही रात में करीब 5000 हिन्दुओं की हत्या कर दी गई थी।
हिन्दुओं का कत्लेआम, हजारों महिलाएँ बलात्कार की शिकार
इसकी जानकारी बांग्लादेश में उस वक्त मौजूद अमेरिकी वकील आर्चर ब्लड के कई टेलीग्रामों से भी मिलती है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से तत्काल हस्तक्षेप करने की माँग की थी। उन्होंने लिखा था, “पाकिस्तानी सेना के समर्थन से गैर-बंगाली मुस्लिम योजनाबद्ध तरीके से ग़रीब लोगों के घरों पर हमला कर रहे हैं और बंगालियों और हिंदुओं की हत्या कर रहे हैं।”
एक अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना ने 1970 के दशक में कई नरसंहार किए जिसमें हिंदू पुरुषों, पेशेवरों और बुद्धिजीवियों को मारा गया। इस दौरान 20,000 से 40,000 महिलाएँ बलात्कार की शिकार हुईं।
पाकिस्तान का ‘खूनी खेल’
पाकिस्तानी सेना ने योजनाबद्ध तरीके से मुक्ति आंदोलन में शामिल लोगों के खिलाफ जमकर रक्तपात मचाया। इस दौरान धर्म को आधार बनाया गया और हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बीज 25 मार्च, 1971 को ही पड़ गए थे, जब पाकिस्तानी सेना ने शेख मुजीबुर्रहमान की ‘अवामी लीग’ के नेतृत्व वाले मुक्ति आंदोलन को दबाने के लिए ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया।
पूर्वी पाकिस्तान को खोने के कगार पर पहुँचा पाकिस्तान बौखलाया हुआ था। ये हिस्सा पाकिस्तान की मुख्य भूमि से 1600 किलोमीटर (990 मील) दूर था, इसीलिए इसे नियंत्रित करने में दिक्कतें आ रही थी। इससे गुस्साए पाकिस्तान ने बांग्लादेश पर अपनी कम होती पकड़ को बनाए रखने के लिए आखिरी कोशिश के रूप में जमकर खूनी खेल खेला। परिणाम ये हुआ कि गंभीर मानवीय संकट पैदा हो गया और 1 करोड़ से ज़्यादा शरणार्थी भारत में शरण लेने को मजबूर हो गए। खास तौर पर पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा जैसे बांग्लादेश से सटे राज्यों में।
आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हुआ पाकिस्तान
9 महीने के आंतरिक संघर्ष और बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना के लगातार हमले के बाद भारत के साथ निर्णायक युद्ध शुरू हुआ। 13 दिनों के भीतर, भारतीय सेना ने एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की, जिससे 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को शर्मनाक हार के बाद आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के तौर पर उदय हुआ। बांग्लादेश के बनने में वहाँ के हिन्दुओं के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। आजादी की लड़ाई को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान ने मुक्ति वाहिनी के हिन्दू नेताओं और समर्थकों को चुन-चुनकर मौत के घाट उतार दिया। ऐसे ही नरसंहारों में एक था जिंजीरा नरसंहार।
जिंजीरा नरसंहार की वो काली रात
2 अप्रैल, 1971 की रात पाकिस्तान के सरकारी टीवी चैनल ने बूढ़ीगंगा की दूसरी तरफ केरानीगंज के जिंजीरा में शरण लिए हुए मुक्ति वाहिनी समर्थकों के खिलाफ सैन्य अभियान चलाने का ऐलान किया। 3 अप्रैल को मॉर्निंग न्यूज ने शीर्षक दिया, “जिंजीरा में उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई।”
हुआ यूँ कि पाकिस्तानी सेना ने 2 अप्रैल की आधी रात से केरानीगंज के आसपास सैनिकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। इन इलाकों के आसपास मुख्य रूप से हिन्दू परिवार रहते थे। उन्होंने नदी के किनारे स्थित मिटफोर्ड अस्पताल पर कब्जा कर लिया। सुबह करीब 5 बजे उन्होंने अस्पताल से सटी मस्जिद की छत से आग के गोले फेंकना शुरू किया और जिंजीरा में घुस गए। पूरे इलाके को कँटीली तारों से घेर दिया गया था, ताकि कोई भाग न सके।
पाकिस्तानी सेना लगातार लोगों पर गोलियाँ चला रही थी। यह नरसंहार करीब नौ घंटे तक चला। इस दौरान नांदेल डाक गली के एक तालाब के किनारे 60 लोगों को कतार में खड़ा करके गोली मार दी गई। सैनिकों ने बम बरसाए और घरों में घुसकर मौत का तांडव मचाया। इस नरसंहार में हज़ारों लोग मारे गए।
कब्र में छिप गए थे लोग
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना ने कम से कम 5000 नागरिकों को मार डाला। जिंजीरा, कालिंदी जैसे इलाके आवामी लीग के गढ़ थे। पाकिस्तानी सेना द्वारा शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सर्च लाइट’ के बाद ढाका से बूढ़ीगंगा नदी पार कर बड़ी संख्या में हिन्दू यहाँ आए थे। ये लोग अवामी लीग के समर्थक थे।
बांग्लादेश में संयुक्त राष्ट्र मिशन के पूर्व प्रेस काउंसलर रहे अब्दुल हन्नान भी उन लोगों में शामिल थे जो घटना के दौरान वहाँ छिपे हुए थे। उन्होंने भी इस घटना का जिक्र डेली स्टार से किया है।
मुसलमानों को पाकिस्तानी सेना ने छोड़ा
हन्नान ने लिखा, “गोली दाहिनी तरफ से आ रही थी, इसलिए परिवार के साथ उत्तर की तरफ भागा। थोड़ी दूर चलने के बाद लगा उत्तर से गोली आने लगी तो पूर्व की ओर भागा, लेकिन फिर पता चला कि चारों ओर से गोली चल रही है। हम भागकर मस्जिद के पास पहुँचे। उसके पीछे एक कब्रिस्तान था। लोग कब्रों में छिपे हुए थे” हन्नान के मुताबिक, उनके पिता ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने उनपर बंदूक तान दी थी लेकिन अल्लाह का नाम लेते ही उन्हें छोड़ दिया।
इसी तरह की एक और घटना ढाका के शंखरीबाजार में हुई। वह भी हिन्दू इलाका माना जाता था। यहाँ शंख की पारंपरिक चूड़ियाँ बनाई जाती थी। पाकिस्तानी सेना ने करीब 126 हिन्दुओं के घरों को घेर लिया और लोगों की एक एक कर गोली मार दी। घटना के बाद शंखरीबाजार वीरान हो गया।