पाकिस्तान और कुछ हद तक चीन को छोड़कर किसी भी अन्य देश ने अंतरिम अफगानिस्तान सरकार को लेकर संतोष नहीं जताया है। पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी की आईएसआई के प्रमुख जनरल फैज़ हामिद तो सरकार बनवाने के लिए काबुल में बैठे ही थे, चीन ने भी अफ़ग़ानिस्तान को 3.1 करोड़ डॉलर की फौरी मदद देने की घोषणा की है।
हालाँकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी ब्रिक्स देशों के दिल्ली घोषणापत्र पर दस्तखत किए हैं। भारत की अध्यक्षता में गुरुवार (सितंबर 9, 2021) को हुए ऑनलाइन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की गई। इसमें तालिबान का नाम लिए बगैर ये भी कहा गया कि ये सुनिश्चित करना चाहिए कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल दूसरे देशों में आतंक और उग्रवाद फ़ैलाने के लिए न हो।
अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी ईरान ने तो सबसे कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ईरान के विदेश मंत्रालय ने पंजशीर घाटी में तालिबान द्वारा नॉर्दन अलायंस को कुचलने की कोशिशों में बाहरी ताकतों यानि पाकिस्तान की भूमिका की कड़ी निंदा की है। उसने ये भी कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में चुनाव होने चाहिए ताकि वहाँ एक वास्तविक प्रतिनिधित्व वाली सरकार बने।
मौजूदा तालिबान सरकार में पख्तूनों और तालिबान का वर्चस्व है। अफगानिस्तान के अन्य वर्गों जैसे ताजिक और उज़बेकों की इसमें अनदेखी की गई है। शिया सम्प्रदाय को मानने वाले हज़ाराओं को तो प्रतिनिधित्व तक नहीं मिला है। तालिबान और महिला अधिकारों का साँप-छछूँदर का रिश्ता है सो किसी महिला को मंत्रिमंडल में जगह न मिलना तो तकरीबन तयशुदा ही था।
यूँ भी तालिबान के प्रवक्ता जेकरुल्ला हाशिमी ने कहा है कि औरतों का मंत्रिमंडल में क्या काम? उन्होने कहा कि औरतों का असल काम बच्चे पैदा करना है। गुरुवार को काबुल स्थित टोलो न्यूज़ में प्रसारित इस इंटरव्यू में हाशिमी ने कहा कि औरतों को बस ज़्यादा से ज़्यादा अफगानी बच्चे पैदा करने के काम में लगना चाहिए न कि मंत्रिमंडल पद जैसी जिम्मेदारी लेना चाहिए, जिसे वो निभा नहीं सकतीं।
हाशिमी ने अपने इंटरव्यू में कहा, “पिछले 20 साल के दौरान आपके इस मीडिया, अमेरिका और उसकी कठपुतली सरकार ने जो कहा, जो औरतें दफ्तरों में काम करतीं थीं वो वेश्यावृत्ति नहीं तो और क्या है।”
टोलो न्यूज़ के एंकर ने इस पर उन्हें टोका कि वे सभी अफगानी औरतों को वेश्या कैसे कह सकते हैं। इसका मतलब क्या है? क्या घर से बाहर काम करने वाली सभी औरतें वेश्या होती हैं। तालिबान और भारत में उनके पक्ष में बोलने वालों को इसका उत्तर देना चाहिए। इस साक्षात्कार के हिस्से इस ट्वीट में देखे जा सकते हैं।
A Taliban spokesman on @TOLOnews: "A woman can't be a minister, it is like you put something on her neck that she can't carry. It is not necessary for a woman to be in the cabinet, they should give birth & women protesters can't represent all women in AFG."
— Natiq Malikzada (@natiqmalikzada) September 9, 2021
Video with subtitles👇 pic.twitter.com/CFe4MokOk0
ये सोच निकलती है इस्लाम की घोर कट्टरपंथी व्याख्या से, जो हक्कानी नेटवर्क जैसे कई तालिबानी मानते हैं। नई अफ़ग़ान सरकार में हक्कानी नेटवर्क को ज़रुरत से ज़्यादा जगह मिली है। हक्कानी यानि पाकिस्तान परस्त इस्लामिक कट्टरपंथी गुट जिसे आईएसआई ने लगातार आतंक के लिए पाला पोसा है।
चार हक्कानियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। मालूम हो कि अफ़ग़ानिस्तान के नए गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी हैं। उनके सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम है। इसी तरह मंत्रिमंडल में शामिल उनके चाचा खलीउर्रहमान हक्कानी के तार अल कायदा से जुड़े रहे हैं।
वे भी घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है। मंत्रिमंडल में शामिल दो अन्य हक्कानी हैं- नजीबुल्ला हक्कानी और शेख अब्दुल बकी हक्कानी। नजीबुल्ला संयुक्त राष्ट्र द्वारा तो अब्दुल बकी यूरोपीय संघ द्वारा नामित आतंकी हैं।
अब तक अंतरराष्ट्रीय जनमत के सामने एक नया मुखौटा पहन कर आने वाले तालिबान ने अपने असली तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। आम माफ़ी के घोषणा के बावजूद आत्मसमर्पण करने वाले अफ़ग़ान सेनाकर्मियों को क़त्ल किए जाने की खबरें हैं।
खोर प्रान्त के फ़िरोज़कोह इलाके में एक गर्भवती महिला पुलिसकर्मी को उसके बच्चों के सामने ही बर्बरता के साथ मार डाला गया है। मारने से पहले उसके परिवार के सामने ही उसके चेहरे और शरीर को क्षत-विक्षत किया गया। बताया जाता है कि निगारा नाम की इस पुलिसकर्मी को आठ महीने का गर्भ था।
इस हफ्ते काबुल में होने वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बेरहमी से कुचल दिया गया है। इन प्रदर्शनों को कवर करने गए कई पत्रकारों को गिरफ्तार कर तालिबान ने क्रूर यातनाएँ दी हैं। इत्तिलातेरोज़ नामक स्थानीय अफगानी अखबार के कर्मियों और संपादक को कोड़े मारे गए हैं। खबर है कि रॉयटर के प्रतिनिधि एवं अन्य पत्रकारों की भी कवरेज करने के कारण पिटाई की गई है।
कुल मिला कर अफ़ग़ानिस्तान को एक नई तालिबानी सरकार नहीं मिली, बल्कि 20 साल पहले के तालिबान अपने दुर्दांत रूप में फिर से काबुल में काबिज़ हो गए हैं। तालिबान की इस नई पारी का कोच पाकिस्तान है, जो नहीं चाहता कि अफ़ग़ानिस्तान कट्टरवाद और इस्लामिक धर्मान्धता की अँधेरी खाई से बाहर निकले।
अफ़ग़ानिस्तान में ‘नियंत्रित अस्थिरता’ और कट्टरवाद पाकिस्तान की नीति का हिस्सा है। उसे लगता है कि इससे वह भारत और मध्य एशिया में अपने हितों को साध लेगा। लेकिन इसमें एक ही अड़चन है वो है कि ये इंटरनेट के ज़माने का अफ़ग़ानिस्तान है। काबुल एवं अन्य अफगानी शहरों में हो रहे प्रदर्शन इसका एक नमूना भर है। यूँ भी आतंक, धर्मान्धता और ‘नियंत्रित अस्थिरता’ एक ऐसे शेर की सवारी है जो संतुलन खोने पर सवार को ही खा जाता है।
तालिबान और पाकिस्तान एक ऐसे बबंडर की ओर बढ़ रहे हैं जो उनसे सँभाले नहीं सँभलेगा। तालिबान में हक्कानियों के दबदबे के बाद मध्य एशिया में कट्टरवाद और भारत में इस्लामी आतंकवाद बढ़ने की गंभीर आशंका हैं। इस सबके बीच भारत को सक्रियतापूर्ण धैर्य और सतर्कता की आवश्यकता है। लेकिन असली संकट में अफ़ग़ान जनता है क्योंकि अमेरिका ने उसे तकरीबन तश्तरी में रखकर हैवानों के सामने परोस दिया है।
दुनिया इन आसन्न संकटों से बेखबर नहीं है। इसीलिए ब्रिटेन की गुप्तचर संस्था एमआई 6 के प्रमुख, अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के प्रमुख और रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस हफ्ते नई दिल्ली में थे। रूस और अमरीका इस मामले पर अलग-अलग राय रखने के बावजूद भारत के महत्व को समझते हैं। सब देख चुके हैं कि कट्टरपंथी इस्लाम से प्रेरित आतंकवाद की आग से कोई भी अछूता नहीं रहता।