कबूतर के ज़रिए पाकिस्तान में हेपेटाइटिस-बी का “ज़हर खींच कर” इलाज करने के वायरल वीडियो ने एक बार फिर आगा वकार की यादें ताज़ा कर दीं हैं- उस ‘डिबेट’ के साथ ही, जिसमें हम यह सोचने की कोशिश करते हैं कि विभाजन के समय अपने मन-मुताबिक सब कुछ पाने के बाद भी पाकिस्तान आज ऐसा दो कौड़ी का देश के नाम पर मीम क्यों है। 2012 में इस पाकिस्तानी ‘अविष्कारक’ ने ‘वॉटर कार किट’ बनाने की घोषणा की थी, जिससे कार बिना जीवाश्म ईंधन (डीजल-पेट्रोल) के केवल पानी के दम पर चलनी की बात कही थी। उस समय पाकिस्तान या उम्मत ही नहीं, पूरी दुनिया में इसके चर्चे हुए थे। लेकिन बुलबुला अंत में बुलबुला ही निकला।
जापान-अली बाबा की कॉपी निकला ‘मॉडल’
आगा वकार ने दावा किया था कि उसने पानी के अणुओं (मॉलिक्यूल्स) को उनके अवयवों हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणुओं (एटम्स) में तोड़ने का आसान तरीका ईजाद कर लिया है और उसी प्रक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा से वह कार दौड़ा सकता है। अभी तक परिदृश्य यह था कि पानी को हाइड्रोजन-ऑक्सीजन में तोड़ने का ‘आसान’ तरीका सारी दुनिया खोज रही थी। ऐसा इसलिए, क्योंकि पानी को हाइड्रोजन-ऑक्सीजन में तोड़ने पर ऊर्जा तो बहुत ज़्यादा निकलती है, लेकिन इससे अधिक ऊर्जा पानी के अणु को तोड़ने में खप जाती है।
आगा वकार ने इस प्रक्रिया को कम ऊर्जा की खपत में पूरी कर लेने का दावा कर तहलका मचा दिया था। चूँकि उस समय अरब क्रांति और आईएस के उभार के चलते मध्य-पूर्व से तेल की सप्लाई पर शंका के बादल थे, इसलिए दुनिया और ज्यादा उत्साहित हो गई। एक टीवी शो में पाकिस्तान के संघीय मंत्री ने उसकी कार की सवारी भी की। पाकिस्तान को चोरी का परमाणु बम दिलाने वाले अब्दुल कादिर खान ने भी ‘जाँच’ कर के आगा वकार को ‘सर्टिफिकेट’ दे दिया “there is no fraud involved,” का।
और इसी तरह आगा वकार का बुलबुला बड़ा होता गया। आगा वकार के चारों ओर पाकिस्तानी मीडिया भी नाचने लगी। स्थापित वैज्ञानिकों ने कई तरह के सवाल उठाए, लेकिन पाकिस्तान में उनकी कौन सुनता।
अंत में हालाँकि यह बुलबुला फ़ुस्स हो ही गया। इस बुलबुले में छेद करने वालों में खुद पाकिस्तान के ट्रिब्यून अख़बार की वेबसाइट पर छपा एक ब्लॉग था, जिसने आगा वकार के मॉडल और डिज़ाइन में इसके पहले जापान में अविष्कृत एक मिलते-जुलते यंत्र और eBay व Ali Baba पर बिक रहीं किटों में बहुत हद तक समानता देखी। फिर न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख में आगा वकार की बखिया उधेड़ने के साथ ही पाकिस्तान में थीसिस में नकलचोरी, डॉक्टरेट डिग्री जारी करने में गड़बड़झाले जैसी कई चीज़ें प्रकाश में आईं, जोकि विज्ञानोन्मुख समाज के लिए धब्बा होतीं हैं।
असली वैज्ञानिक को अँधेरे में धकेला, ‘जिहाद’ बना मूलमंत्र
जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान आज़ाद हुए, तो पाकिस्तान को ऐसा नहीं है विकास और प्रगति के मौके नहीं मिले, या उनसे संसाधन छीन लिए गए। उन्हें सेना मिली, वैज्ञानिक मिले, संस्थान मिले, अंग्रेजी हुकूमत के हिंदुस्तानी खज़ाने का एक हिस्सा मिला। हिंदुस्तान में हालाँकि उद्योग-धंधे तो थे, लेकिन कच्चा माल देने वाली अधिकांश जगहें पाकिस्तान के हिस्से में गईं; कराची मुंबई की बजाय बेहतर स्थिति में था क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रमुखतम बंदरगाह बनने के लिए।
लेकिन पाकिस्तान ने इन सब पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसके दिमाग में केवल दो चीज़ें रहीं- “हँस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान” और इसे पूरा करने के लिए एटम बम हथियाने की दाँव-पेंच, सेना के आगे राजतंत्र ही नहीं आम जनता का भी समर्पण, नागरिक विज्ञान की अनदेखी और महंगी सैन्य तकनीकों (जिनका आम आदमी की ज़िंदगी पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ना था) का आयात।
परमाणु बम की तकनीक ‘नकलचोरी’ करने वाले अब्दुल कादिर खान को सर पर बिठाने वाले पाकिस्तान में असली वैज्ञानिकों की नाकद्री का अब्दुस सलाम से बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। जिसने 1979 आते-आते ‘गॉड पार्टिकल’ के विषय पर न केवल विश्व-विख्यात रिसर्च की, बल्कि उसका लोहा मनवाकर नोबेल भी जीत लिया, उन्हें पाकिस्तान ने कभी भाव नहीं दिया। क्यों? क्योंकि वे उस अहमदी समुदाय के थे, जिन्हें कट्टरपंथी ‘सच्चा’ नहीं मानते।
नतीजा यही है कि 2012 में आगा वकार ने पाकिस्तान में 20 घंटे की बिजली कटौती आम होने का फायदा उठाकर उल्लू बनाया, सेना के चुनिंदा अफ़सर हिंदुस्तान से जिहाद का हवाला देकर मूर्ख बना रहे हैं, और जिहादी कठमुल्ला बना आम आदमी यह जानते हुए भी कि उसका c****या कट रहा है, ख़ुशी-ख़ुशी कटवाए जा रहा है।