कश्मीर घाटी में इस्लामी कट्टरपंथी और आतंकवादियों को निर्दोष और मजबूर साबित करने का जो काम इतने वर्षों तक बॉलीवुड की फिल्में किया करती थीं, वही जिम्मेदारी अब वामपंथी मीडिया गिरोहों ने सम्भाल ली है।
इनका पहला कर्तव्य यह साबित करना तो है ही कि कश्मीर घाटी में सुरक्षबलों द्वारा मारे जाने वाले आतंकवादी निर्दोष होते हैं। साथ ही आतंकवादियों के ‘मानवीय’ चेहरे के नैरेटिव को दिशा देने का काम भी वामपंथी मीडिया संगठनों द्वारा किया जा रहा है।
इसका सबसे ताजा उदाहरण कल ही कश्मीर के सोपोर में आतंकवादियों की गोली से मारे गए 65 वर्षीय बशीर अहमद का मामला है। बुधवार (जुलाई 01, 2020) की सुबह सोपोर में आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर CRPF के एक गश्ती दल पर हमला कर दिया गया। इस हमले में दोनों ओर से गोलियाँ चलीं, जिसमें सीआरपीएफ के एक जवान की मौत हो गई और दो घायल हो गए।
सीआरपीएफ के एडीजी जुल्फिकार हसन ने बशीर अहमद को गोली लगने को लेकर कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। उन्होंने कहा – “मुझे लगता है कि कुछ लोगों ने यह कहकर एक स्पिन देने की कोशिश की है कि सीआरपीएफ ने एक नागरिक को वाहन से बाहर निकाला और गोली मार दी। यह पूरी तरह से असत्य है।”
It was an unfortunate incident.I think some people have tried to give it a spin by saying that CRPF took him (a civilian) out of the vehicle & shot him. It’s totally untrue:Zulfiqar Hasan,ADG CRPF on death of a civilian during a terror attack in Sopore yesterday. #JammuAndKashmir pic.twitter.com/jH7Z6j9hIJ
— ANI (@ANI) July 2, 2020
दरअसल, आतंकियों की गोली से 65 वर्षीय बुजुर्ग की भी मौत हुई है। जब यह हादसा हुआ, उस समय 65 वर्षीय बशीर अहमद खान अपने 3 साल के नाती के साथ बाजार जा रहे थे।
गोलियों की आवाज से इलाके में अफरा-तफरी मच गई। मुस्तफाबाद एचएमटी श्रीनगर निवासी ठेकेदार बशीर अहमद खान भी अपने नाती को लेकर कार से बाहर निकले और भागने लगे, लेकिन आतंकियों द्वारा की जा रही फायरिंग की चपेट में आ गए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
बशीर अहमद का लहूलुहान शरीर गोली लगने के बाद वहीं सड़क पर गिर पड़ा और उनका 3 साल का नाती उनके शव के ऊपर बैठा रहा। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर बहुत शेयर की जा रही है।
CRPF के जवानों ने तीन साल के बच्चे को आतंकवादियों की गोलियों से बचाया और सुरक्षित घर ले आए। यहाँ से वामपंथी मीडिया गिरोहों ने अपनी पोजिशन संभाली और इसका नतीजा हम देख रहे हैं कि बशीर अहमद की मौत के लिए CRPF को ही दोषी ठहराने का कारनामा किया जा रहा है।
The first hand account by a local cop in Sopore about the terror crime. He was first to respond the situation after the incident. pic.twitter.com/nIVxrIJmlF
— Imtiyaz Hussain (@hussain_imtiyaz) July 1, 2020
जब वामपंथी मीडिया समेत तमाम उदारवादी विचारकों को इस्लामी आतंकवादियों द्वारा भरे बाजार में नागरिकों की हत्या पर चर्चा कर उसे धिक्कारने का काम करना था, तब मीडिया ने वास्तविक समस्या को नजरअंदाज कर, उसे आवरण देते हुए एक बेहद फर्जी नैरेटिव को उछालना जरूरी समझा।
मीडिया गिरोह प्रमुख ‘द वायर’ का कहना है कि तीन साल के बच्चे ने कहा कि उसने देखा कि पुलिस ने उनके नाना को गोली मारी। यहाँ पर सबसे पहली और बेहद अमानवीय बात तो यही है कि द वायर ने तीन साल के एक बच्चे से यह उम्मीद की है कि वो पुलिस और आतंकवादियों में स्पष्ट रूप से फर्क कर सकता है।
वह भी तब, जब कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब कश्मीर घाटी में आतंकियों को पुलिस की यूनिफॉर्म में ही कई बार पकड़ा जा चुका है। ऐसे में भारतीय सुरक्षाबलों और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बयानों को दरकिनार कर तीन साल के एक बच्चे के बयान को आधार बनाना स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वामपंथी मीडिया का पहला मकसद क्या है।
सत्ता विरोध के लिए वामपंथ ने आतंकवादियों को सुरक्षाकवच देना और षड्यंत्रों के माध्यम से उन्हें क्लीन चिट देने के अपने अभियान को कई समय से जर्नलिज़्म का नाम दिया है। जबकि वास्तविकता सिर्फ यह है कि उन्हें न ही आतंकियों की गोली से मारे गए बशीर अहमद की मौत से फ़र्क़ पड़ता है, न ही शव के ऊपर बैठकर रो रहे तीन साल के बच्चे की विभत्स तस्वीर से फ़र्क़ पड़ता है।
मीडिया और प्रपंचकारियों का सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद है और वो यह कि सत्ता और संस्थाओं को बदनाम कर किसी तरह से प्रासंगिक बना रहा जाए।