अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के साथ ही वहाँ अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की खबरें लगातार आ रही हैं। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान शासन में अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक सिखों का जबरन धर्मान्तरण करवाकर उन्हें इस्लाम कबूल करवाया जा रहा है। इस्लाम नहीं कबूलने पर उनकी हत्या की जा रही है। नतीजतन, वहाँ के सिखों के पास चुनने के लिए दो विकल्प बचे हैं, या तो वे इस्लाम स्वीकार करें या अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग जाएँ।
इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी (IFFRAS) ने बताया है कि चूँकि सिख समुदाय सुन्नी इस्लाम की मुख्यधारा से संबंधित नहीं है, इसलिए उन्हें या तो जबरन सुन्नी इस्लाम में धर्मांतरित कर दिया जाएगा या तालिबान द्वारा मार दिया जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान की ‘सरकार’ विविधता को पनपने के लिए कभी जगह नहीं देगी। कबायली रीति-रिवाजों के साथ इस्लामिक कोड लागू करने से अफगानिस्तान के मौजूदा अल्पसंख्यक समुदाय खत्म हो जाएँगे, जिनमें सिख भी शामिल हैं।
हालाँकि, अफगानिस्तान में तालिबान से पहले या उसके बाद भी सिखों की दयनीय स्थिति ही रही है। अफगानिस्तान सरकार सिखों की रक्षा करने में हमेशा विफल रही है। 1990 के दशक में अधिकांश सिखों के घरों पर शक्तिशाली लड़ाकों ने कब्जा कर लिया था।
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि अफगानिस्तान के काबुल स्थित गुरुद्वारा दशमेश पिता में कट्टरपंथी मुस्लिमों की एक ‘विशेष इकाई’ जबरन घुस गई थी। इंडियन वर्ल्ड फोरम के अध्यक्ष पुनीत सिंह चंडोक ने एक बयान में बताया था कि इस्लामिक कट्टरपंथियों ने गुरुद्वारे को अपवित्र कर दिया है।
चंडोक ने कहा था, “खुद को अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात की स्पेशल यूनिट बताने वाले भारी हथियारों से लैस अधिकारी जबरन काबुल स्थित गुरुद्वारा दशमेश पिता में घुस गए। उन्होंने गुरुद्वारे में सिख समुदाय को धमकाया और स्थान की पवित्रता को नष्ट कर दिया।” गौरतलब है कि अगस्त में तालिबान द्वारा देश पर कब्जा करने के बाद भारत सरकार ने वहाँ से बड़ी संख्या में सिखों बाहर निकाला था।
इसी तरह से पिछले साल अफगानिस्तान के शोर बाजार इलाके में स्थित एक गुरुद्वारे में हथियारबंद आतंकी घुसकर गोलीबारी की थी। इस गोलीबारी में 28 लोग मारे गए थे। उस हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली थी। इसमें आतंकवादी ‘अबू खालिद अल-हिंदी’ का नाम सामने आया था, जिसकी पहचान भारतीय नागरिक के रूप में की गई थी। वह ‘कश्मीर में मुसलमानों की दुर्दशा’ का बदला लेना चाहता था।
IFRAS ने दावा किया कि 2020 में सिखों के नरसंहार के बाद कई सिख अफगानिस्तान छोड़ भारत आ गए। संस्था का यह भी कहना है कि सिख सुन्नी समुदाय की कट्टर विचारधारा के खिलाफ हैं और इस वजह से उन्हें या तो जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है।