पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ होता अत्याचार तो हमेशा से मीडिया में सामने आता रहा लेकिन अब वहाँ अफगानिस्तान शरणार्थियों की हालत भी बहुत खराब है। पाकिस्तानी सरकार ने एक तरफ उनसे यह कह दिया है कि जिन शरणार्थियों के पास दस्तावेज नहीं है वो मुल्क से निकलें। तो वहीं, दूसरी ओर वो पाकिस्तानी हैं जो मुल्क छोड़कर जाने वाले शरणार्थियों को तरह-तरह से लूटने में लगे हैं।
पाकिस्तानी मीडिया साइट डॉन ने इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें बताया गया है कि सरकार ने 1.7 मिलियन गैर दस्तावेज वाले शरणार्थियों से पाकिस्तान छोड़ने को कहा है और साथ में ये भी कहा है कि वो अपने साथ केवल 50 हजार रुपए ही लेकर जा सकते हैं।
A convoy of Afghan refugees leaving Pakistan to an uncertain future in Afghanistan. pic.twitter.com/EJfqOvCebA
— Saleem (@memzarma) November 10, 2023
सरकार की ऐसी शर्त के कारण एक तो अफगान शरणार्थी पहले ही सोच में हैं कि उनका गुजारा इतने कम पैसों में कहीं अंजान जगह कैसे होगा और कब तक होग। दूसरा वो ये देखकर भी हैरान हैं कि जिन पाकिस्तानियों के साथ वो इतने समय तक रहे वही लोग उनकी लाचारी का कितना फायदा उठाने में लगे हैं।
शरणार्थियों की मजबूरियों का फायदा उठाने में जुटे पाकिस्तानी
मोहम्मद आसिफ नाम का शख्स जो पाकिस्तान की मच्छर कॉलोनी में रहा उसे अपनी दुकान मात्र 0.3 मिलियन (88,590 पाकिस्तानी रुपए के अनुसार) में बेचनी पड़ी। जब उससे पूछा गया कि वो अच्छे सौदे के लिए क्यों नहीं रुका इसपर उसने जवाब दिया कि उसे डर है कि पाकिस्तान की पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी।
आसिफ ने यह भी जानकारी दी कि अल-आसिफ स्कॉयर, जहाँ अफगान के शरणार्थी ज्यादा रहते थे, उनका कारोबार और दुकानें ज्यादा थीं वहाँ भी अब सब बंद है और स्थानीय लोग (पाकिस्तानी) व उनके विश्वासपात्र फ्रंटमैन आकर उनसे बर्बरता से पैसा वसूलते हैं। आसिफ ने अपनी तरह एक अपने चाचा की भी कहानी सुनाई जिन्होंने 5.2 मिलियन में खरीदे घर 1.4 मिलियन में बेचना पड़ा।
ऐसे ही एक हबीब उल्ला का दर्द भी रिपोर्ट में बताया गया है जिसकी उम्र 40 साल है और वो पेशावर में सब्जी की दुकान करता था। कई सालों से वो उसकी बीवी और उसके 13 बच्चे यहीं इसी दुकान के भरोसे पले। लेकिन अब हालातों की वजह से हबीब उल्लाह को भी अपनी दुकान कम दाम में बेचनी पड़ी। कुछ लोगों ने उनसे कर्जा लिया था वो पैसा भी उन्हें वापस नहीं मिल रहा जिसकी वजह से उन्हें 3 लाख रुपए (पाकिस्तानी रुपए) से ज्यादा नुकसान हो गया। उनकी बस यही तमन्ना है कि अगर सरकार उन्हें यहाँ से निकाल ही रही है तो कम से कम उन्हें उनकी मेहनत का पैसा ले जाने दिया जाए।
सरकार ने कहा था कि गैर दस्तावेज वाले अफगानी चूँकि कोई व्यापार या बैक के माध्यम से वित्तीय लेन-देन नहीं कर सकते इसलिए वो एक विश्वासपात्र पाकिस्तानी को चुनें और उसके नाम से अपना काम और वित्तीय लेन-देन करें… अब अफगान के शरणार्थी ये भी शिकायत कर रहे हैं कि यही फ्रंटमैन उनकी मजबूरियों का फायदा उठाने से पीछे नहीं हट रहे और उनकी बचत को लूटने में लगे हैं। इसके अलावा ऐसी वीडियोज भी आ रही हैं जिनमें दिखाया जा रहा है कि कैसे पाकिस्तानी फौज शरणार्थियों को डराने-मारने में लगी है।
मुल्क की सरकार ने पिछले 40 साल से पाकिस्तान में रह रहे अफगानी शरणार्थी को लेकर ऐसा निर्णय क्यों लिया ये बात खुद पाकिस्तान के बुद्धिजीवियों की समझ से भी बाहर है। लेकिन चलिए हम अंदाजा लगा भी लें कि शायद कर्ज के तले दबा पाकिस्तान अपने ऊपर से कुछ बोझ हल्का करने और राशन बचाने के लिए ऐसी हरकत कर रहा हो। मगर, सवाल है कि ये सामान्य पाकिस्तानियों को क्या हुआ है…। ये क्यों उन अफगानिस्तानी मुस्लिमों को लूटने में जुटे हैं जिन्हें सोशल मीडिया पर आते ही वो उम्माह का हिस्सा बताते रहे। और, जब बात हकीकत में साथ देने की आई तो एकदम रंग बदल लिया।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने किया पाकिस्तान का विरोध
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाकिस्तान की ऐसी हरकत का विरोध भी जताया है। दक्षिण एशिया में अभियान के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल के उप क्षेत्रीय निदेशक लिविया सैकार्डी ने तो कहा है कि पाकिस्तान इस समय अफगान शरणार्थियों को राजनीति के मोहरों जैसे इस्तेमाल कर रहा है और उन्हें उस अफगानिस्तान में दोबारा भेज रहा है जिसमें आज तालिबानी राज है।
These beautiful kids from #Afghanistan have become homeless after #Pakistan authorities deported and detained 1.7M Afghan Refugees.
— Zahack Tanvir – ضحاك تنوير (@zahacktanvir) November 9, 2023
Imagine if this was done by Jews, Christians, Hindus, or even an Arab countries, there would be a whole different reaction! pic.twitter.com/Ahn72DeMMd
संस्था ने तो ये भी दावा किया है कि ये पाकिस्तानी इस समय सिर्फ उन्हें निशाना नहीं बना रहे जिनके पास ‘प्रूफ ऑफ रजिस्ट्रेशन’ नहीं है, बल्कि ये उन्हें उन वैध शरणार्थियों को भी परेशान कर रहे हैं जिनपर POR है। संस्था ने एक 17 साल के लड़के के गायब होने की घटना का जिक्र किया है जो जन्मा पाकिस्तान में था और उसके पास सभी जरूरी दस्तावेज भी थे लेकिन उसे फिर भी कराची से उठाकर डिटेंशन सेंटर में रख दिया गया और घरवालों को उस लड़के से मिलने तक नहीं दिया गया।
एमनेस्टी ने चेता दिया है कि अगर अभी पाकिस्तानी सरकार ने ये निर्वासन को नहीं रोका तो हजारों अफगानियों खासकर महिलाओं-लड़कियों की सुरक्षा शिक्षा, जीवन सब दाव पर लग जाएगा। लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि पाकिस्तानी सरकार के कान में जूँ भी रेंगी है।
31 अक्टूबर को उन्होंने अंतिम तारीख दी थी और उसके बाद से उन्होंने शरणार्थियों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया है। ये शरणार्थियों अगर कुछ बोल पा रहे हैं तो सिर्फ इतना- “जब हमने इतने सालों में किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया तो अब हम कैसे पहुँचाएँगे?”… सोच रहे हैं तो ये कि बिन पर्याप्त पैसों के उनका कहीं और गुजारा कैसे होगा।
गाजा के लिए रोया था रोना, अब उम्माह का ख्याल नहीं
अजीबोगरीब बात ये है कि यही पाकिस्तान पिछले दिनों गाजा के लिए रोना रो रहा था, मानवाधिकार की बात कर रहा था लेकिन अब अपने कारनामों पर चुप है। है न हैरानी की बात कि ये हल्ला सिर्फ तभी होता है जब एक तरफ मुस्लिम और दूसरी तरफ कोई और समुदाय हो? क्या जो अफगानी शरणार्थियों से हो रहा है उस पर उम्माह को एक एकजुट होकर नहीं बोलना चाहिए। आज पाकिस्तान उन्हें उसी जमीं पर भेज रहा है जहाँ से वो सालों पहले भागकर आए थे। तालिबान के प्रवक्ता तक को पाकिस्तान की इस हरकत से नाराजगी है लेकिन उन्हें खुद को इस हरकत पर कोई शर्म नहीं।
वैसे ये पहली दफा नहीं है कि इस्लामी देश पाकिस्तान ने मुसलमानों पर अत्याचार देखकर करके आँख मूँदी हो। चीन के कर्जे तले दबा ये मुल्क उइगर मुस्लिमों पर हमेशा से चुप रहा है। उनकी मदद करना तो दूर ये मुल्क सहारा माँगने वाले उइगरों को दोबारा चीन को सौंप देता था। इसके अलावा अपने देश के अल्पसंख्यकों पर हमेशा से इसने क्रूरता की है। खबरों से पता चलता है कि कैसे वहाँ हिंदू, सिख, ईसाई समुदाय के लोगों पर धर्मांतरण की तलवार लटकाई जाती है और लोग अपने बच्चियों को लेकर भारत भागते हैं कि उन्हें पाकिस्तान के कट्टरपंथियों से बचाया जा सके।