दशकों पुराने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का ज्यादातर तबकों ने स्वागत किया है। लेकिन, एक वर्ग ऐसा भी है जिन्हें विवादित जमीन रामलला को मिलना खटक रहा है। ऐसा ही हाल कॉन्ग्रेस का भी है। एक तरफ उसके नेता फैसले का स्वागत कर रहे हैं तो दूसरी ओर उसका मुखपत्र नेशनल हेराल्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तुलना पाकिस्तानी कोर्ट के एक बेतुके फरमान से कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन को रामजन्मभूमि बताते हुए पूरी राम मंदिर के निर्माण के लिए देने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि इस जमीन पर सुन्नी वक्फ बोर्ड अपना हक साबित करने में विफल रहा। बावजूद इसके अदालत ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए पॉंच एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश भी केंद्र सरकार को दिया है।
इस फैसले का स्वागत कॉन्ग्रेस ने भी किया। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने फैसला आने के बाद ट्वीट कर कहा, “सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ चुका है। भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस भगवान श्री राम के मंदिर के निर्माण की पक्षधर है।”
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ चुका है।
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) November 9, 2019
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भगवान श्री राम के मंदिर के निर्माण की पक्षधर है।
इस फैसले से भारतीय जनता पार्टी और अन्य लोगों के सत्ता के भोग के लिए देश की आस्था के साथ राजनीति करने के द्वार भी हमेशा के लिए बंद हो गए हैं।#AYODHYAVERDICT pic.twitter.com/mZB9nPW4dI
कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मुद्दे पर अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट के इस फैसले का सम्मान करते हुए हम सब को आपसी सद्भाव बनाए रखना है। ये वक्त हम सभी भारतीयों के बीच बन्धुत्व,विश्वास और प्रेम का है।”
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मुद्दे पर अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट के इस फैसले का सम्मान करते हुए हम सब को आपसी सद्भाव बनाए रखना है। ये वक्त हम सभी भारतीयों के बीच बन्धुत्व,विश्वास और प्रेम का है।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 9, 2019
#AyodhyaVerdict
प्रियंका गाँधी ने इस फैसले पर ट्वीट करते हुए लिखा, “अयोध्या मुद्दे पर भारत की सर्वोच्च अदालत ने फैसला दिया है। सभी पक्षों, समुदायों और नागरिकों को इस फ़ैसले का सम्मान करते हुए हमारी सदियों से चली आ रही मेलजोल की संस्कृति को बनाए रखना चाहिए। हम सबको एक होकर आपसी सौहार्द और भाईचारे को मजबूत करना होगा।”
अयोध्या मुद्दे पर भारत की सर्वोच्च अदालत ने फैसला दिया है। सभी पक्षों, समुदायों और नागरिकों को इस फ़ैसले का सम्मान करते हुए हमारी सदियों से चली आ रही मेलजोल की संस्कृति को बनाए रखना चाहिए। हम सबको एक होकर आपसी सौहार्द और भाईचारे को मजबूत करना होगा।
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) November 9, 2019
लेकिन, मुखपत्र नेशनल हेराल्ड के एक लेख के जरिए इस फैसले की तुलना पाकिस्तानी कोर्ट के आदेश से की गई है। कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने वैसा ही फैसला सुनाया जैसा शुरुआत से भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद चाहती रही है। फैसले से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी तौर पर वही किया है जिसकी मॉंग बीजेपी और विहिप लंबे समय से कर रही थी।
नेशनल हेराल्ड के इस लेख को लिखा है आकार पटेल ने। लेख में अपना एक अनुभव साझा करते हुए पटेल ने लिखा है कि 30 साल पहले जब वो छात्र थे, तो बोकारो में उनके यूनिवर्सिटी में इसी मुद्दे पर बोलने के लिए अरुण शौरी आए थे, जो उस समय भाजपा समर्थक थे। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम कहीं और मस्जिद बनाए, क्योंकि यह स्थान हिन्दू के लिए पवित्र स्थान है। आकार पटेल ने लिखा कि अभी जो हुआ, वह वही बात है, सिवाय इसके कि अब इसे कानूनी कवर मिल गया है।
The #SupremeCourt of India has ruled exactly what #VishwaHinduParishad and #BJP wanted from the beginning, even after accepting that installing idols and demolition of the mosque was unlawful https://t.co/IuKRdczuV0
— National Herald (@NH_India) November 10, 2019
नेशनल हेराल्ड के इस लेख में कहा गया है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के 65 साल पुराने एक आदेश जैसा है। लेख में कहा गया है कि 1948 में जिन्ना की मौत और 1951 में उनके उत्तराधिकारी लियाकत अली खान की हत्या के बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग नेतृत्व विहीन हो गया। ऐसे हालात में गुलाम मोहम्मद गवर्नर जनरल बना। उसने 1954 में पाकिस्तान की संविधान सभा को गैरकानूनी तरीके से भंग कर दिया। इसके खिलाफ अदालत में अपील की गई। गुलाम ने जो किया वह कानून के खिलाफ होने के बावजूद अदालत ने उसके फैसले का बचाव किया। इस फैसले ने गुलाम मोहम्मद को मनमर्जी करने की छूट दे दी।
लेख में कहा गया है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दूरगामी असर होगा। समय के साथ यह देखने को मिलेगा। लेकिन, यह तय है कि इसके नतीजे दिखाई पड़ेंगे ही। हालाँकि लेखक ने ‘उम्मीद’ जताई है कि भारत के लिए यह उतना घातक नहीं हो, जिस तरह वह फैसला पाकिस्तान के लिए साबित हुआ।