वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘कारवाँ’ के साथ मिल कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के बेटे विवेक डोभाल के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश ने कोर्ट में इस मामले में माफ़ी माँग ली है। विवेक डोभाल द्वारा दायर किए गए आपराधिक मानहानि के मुक़दमे की सुनवाई के दौरान कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपना माफीनामा सौंपा। आपत्तिजनक लेख और बयान के खिलाफ विवेक ने मुकदमा दायर किया था।
NSA अजीत डोभाल के बेटे विवेक डोभाल ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश के माफीनामे को स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि का केस वापस लेने का निर्णय लिया है। जयराम रमेश ने अपने माफ़ीनामे में कहा कि उन्होंने क्षणिक आवेश में विवेक डोभाल के खिलाफ बयान दिए और कई आरोप लगाए, क्योंकि उस समय चुनाव का भी माहौल था। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें ये सब कहने से पहले अपने दावों की पुष्टि कर लेनी चाहिए थी। इसके अलावा, जो एक और बात कॉन्ग्रेस नेता ने कही, वो ये कि वो कारवाँ पर प्रकाशित लेख को पढ़ कर भ्रम में पड़ गए थे।
विवेक डोभाल पर आरोप लगाने की यह कहानी सिर्फ कॉन्ग्रेस नेता तक ही सीमित नहीं है। कारवाँ द्वारा लगाए गए इन गंभीर आरोपों को हवा और दिशा देने में एक और व्यक्ति का भी बहुत बड़ा योगदान था। ये नाम है मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और वामपंथी प्रोपेगेंडा पत्रकार रवीश कुमार का।
सत्ता विरोधी प्रपंचों में फर्जी ख़बरें फ़ैलाने के लिए मशहूर NDTV के पत्रकार रवीश कुमार को साल 2019 में ही रमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसी साल यानी 2019 की ही शुरुआत में, रवीश कुमार ने वामपंथी प्रोपेगेंडा मशीनरी- ‘कारवाँ’ और ‘दी वायर’ के कंधे पर बंदूक रखकर NSA अजीत डोभाल के बेटे विवेक पर आरोप लगाते हुए बड़े शब्दों में इसे ‘D-कम्पनी’ लिखा था।
अपने प्राइम टाइम से लेकर फेसबुक पोस्ट में रवीश कुमार ने बिना किसी सबूत के, या शायद अपने व्हाट्सऐप पर आने वाले संदेशों की ‘वाइब्स’ के आधार पर ही NSA अजीत डोभाल और उनके बेटों को सीधा ‘D- कंपनी’ कहते हुए हर तरह की कॉन्सपिरेसी थ्योरी ऊगली थी। रवीश ने लिखा था- “डी-कंपनी का अभी तक दाऊद का गैंग ही होता था। भारत में एक और डी कंपनी आ गई है…”
रवीश कुमार के इन्हीं आरोपों का खंडन ठीक उसी दिन ऑपइंडिया ने एक लेख भी लिखा था। वामपंथी मीडिया के कुकर्मों को बेनकाब करने के उद्देश्य से अस्तित्व में आए ‘ऑपइंडिया’ (हिंदी) को तब महज 5 दिन ही हुए थे। वास्तव में, तब रवीश कुमार ने इस फेक न्यूज़ को कॉन्ग्रेस नेता पी चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम की गिरफ्तारी की खुन्नस में उछाला था और उसका जवाब अब रवीश को भी मिल ही चुका है।
पहला जवाब तो ये कि इसके बाद पी चिदंबरम को जेल जाना पड़ा, जबकि अजीत डोभाल के बेटे ने रवीश और कारवाँ मैगजीन पर मानहानि का केस दायर कर दिया था। अब, ऑपइंडिया द्वारा रवीश के दावों के खंडन किए जाने के लगभग 703 दिन बाद कॉन्ग्रेस नेताओं ने माँग कर स्पष्ट रूप से कहा है कि वह कारवाँ द्वारा फैलाए गए दुष्प्रचार में आ गए थे।
यहाँ पर रवीश कुमार का जिक्र किया जाना इस कारण भी आवश्यक है क्योंकि अक्सर हर फर्जी आरोप को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का जिक्र करते हुए वामपंथी मीडिया मनगढ़ंत आरोप लगाकर सत्ता के खिलाफ नागरिकों को भड़काता आया है। ठीक इसी तरह से इन मीडिया गिरोहों द्वारा अक्सर अम्बानी और अडानी के नाम को भी बदनाम किया जाता रहा है।
यही नहीं, रवीश कुमार और तमाम वामपंथियों के इन प्रपंचों को काटने का जो काम ऑपइंडिया (OpIndia) ने किया था, उसका परिणाम अब सामने आने लगा है। तमाम मनगढ़ंत आरोपों और फर्जी खबरों को इस गर्व और हुनर के साथ कह देने के बाद से रवीश कुमार एक मोहल्ले के चुगलखोर से ज्यादा और कुछ नहीं रह गए हैं। हालाँकि, उन्हें इस बात से कोई फर्क न पड़ता हो, फिर भी रवीश कुमार को अपने व्हाट्सऐप संदेशों पर ज्यादा समय नहीं गुजरना चाहिए, उनका दिमाग कुतर्क की हर सीमा पार कर चुका है।
आप खुद सोचिए, एक आदमी कितने शातिर तरीके से आपको प्रभावित कर सकता है, रवीश कुमार इस बात का उदाहरण है। लेकिन आपने सच्चाई और कुतर्कों में से कुतर्क को चुना है, क्योंकि आपको लगता है कि आप सही बात कहने के लिए उस वर्ग द्वारा नकार दिए जा सकते हैं, जिसके मूल में घृणा और विपरीत विचाधारा के लिए नफरत है। सो हाँकते रहिए… इसी बात के तो पुरस्कार हैं।