उत्तर प्रदेश पुलिस ने बाराबंकी अवैध मस्जिद विध्वंस मामले के संबंध में एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से गलत सूचना का प्रचार करके समाज में दुश्मनी फैलाने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टल- द वायर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
गुरुवार (जून 24, 2021) को, बाराबंकी पुलिस ने कहा कि उन्होंने पोर्टल और द वायर के तीन पत्रकारों – सिराज अली, मोहम्मद अनीस और मुकुल एस चौहान के खिलाफ मामला दर्ज किया है। एक अन्य व्यक्ति की पहचान मोहम्मद नईम के रूप में की गई है, जिसने हाल ही में बाराबंकी में एक अवैध मस्जिद को गिराए जाने पर झूठा प्रचार किया था।
दिलचस्प बात यह है कि इंडियन एक्सप्रेस और द स्क्रॉल ने मोहम्मद अनीस को द वायर का पत्रकार बताया, हालाँकि एफआईआर में उसकी पहचान एक स्थानीय के रूप में हुई है। वीडियो में मोहम्मद अनीस को एक स्थानीय के रूप में दिखाया गया है, जो मस्जिद विध्वंस के बारे में दावा कर रहा है। भारतीय दंड संहिता की धारा 153, 153-ए, 505 (1) (बी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया।
23 जून को द वायर ने वीडियो डॉक्यूमेंट्री में दावा किया था कि जिला प्रशासन ने शहर में 100 साल पुरानी मस्जिद को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया। इसके लिए द वायर ने कुछ मुस्लिमों का साक्षात्कार लिया था, जिन्होंने दावा किया था कि वे मस्जिद की समिति के सदस्य थे। उन्होंने दावा किया था कि सदस्यों के पास इस बात का सबूत था कि संरचना कानूनी थी।
अपने डॉक्यूमेंट्री में, द वायर ने कहा था कि इलाके के मुस्लिमों ने मस्जिद के विध्वंस का विरोध किया था और कहा था कि पुलिस अधिकारियों ने लाठीचार्ज का सहारा लेकर इसे शांत किया था। द वायर ने दावा किया था कि बाराबंकी पुलिस ने विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया और उनके धार्मिक ग्रंथों को नाले में फेंक दिया।
वामपंथी पोर्टल द्वारा लगाए गए ऐसे आरोपों का खंडन करते हुए बाराबंकी पुलिस ने स्पष्ट किया कि द वायर द्वारा किए गए दावे झूठे थे। इसमें आगे कहा गया कि द वायर अपनी वेबसाइट पर अवैध मस्जिद के विध्वंस के बारे में गलत सूचना का प्रचार करके सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहा था।
Online news portal ‘ THE WIRE’ द्वारा रामसनेहीघाट जनपद बाराबंकी के तहसील परिसर से संबंधित निराधार और असत्य तथ्यों पर आधरित वीडियो documentary शेयर करने वालों के विरुद्ध थाना रामसनेहीघाट #barabankipolice द्वारा की गई विधिक कार्यवाही।#UPPolice@Uppolice https://t.co/FWnsxXLdIa pic.twitter.com/2u6nqVg2r8
— Barabanki Police (@Barabankipolice) June 24, 2021
बाराबंकी के जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने गुरुवार रात एक बयान में कहा, “23 जून को, ऑनलाइन समाचार पोर्टल, द वायर ने अपने ट्विटर हैंडल पर रामसनेही घाट तहसील परिसर के बारे में एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री शेयर किया। डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने झूठी और निराधार जानकारी दिखाई है। वीडियो में कई गलत और निराधार बयान शामिल हैं, जिनमें एक यह भी है कि प्रशासन और पुलिस ने धार्मिक ग्रंथों को नाले और नदी में फेंक दिया। यह गलत है। ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस तरह की गलत सूचना के साथ द वायर समाज में वैमनस्य फैलाने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है।”
पुलिस अधीक्षक (बाराबंकी) यमुना प्रसाद ने कहा कि डॉक्यूमेंट्री में मोहम्मद नईम नाम का एक व्यक्ति था, जिसने ‘धार्मिक पुस्तकों को नदी और नाले में फेंकने के झूठे दावे’ किए। मोहम्मद अनीस ने दावा किया था कि उनके कुरान और हदीस को सीवर में फेंक दिया गया था। अधिकारी ने कहा, “एक पुलिस अधिकारी द्वारा शिकायत दर्ज की गई है, जिसके आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। आगे की कार्रवाई चल रही है।”
बाराबंकी मस्जिद विध्वंस
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में प्रशासन द्वारा क्षेत्र में 100 साल पुरानी लेकिन अवैध रूप से निर्मित ‘मस्जिद’ को गिराने के बाद विवाद छिड़ गया था। 17 मई को एसडीएम के निर्देश के बाद अवैध निर्माण को तोड़ा गया।
अधिकारियों ने जिले के राम सनेही घाट क्षेत्र में ‘तहसील’ परिसर के अंदर स्थित एक अवैध आवासीय संरचना की पुष्टि की थी। अधिकारियों के अनुसार, वहाँ रहने वाले लोगों को अपने दावे का समर्थन करने वाले दस्तावेज पेश करने के लिए कहा गया था, लेकिन नोटिस दिए जाने के बाद वे भाग गए।
हालाँकि, स्थानीय मुस्लिम संगठनों और विपक्ष ने यह दावा करना शुरू कर दिया कि ‘मस्जिद’ कानूनी है। यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जिला प्रशासन की कार्रवाई को अवैध बताते हुए इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मुस्लिम संगठनों को झटका देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2 अप्रैल को इस संबंध में दायर याचिका का निस्तारण कर दिया था, जिससे यह साबित हो गया था कि निर्माण अवैध था। यहाँ ध्यान देने योग्य है कि उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में दायर याचिका का निपटारा करने के बाद द वायर ने मामले के बारे में गलत सूचना फैलाई थी।