कॉन्ग्रेस पार्टी ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स‘ में भारत के रैंक की बातें करते हुए पत्रकारों को न डरने को कह रही है। वही कॉन्ग्रेस, जिसकी सरकार महाराष्ट्र में अर्नब गोस्वामी और ‘रिपब्लिक टीवी’ के पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई है। वही कॉन्ग्रेस, जो आपातकाल अर्थात इमरजेंसी के दौरान ये तय करती थी कि मीडिया में क्या छपेगा। कॉन्ग्रेस ने दावा किया कि भाजपा लोकतंत्र के चौथे खम्भे मीडिया को ध्वस्त करने में जुटी हुई है।
देश का पहला संविधान संशोधन कॉन्ग्रेस ने किया था। जवाहरलाल नेहरू ने प्रेस (ऑब्जेक्शनबल एक्ट), 1951 के माध्यम से मीडिया पर अंकुश लगाया था। इसके अनुसार, अगर किसी अधिकारी को लगे कि कुछ ‘आपत्तिजनक’ प्रकाशित हुआ है तो वो सेशन जज से मीडिया संस्थान के ख़िलाफ़ शिकायत कर सकता है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक लेख के बारे में नेहरू ने कहा था कि उसमें उनकी काफ़ी आलोचना की गई है जो सही नहीं है। उस लेख को लिखने वाले को ही डिसकंटीन्यू कर दिया गया। तब कहाँ गया था ‘प्रेस फ्रीडम’?
143. @INCIndia‘s Nehru allegedly got a TOI column DISCONTINUED as it was too critical of him. (via @rahulroushan) https://t.co/7EotROqsQE pic.twitter.com/Dzxbshj4lc
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) November 6, 2017
कॉन्ग्रेस शायद जून 1975 को भूल गई है, जब उसने आपतकाल लगाया था। इंदिरा गाँधी ने मीडिया से स्पष्ट कहा था कि उसे कुछ सरकारी दिशानिर्देशों का अनुसरण करना होगा। अर्थात, प्रेस को बाँध दिया गया था। संविधान का हनन हो रहा था और अख़बारों पर सेंसरशिप लाद दी गई थी। ‘द गार्डियन’ और ‘द इकनॉमिस्ट्स’ के कॉरेस्पॉन्डेंट तो धमकी मिलने के बाद यूके भाग खड़े हुए। खबरों को सेंसर करने के लिए ‘चीफ प्रेस एडवाइजर’ का पद बनाया गया।
मीडिया को कहा गया कि अगर कुछ भी छापना है तो इसके लिए ‘चीफ प्रेस एडवाइजर’ से अनुमति लेनी होगी। मई 1976 में तो हद ही हो गई, जब 7000 से भी अधिक मीडियाकर्मियों को जेल में ठूँस दिया गया। उनका अपराध इतना ही था कि वो अपना काम कर रहे थे। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नायर को गिरफ़्तार कर लिया गया था। लालकृष्ण आडवाणी ने जेल से निकलने के बाद मीडिया से ये ऐतिहासिक वाक्य कहा था- ‘आपको तो सिर्फ़ झुकने को कहा गया था, आप सब तो रेंगने लगे।‘
हालिया, अर्नब गोस्वामी प्रकरण से क्या जाहिर होता है? पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा पुलिस के सामने नृशंस हत्या कर दी गई और कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से सवाल पूछने के कारण पत्रकार अर्नब गोस्वामी को थाने बुला कर उनके साथ 12 घंटे तक पूछताछ की गई। उन पर और उनकी पत्नी पर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने हमले किए सो अलग। देश भर में एफआईआर की झड़ी लगा दी गई। पत्रकारों को असली डर तो कॉन्ग्रेस से ही है।
यहाँ तक कि ‘रिपब्लिक टीवी’ के अन्य पत्रकारों को भी परेशान किया जा रहा है। ख़ुद पर हुए अटैक के बाद अर्नब ने एक पत्र में लिखा था कि कॉन्ग्रेस की इस हमले में भागीदारी है, जिसे पुलिस नज़रअंदाज़ कर रही है। अर्नब ने कहा था कि एफआईआर फॉर्म में सिर्फ़ पकड़े गए यूथ कॉन्ग्रेस के दोनों कार्यकर्ताओं का नाम है, जबकि उनके साथ इस साज़िश में शामिल अन्य लोगों के नाम नहीं हैं। महाराष्ट्र की मशीनरी किसके इशारे पर ये सब कर रही है? अगर कॉन्ग्रेस पाक-साफ़ है तो उसने विरोध क्यों नहीं किया?
India slipped two places in World Press Freedom Index to 142. As we commemorate #WorldPressFreedomDay, we must remember that the BJP is hell bent on destroying this fourth pillar of democracy and we shouldn’t let that happen.
— Congress (@INCIndia) May 3, 2020
To all the journalists we would say, Daro Mat. pic.twitter.com/JThPf1gTUI
पश्चिम बंगाल में पत्रकारों पर हमला कर के उन्हें मारा-पीटा जाता है, कॉन्ग्रेस चुप रहती है। कर्नाटक में कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री रहते उनके ख़िलाफ़ लिखने वाले सम्पादकों पर कार्रवाई की जाती है लेकिन कॉन्ग्रेस साथ में सत्ता की मलाई चाभते रहती है। उस सरकार पर फोन टैपिंग के आरोप लगते हैं लेकिन कॉन्ग्रेस भी इसमें भागीदार होने के कारण चुप रहती है। कुमारस्वामी ने तो बेटे को भाव न दिए जाने पर मीडिया के बहिष्कार की ही चेतावनी दे डाली थी।
अगर ‘प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ की ही बात की जाए तो इसका रैंक गिराने में कॉन्ग्रेस का सबसे ज्यादा योगदान है। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में थी, तब 2003 में भारत का 120वाँ रैंक था। अगले 10 वर्षों तक सोनिया गाँधी ने पर्दे के पीछे से सरकार चलाई और जब उसका शासन ख़त्म हुआ तो भारत फिसल कर 140वें स्थान पर आ गया। अगर आज रैंक 142 है तो इतना हंगामा क्यों?
In 2003 when BJP was in power, India was ranked 120 in World press freedom Index. By the end of 10 years of Congress Rule, India dropped to 140. #WorldPressFreedomDay
— O m k a r (@omkar_gs) May 3, 2020
Image: 2003 vs 2013 https://t.co/Hki6KXIL9O pic.twitter.com/Ui9DCxT02R
कॉन्ग्रेस जहाँ सत्ता में हो, वहाँ प्रेस फ्रीडम का मुद्दा ही गायब कर दिया जाता है। जहाँ पार्टी विपक्ष में हो, वहाँ उसे पत्रकारों का दर्द नज़र आने लगता है। कॉन्ग्रेस महाराष्ट्र में अर्नब गोस्वामी के ख़िलाफ़ ‘विच हंट’ पर जाती है लेकिन भाजपा पर बिना किसी घटना का जिक्र किए पत्रकारों को डराने का आरोप लगा देती है।