अब जब अफगानिस्तान से अमेरिका की सेना वापस लौट रही है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में इस प्रक्रिया का एक बड़ा हिस्सा पूरा भी हो गया है, हमें इस बात को समझने की ज़रूरत है कि आखिर ऐसी क्या नौबत आई थी कि तालिबान के खात्मे के लिए अमेरिका को अफगानिस्तान में घुसना पड़ा और आतंकवाद के खिलाफ उसका ‘Operation Enduring Freedom (OEF)’ शुरू हुआ। इसकी नींव कब पड़ी थी और इसका भारत-पाकिस्तान से क्या लेना-देना था?
दरअसल, अमेरिका में सितम्बर 11, 2001 को अलकायदा के हमले ने पश्चिमी जगत को बताया कि आतंकवाद इस दुनिया की कितनी बड़ी समस्या है। न्यूयॉर्क के मैनहटन में स्थित ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ पर ओसामा बिन लादेन ने ऐसा हमला करवाया, जिसे अभी भी इतिहास के सबसे खतरनाक आतंकी हमलों में से एक माना जाता है। इतना बड़ा आतंकी हमला दुनिया के इतिहास में अनदेखा और अनसुना था।
9/11 का हमला, जिसके प्रतिक्रिया में शुरू हुआ OEF
इसे हम 9/11 के आतंकी हमले के रूप में भी जानते हैं। इस हमले में 2977 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी और 25,000 से भी अधिक घायल हुए थे। साथ ही 10 बिलियन डॉलर की संपत्ति का नुकसान भी हुआ था। ओसामा बिन लादेन ने 1996 में ही संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के खिलाफ ‘युद्ध’ की घोषणा कर दी थी और 9/11 हमले के पीछे भी पूरी साजिश उसकी ही थी। अफगानिस्तान उस समय अलकायदा और तालिबान के लिए जन्नत बना हुआ था।
इस दिन अलकायदा ने पूरे सुनियोजित तारीके से एक के बाद एक चार बड़े हमले किए। उत्तर-पूर्वी अमेरिका से कैलिफोर्निया के लिए निकले 4 एयरक्राफ्टस को अलकायदा के 19 आतंकियों ने मिल कर हाइजैक कर लिया। इनमें से दो एयरक्राफ्टस को ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ के नॉर्थ और साउथ टॉवर से टकराया गया। अगले कुछ ही मिनटों में ये दोनों ही इमारतें ध्वस्त हो गईं। दोनों इमारतें 110 मंजिल थीं, इससे आप तबाही के मंजर का अंदाज लगा सकते हैं।
ये हमला इतना जबरदस्त था कि ‘वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर’ कॉम्प्लेक्स के भीतर खड़ी सारी इमारतें पूर्ण या अपूर्ण रूप से ध्वस्त हो गईं। एक एयरक्राफ्ट को आतंकियों ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन से टकराया, जिससे इस इमारत का पश्चिमी हिस्सा ध्वस्त हो गया। चौथे एयरक्राफ्ट को वाशिंगटन ले जाने कि योजना थी लेकिन वो पेंसिलवेनिया के एक मैदान में क्रैश हुआ। अमेरिका ही नहीं, पूरे देश में हाहाकार मच गया।
इस हमले के 3 साल बाद 2004 में अलकायदा के सबसे बड़े सरगना ओसामा बिन लादेन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली और इसके पीछे इजरायल को अमेरिका का समर्थन, सऊदी अरब में अमेरिकी सेना की मौजूदगी और इराक पर लगे प्रतिबंधों को कारण बताया। जैसा कि हम जानते हैं, ओसामा बिन लादेन बाद में पाकिस्तान में पाया गया था और वहीं एबटाबाद में ऐशोआराम की ज़िंदगी जी रहा था, जहाँ उसे मई 2011 में मार गिराया गया।
अलकायदा के इस हमले से न्यूयॉर्क की अर्थव्यवस्था तो ध्वस्त हुई ही, साथ ही पूरे विश्व के बाजारों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा। अगले 4 दिनों तक अमेरिका और कनाडा के एयरस्पेस को बंद रखना पड़ा। साथ ही ‘वॉल स्ट्रीट’ का कारोबार भी अगले एक सप्ताह तक पूरी तरह ठप्प रहा। सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़ाई करते हुए ओसामा बिन लादेन अब अमेरिका का दुश्मन नंबर एक था। वो आतंकी, जिसने ‘जिहाद’ का पाठ पढ़ाया और इसे आतंक से जोड़ा।
जब अफगानिस्तान मे घुसा अमेरिका: क्या हुआ तालिबान और अलकायदा का हाल?
एक दिलचस्प बात ये है कि पहले इस ऑपरेशन का नाम ‘ऑपरेशन इंफाइनाइट जस्टिस’ था लेकिन मुस्लिम जगत की तीखी आलोचना के बाद इसका नाम बदल कर ‘ऑपरेशन एंडयूरिंग जस्टिस’ कर दिया। तब इसके पीछे कारण बताते हुए अमेरिका के तत्कालीन डिफेंस सेक्रेटरी डोनाल्ड रूम्सफेल्ड ने कहा था कि इस्लाम में माना जाता है कि ‘Finality’ एक ऐसी चीज है, जो अल्लाह ही दे सकता है – इसीलिए नाम बदला जा रहा है।
आतंकवाद पर अमेरिका का ये वार बहुआयामी था। OEF तो सिर्फ मिलिट्री का सेटअप था लेकिन आतंकवाद के खिलाफ युद्ध तो आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक – इन तीनों ही आयामों में चल रहा था। तभी अमेरिका ने कह दिया था कि ये ‘क्विक फिक्स’ नहीं है, इसमें सालों लगेंगे क्योंकि ये एक धीमी प्रक्रिया होगी और इसमें और भी जानें जा सकती हैं। दुनिया भर के मुस्लिम संगठनों और कई इस्लामी मुल्कों ने इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का विरोध शुरू कर दिया था।
सितंबर 20, 2001 को कॉन्ग्रेस सेशन को संबोधित करते हुए जॉर्ज बुश ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और अफगानिस्तान की तालिबान सरकार से कहा कि वो अपने देश में रह रहे सारे अलकायदा आतंकियों को अमेरिका को सौंपे और अपनी जमीन पर स्थित सारे आतंकी कैंपों का एक्सेस यूएन को दे। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि इन माँगों पर न तो कोई चर्चा हो सकती है और न ही मोलभाव का कोई स्कोप है।
जॉर्ज बुश ने कहा कि तालिबान के पास दो ही विकल्प हैं – या तो वो सारे आतंकियों को अमेरिका के सुपुर्द करे या फिर उसका भी वही हाल होगा, जो उन आतंकियों का होगा। इसके लिए वो तैयार रहे। 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिका ने तालिबान का शासन ख़त्म कर दिया। 1996 से ही चल रहे तालिबान के शासन के दौरान इस्लामी शरिया कानून लागू था और संगीत, टीवी, खेल और नृत्य जैसी चीजों पर पूर्णरूपेण पाबन्दी लगी हुई थी।
ओसामा बिन लादेन अमेरिका के हाथ अगले 10 सालों तक नहीं आया। तब तक वो बयान जारी कर कहता रहा कि कैसे पश्चिम में इस्लाम को लेकर जबरदस्त घृणा है। उसने कहा कि अमेरिका के खिलाफ आतंकवाद जायज है क्योंकि ये ‘अन्याय के खिलाफ लड़ाई’ है और अमेरिका उस इजरायल का सहयोगी है, जो ‘हमारे लोगों को’ मारता है। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में एक-एक कर अलकायदा के आतंकियों को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया।
Operation Enduring Freedom: भारत और पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में
पाकिस्तान की हमेशा से यही चाल रही है कि एक तरफ तो वो भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे और दूसरी तरफ अमेरिका से आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर रुपए ऐंठे। जब अमेरिका अफगानिस्तान में घुसा, तब उसे रसद से लेकर ज़रूरी साजो-सामान वहाँ पहुँचाने के लिए पाकिस्तान की दरकार थी। तभी तो उसने पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर की सहायता करनी शुरू कर दी। इधर पाकिस्तान कश्मीर में आतंकी हरकतों को बढ़ावा देता रहा।
लेकिन, धीरे-धीरे पाकिस्तान की पोल खुलती चली गई क्योंकि कारगिल युद्ध के बाद से ही उसके दोहरे रवैये दुनिया के सामने आने लगे थे। तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शांति का सन्देश लेकर पाकिस्तान गए थे लेकिन वहाँ से भारत की पीठ में छुरा घोंपा गया। अमेरिका ने भारत से कहा कि वो अफगानिस्तान के बाद भी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई जारी रखेगा। कइयों को लगा कि शायद अब कश्मीर की बारी है।
लेकिन, ऐसा नहीं था। अमेरिका अफगानिस्तान में फँस चुका था और वहाँ उसे पाकिस्तान की ज़रूरत थी। भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह को ये वास्तविकता पता थी, तभी उन्होंने वाशिंगटन में ये कहा कि कश्मीर की लड़ाई भारत को अब खुद के भरोसे ही लड़नी पड़ेगी। अमेरिका ने भारत पर 1998 परमाणु परीक्षण के बाद लगे प्रतिबंधों को हटाना शुरू कर दिया और कहा कि आतंकवाद किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं है।
जॉर्ज बुश भारत और पाकिस्तान के बीच बैलेंस बना कर चलना चाहते थे। लेकिन, पाकिस्तान को 100 करोड़ डॉलर की सहायता कम नहीं थी और इन रुपयों का इस्तेमाल कहाँ होना था, इसका भी सभी को अंदाज़ा था। अफगानिस्तान में भारत को उस समय कोई भूमिका नहीं दी गई थी लेकिन धीरे-धीरे मानवीय सहायताओं के रूप में भारत ने अफगानिस्तान के लोगों का दिल जीतना शुरू कर दिया। साथ ही पाकिस्तान की पोल खुलती चली गई।
जबकि सच्चाई ये थी कि अफगानिस्तान में भारत को नज़रअंदाज़ किए बिना कोई भी कार्रवाई संभव ही नहीं थी। वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक अपनी पुस्तक ‘अफगानिस्तान: कल, आज और कल’ में लिखते हैं कि वो धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी, संस्कृत के व्याकरणाचार्य पाणिनि और गुरु गोरखनाथ की भूमि है। वो आर्यों, बौद्धों और हिन्दुओं का देश रहा है, जहाँ लड़कों का नाम आज भी कनिष्क, हविष्क और लड़कियों के नाम वेद व अवेस्ता सुना जा सकता है।
आज के समय में देखा जाए तो भारत अफगानिस्तान में एक से बढ़ कर एक विकास कार्य चला रहा है और दुनिया के सामने नंगे खड़े पाकिस्तान के न तो उससे अच्छे सम्बन्ध हैं और न ही भारत से। अमेरिका से उसे अब पहले की तरह लॉलीपॉप भी नहीं मिलता। ये बदलाव 9/11 हमलों के बाद या अमेरिका के ऑपरेशन के बाद अचानक नहीं आए बल्कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह से उसे बेनकाब किया है, ये उसका नतीजा है।
The US military plans to cancel $300 million in aid to Pakistan due to Islamabad’s lack of ‘decisive actions’ in support of American strategy in the region, the Pentagon has said https://t.co/XHchoSWxTe pic.twitter.com/tHCdcxiKQw
— AFP news agency (@AFP) September 2, 2018
उसी हमले के बाद से दुनिया भर के देशों ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी-अपनी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करनी शुरू की। हालाँकि, मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में ये चीजें पूरी तरह पटरी से उतर गईं। असल में 26/11 के मुंबई हमले के बाद से ही यूपीए सरकार की नीति काफी लचर रही, जिसे मोदी सरकार ने दुरुस्त करना शुरू किया। आज कश्मीर में स्थिति ठीक होती जा रही है और आतंकियों का सफाया हो रहा है।
9/11 के हमले के बाद से ही अमेरिका अलकायदा के पीछे पड़ा और उसने ओसामा बिन लादेन की तलाश शुरू की। अपने ‘सेफ हेवन’ पाकिस्तान में रह रहे लादेन को इस ऑपरेशन के शुरू होने के 10 वर्षों बाद मार गिराया गया। अब गणित भारत के पक्ष में है क्योंकि UN के मंच पर भी सबूतों के साथ आतंकवाद पर पाकिस्तान को बेनकाब किया जाता है। वहीं पाकिस्तान को अब इस्लामी मुल्कों से भी लताड़ मिल रही है।
असल में भारत पहले भी पाकिस्तान की चालबाजियों को लेकर आवाज़ उठाता था लेकिन अब दुनिया में हमारा पक्ष इसीलिए गूँज रहा है क्योंकि बिना किसी हिचक के हर देश में, हर मंच पर उसके खिलाफ सबूत रखे गए हैं और दूसरी तरफ विकास कार्यों को बढ़ावा देकर जम्मू कश्मीर के लोगों का दिल जीता गया है। तभी तो मुद्दा अब जम्मू कश्मीर नहीं, POK है – जैसा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह भी चुके हैं।