पेरिस में इतिहास के शिक्षक सैम्यूल पैटी की हत्या के बाद हर जगह इस कृत्य की निंदा की जा रही है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने तो घटना को आतंकी हमला करार दे दिया है। ऐसे में एक इस्लामी बुद्धिजीवी का वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में वह कहते सुने जा रहे हैं कि युवक ने शिक्षक का गला काटकर कोई बड़ा अपराध नहीं किया।
तुर्की चैनल को दिए इंटरव्यू में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ मुस्लिम स्कॉलर्स के शेख अल यूसुफ ने कहा कि इस्लामी कानून के मद्देनजर युवक ने कोई गंभीर अपराध नहीं किया। इस्लामी बुद्धिजीवी मानते हैं कि युवक ने ऐसा कुछ नहीं किया जो आपत्तिजनक हो।
Beheading French teacher for insulting the Prophet is ‘not a serious crime’: World Islamic scholars’ body: https://t.co/CbROr58dqQ via @eOrganiser
— Organiser Weekly (@eOrganiser) October 22, 2020
अल युसूफ के अनुसार, पैगंबर के अपमान की सजा केवल मौत होती है। युवक की गलती बस ये थी कि उसने खुद दंड देने का फैसला किया। शरीया के अनुसार, ये दंड आईएस (इस्लामिक स्टेट) देता है। वह आगे कहते हैं:
जैसा कि मैंने आपको बताया कि अगर यह साबित होता है कि यह करने वाला चेचन मुस्लिम (Chechen Muslim) था और उसने यह सब पैगंबर मोहम्मद के अपमान के कारण गुस्से में किया , और यदि वह मजहबी था, जिसने शरीया के बचाव में यह कदम उठाया, तो हमें उसका फैसला अल्लाह को करने देना चाहिए। हो सकता है उसने इस्लामी कानून के तहत सजा दी हो।
इस्लामी कट्टरपंथी ने तुर्की चैनल पर बात करते हुए कहा कि लोगों को इस बात पर गौर करना चाहिए कि आखिर किस कारण युवक ऐसा करने के लिए मजबूर हुआ। युवक के पूरे अपराध का सामान्यीकरण करते हुए युसूफ ने कहा कि फ्रांस में इस्लामोफोबिया बढ़ रहा था, जो ऐसी प्रतिक्रियाओं के लिए उकसा रहा था, जैसा कि फ्रेंच शिक्षक के केस में हुआ।
इस्लामोफोबिया के सिर पूरे कृत्य का ठीकरा फोड़ते हुए इस्लामी बुद्धिजीवी ने कहा कि फ्रांस में इस्लाम के ख़िलाफ़ हमले हो रहे हैं। पिछले दिनों में भी देखने को मिला कि यहाँ इस्लाम, व पैगंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ मीडिया में, राजनीति में, सांस्कृतिक और वैचारिक तौर पर अभियान चल रहा है। इसके साथ ही मजहबी प्रतीकों, जैसे हिजाब पर हमले हो रहे हैं।
मजहबी बुद्धिजीवी ने कहा इस्लाम फ्रांस में दूसरा सबसे बड़ा धर्म था और पहले नंबर पर यूरोप था। पश्चिम के लोग असहज हैं और सोचते हैं कि इन (इस्लाम) पर हमला किया जाना चाहिए। ऐसे लोग नहीं चाहते कि इस्लाम आगे बढ़े। वह आगे कहते हैं:
मैं इन सभी कार्यों के प्रकाश में कहना चाहूँगा कि हमें उन लोगों पर भी नजर डालनी चाहिए जो भड़काने और विकृत करने का कार्य करते हैं व जो पैगंबर मोहम्मद पर हमला करते हैं, वो भी उस देश में जो धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक होने का दावा करता है, मानवाधिकारों, धर्म, मत और विचार के सम्मान का दावा करता है। मुझे नहीं मालूम कि इस्लामी प्रतीकों का दमन, उनका अपमान और उन पर हमला, किस प्रकार का सम्मान है। यही दिक्कत है। शरीया के मुताबिक इस कृत्य पर और उसक जजमेंट पर बात करने से पहले हमारा मत है कि हमें उन सभी शत्रुतापूर्ण और घृणित कार्यों पर ध्यान देना चाहिए जो कई वर्षों से मजहब के खिलाफ हो रहे हैं और उन्हें सरकार का व चरमपंथियों का समर्थन है ताकि पश्चिम में इस्लाम की छवि खराब की जा सके।
गौरतलब है कि कट्टरपंथियों का ऐसा चेहरा हैरान करने वाला नहीं है। जब शार्ली एब्दो पर हमला हुआ, तब भी विश्वभर के इस्लामियों ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी। पाकिस्तान में तो सैंकड़ों प्रदर्शनकारियों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया था और फ्रांस के उत्पादों का बहिष्कार की बात की थी।
ऐसे ही भारत में भी पैगंबर मोहम्मद पर अपना बयान देने के कारण कमलेश तिवारी को इस्लामी कट्टरपंथ का शिकार होना पड़ा था। कई लोगों ने उनके ख़िलाफ़ मार्च निकाला था और उस समय की यूपी सरकार ने तब उन्हें एनएसए के तहत जेल में भी डाला था। हालाँकि, कानूनी सजा मिलने के बाद उनके ऊपर से खतरा खत्म नहीं हुआ और साल 2019 में उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। पड़ताल में मालूम चला था कि उनकी हत्या की साजिश कई समय से चल रही थी और इसके पीछे दुबई तक के तार जुड़े थे।