Thursday, April 25, 2024
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सिमरन के ट्वीट से स्वास्तिक पर छिड़ी बहस, बताया- यह नाजी निशान नहीं, धर्म और संस्कृति का प्रतीक

ब्रांडीज़ यूनिवर्सिटी की छात्र संघ की अध्यक्ष सिमरन ने लिखा स्वास्तिक की पहचान केवल एक तरह से की जाती है, "नाज़ी और हिटलर।" इसका दूसरा पहलू भी है जो स्वभाव में धार्मिक और पवित्र है। लेकिन पढ़ने वालों के सामने स्वास्तिक का यह पक्ष नहीं रखा जाता है।

दिन की शुरुआत से ट्विटर पर एक ट्रेंड चल रहा है #Swastika। ट्विटर पर मौजूद एक बड़ी आबादी हिटलर के नाज़ी चिह्न और हिन्दू धर्म के स्वास्तिक पर बहस कर रही है।

बहस तब शुरू हुई जब संयुक्त राष्ट्र अमेरिका स्थित ब्रांडीज़ यूनिवर्सिटी की सिमरन तातूस्कर ने दोनों चिह्नों पर बात करने का प्रयास किया। उनके मुताबिक़ दुनिया के लोगों के सामने ऐसी जानकारी दी जा रही है कि दोनों एक जैसे ही हैं, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।

सिमरन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के वॉलथम (Waltham) शहर स्थित ब्रांडीज़ यूनिवर्सिटी की छात्र संघ अध्यक्ष हैं। उन्होंने स्वास्तिक के बारे में जानकारी देते हुए कुछ बातें साझा की।

simran tutuskar

उनके मुताबिक़ स्वास्तिक की पहचान केवल एक तरह से की जाती है, “नाज़ी और हिटलर।” जबकि इसका दूसरा पहलू भी है जो स्वभाव में धार्मिक और पवित्र है। लेकिन पढ़ने वालों के सामने स्वास्तिक का यह पक्ष नहीं रखा जाता है। उन्हें इसके बारे में महज़ इतना बताया जाता है कि इसका इस्तेमाल हिटलर की सेना अपने झंडों पर करती थी। 

ठीक यहीं से मुद्दे पर विवाद शुरू हुआ। स्टॉप एंटीसेमीटीमिज्म नाम के ट्विटर एकाउंट से कुछ ट्वीट किए गए। ट्वीट में कहा गया, “सिमरन स्कूलों के पाठ्क्रम में स्वास्तिक के मायने बदल कर पेश करना चाहती हैं। नहीं, वह यहूदी नहीं है! स्वास्तिक को ऐसा चिह्न साबित करना चाह रही हैं, जिसका मतलब शांति है। वह नफ़रत के इस चिह्न को अमेरिका में सामान्य बनाना चाहती हैं।”  

कितनी हैरानी वाली बात है कि ऐसे दो चिह्न जो भले काफी कुछ एक जैसे नज़र आते हैं, लेकिन उनके मतलब में ज़मीन-आसमान का फर्क है। ऐसे चिह्न के सबसे अहम पहलू का ज़िक्र ही नहीं है। वैसे भी हिटलर ने ‘स्वास्तिक’ को कभी अपना चिह्न नहीं बताया, बल्कि उसके लिए वह Hakencruz (Hooked cross) शब्द का उपयोग करता था। लेकिन पश्चिम के तमाम देशों ने लोगों को भ्रम में रखने के लिए दोनों को एक जैसा बताया। साथ ही स्वास्तिक के विरुद्ध दुष्प्रचार भी किया। 

इसके बाद सिमरन ने बताया कि न्यूयॉर्क सीनेट का बिल “नफ़रत फैलाने वाले चिह्नों” पर बात करती है। इस बिल का मूल उद्देश्य छात्रों को ऐसे चिह्नों के बारे में बताना था जिसका इंसानों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इस कड़ी में हिटलर की नाज़ी सेना के चिह्न का ज़िक्र किया था जो ‘स्वास्तिक’ जैसा नज़र आता है।

उन्होंने आगे कहा कि इस बिल में दोनों चिह्नों के बीच का अंतर नहीं बताया गया है, जबकि दक्षिणी और पूर्वी एशिया में स्वास्तिक की धार्मिक और सांस्कृतिक अहमियत है। हिटलर ने जिस स्वास्तिक की नींव रखी उसका मतलब ही डर और होलोकास्ट था। हिटलर ने इसे नफ़रत का पर्याय बना दिया था, वह भुलाया नहीं जा सकता। दुनिया का कोई भी इंसान यहूदियों का दर्द नहीं समझ सकता है। मेरा आशय किसी की भावनाएँ आहत करना नहीं था।

उन्होंने कहा कि अपनी पोस्ट में दोनों चिह्नों को शामिल करने की वजह उनके बीच का अंतर दिखाना था। साल 2008 में हिन्दू यहूदी लीडरशिप समिट में इस विषय पर विस्तार से चर्चा हुई थी। इसमें इज़रायल के चीफ़ रैबिनेट और हिन्दू धर्म आचार्य सभा शामिल हुए थे। उनके बीच बात हुई थी कि हिन्दू धर्म के लोगों के लिए स्वास्तिक सदियों से पवित्र रहा है। इसलिए मेरा ऐसा मानना है कि हमें दोनों के बारे में पता होना चाहिए। स्वास्तिक के बारे में पढ़ने या पढ़ाने से होलोकास्ट का कोई लेना-देना नहीं है।

स्वास्तिक कई पहलुओं में अहमियत रखता है, घरों से लेकर मंदिरों तक और मंदिरों से लेकर अच्छे काम की शुरुआत तक। हिन्दू धर्म में स्वास्तिक की मौजूदगी हमेशा से अटूट रही है। हिन्दू धर्म ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी स्वास्तिक को बेहद पवित्र माना जाता है। वर्तमान बिल में स्वास्तिक के इस पहलू पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। इसके चलते छात्रों में ऐसा संदेश जाएगा कि स्वास्तिक का मतलब केवल घृणा और डर है। जबकि असलियत में इसके धार्मिक और सांस्कृतिक मायने पूरी तरह अलग हैं। जिसके बारे में छात्रों को पता होना चाहिए।  

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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