सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक को लेकर इन दिनों विवाद बहुत गर्माया हुआ है। ऐसे में आज ऑपइंडिया इस प्लेटफॉर्म पर रहते हुए अपने अनुभवों को आपके साथ साझा करने जा रहा है।
संसदीय समिति के समक्ष फेसबुक इंडिया प्रमुख का हाजिर होना और कानून मंत्री का उदाहरण देते हुए फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग को पत्र लिखना… यह पिछले 2-3 दिनों में हुआ है। सवाल उठे हैं कि फेसबुक दक्षिणपंथी विचारधारा के पेज व अकॉउंट्स को ब्लॉक करता है। जाहिर है लेफ्ट इकोसिस्टम के ख़िलाफ और लीक से अलग चलने पर हमारे भी अनुभव फेसबुक पर बहुत अच्छे नहीं रहे।
हमने जब ऑपइंडिया हिंदी शुरू किया, तो यह पोर्टल लोगों की नजरों में आता गया। इस दौरान वामपंथियों ने कई बार हमें बेवजगह टारगेट करने का प्रयास भी किया गया। पर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रहते हुए हमें असल प्रताड़ना का सामना तब करना पड़ा, जब फेसबुक ने अप्रत्यक्ष रूप से हमें रोकने के लिए हमला बोला।
कई बार हमारे फेसबुक पेज की रीच को सामान्य रीच से घटाकर 10% तक कर दिया गया। हमें उस कंटेंट पर निशाना बनाया गया, जो पहले से हर मीडिया पोर्टल कवर कर रहे थे। इसके बाद यह सिलसिला हमारे साथ चलता रहा।
जब हम मेल के जरिए अपने सवालों का जवाब माँगते, तो हमें 40 से 50 दिनों में रिप्लाई आता। कई बार हमारे फेसबुक पेज की रीच को कम करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे आजमाए गए। हमारे पेज से इंस्टैंट आर्टिकल की सर्विस बंद कर दी गई। नतीजतन हमें इसका असर सीधा अपने ट्रैफिक पर देखने को मिला।
आगे बढ़ने से पहले बता दें, इंस्टैंट आर्टिकल की सुविधा किसी भी डिजिटल मीडिया पोर्टल की सबसे बड़ी माँग है। इसी सुविधा के चलते पाठक बिना समय गँवाए वेबसाइट्स के आर्टिकल्स को बिना किसी दिक्कत के पढ़ पाते हैं और इस दौरान साइट को भी खासा ट्रैफिक मिलता है।
कुल मिलाकर इंस्टैंट आर्टिकल से पाठक और डिजिटल मीडिया दोनों को सुविधा होती है। बावजूद इस सच्चाई के, ऑपइंडिया के साथ कई बार ऐसा हुआ कि अलग-अलग कारण देकर हमें पाठकों तक आसानी से पहुँचने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
13 जुलाई, 2020 तक ऑपइंडिया के पेज की रीच 20 लाख प्रतिदिन पहुँच चुकी थी। इसके बाद हमने देखा कि अचानक हमारा ट्रैफिक एक बार फिर गिरना शुरू हुआ। 20 लाख से ये ट्रैफिक गिर कर 1,71,000 प्रति दिन पर सीमित हो गया। हम जान चुके थे कि फेसबुक ने हमारे पोस्टों पर लिमिट लगा दी है।
हमने फिर फेसबुक से बात करने की कोशिश की, जिसके बाद उन्होंने हमें हमारी पेज क्वालिटी चेक करने को बोल दिया। पेज क्वालिटी वाले टैब पर सीधा लिखा हुआ था कि ‘यह पेज अनपब्लिश होने के कगार पर है’। किसी भी पेज को ‘अनपब्लिश’ (यानी फेसबुक से हटा लेना) तब किया जाता है जब उसकी गुणवत्ता वाले टैब पर ‘कम से कम तीन स्ट्राइक लगते हैं। स्ट्राइक से मतलब है कि हमने फेसबुक की नीतियों का उल्लंघन किया है।
तीन बार तो छोड़िए, ऑपइंडिया ने एक भी बार, सही तरीके से ऐसा कोई उल्लंघन नहीं किया है। एक स्ट्राइक जो हमारे पेज पर लगी, वो भी उस खबर पर है जो टाइम्स ऑफ इंडिया की एक पत्रकार ने ट्वीट की थी, और हमने उस ट्वीट के बारे में लिखा था। इस पर एक ‘संदिग्ध’ फैक्ट चेकर साइट ने उसे ‘फेक न्यूज’ कहा, जो कि विचित्र बात थी। खैर, उसे भी अगर एक स्ट्राइक मान लिया जाए तो भी हमारा पेज ‘अनपब्लिश’ होने की कगार पर कैसे हो गया? औक उस कारण पेज की रीच बीस लाख से सीधे दो लाख तक ला दी गई!
खैर! हमारे लिए हैरानी की बात यह थी कि हमने जब फेसबुक पर कम्युनिटी गाइडलाइन्स के विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित नहीं किया तो यह सब कैसे हुआ? अब यह मामला लगभग डेढ़ महीने से पुराना हो चुका है, लेकिन फेसबुक को लिखे गए मेल में सिवाय इसके कि ‘कोई अपडेट मिलते ही हम सूचित करेंगे, हमें कोई ढंग की सूचना नहीं मिली है, न ही रीच में बहुत ज्यादा सुधार हुआ है।
इस संबंध में हमने पहला मेल फेसबुक को 29 जुलाई को भेजा था। मगर, तब से अब तक हमें किसी संतोषजनक रिप्लाई की जगह यह जवाब मिला है – ‘we are looking in to it’ – सोचिए! तब से अब तक हमारी वेबसाइट के ट्रैफिक पर कितना असर पड़ा होगा। इससे पहले 25 सितंबर 2019 को हमारे पेज को कम्युनिटी गाइडलाइन के विरुद्ध जाने पर सीमित किया गया था।
28 नवंबर 2019 को हमने फेसबुक से अपने कुछ पोस्टों के बारे में जानकारी माँगी थी। ऐसे पोस्टों के बारे में, जिनके कारण फेसबुक की नीतियों का हनन हुआ था।
22 मेल भेजने के बाद (जी हाँ, 22 मेल), जिनमें से ज्यादातर केवल यह याद दिलाने के लिए थे कि वह हमारे मेल पर संज्ञान नहीं ले रहे, उन्होंने दिसबंर 2019 के कुछ पोस्ट हमें भेजे और कहा कि हमारे पेज ने इमेज पॉलिसी को फॉलो नहीं किया है।
है न हैरानी की बात? दिसंबर 2019 के पोस्ट दिखाकर हमें यह बताया गया कि हमारे पेज से नवंबर 2019 में इंस्टैंट आर्टिकल की सुविधा क्यों बंद कर दी गई थी।
खैर! यह सब पहली बार नहीं हुआ था। हर बार फेसबुक से जवाब में हमें ऐसे ही बेवकूफाना रिप्लाई मिल चुके थे। हम यही देख रहे थे कि वही तस्वीर, वही स्टोरी अन्य मीडिया पोर्टल धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं और उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
मसलन, 22 सितंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक दलित नाबालिग का गैंगरेप हुआ। हमने उस नाबालिग की तस्वीर को ब्लर करके इस्तेमाल किया और हेडलाइन में सिर्फ़ आरोपितों का नाम दे दिया। इस खबर को फेसबुक ने हमें बिना कोई कारण बताए पेज से ही हटा दिया।
इस संबंध में हमने जब जवाब माँगा तो तस्वीर का हवाला दिया गया। इसके अलावा यह भी कहा गया कि AI इस बात को निर्धारित करती है कि क्या चीज फेसबुक गाइडलाइन के विरुद्ध है। खास बात यह है कि वही खबर उसी फोटो के साथ दूसरी वेबसाइट पर मौजूद रही। अगर बात एल्गोरिदम की होती, तो कार्रवाई उस वेबसाइट पर भी होनी चाहिए थी!
इन उदाहरणों का मतलब तो यही हुआ कि ऑपइंडिया फेसबुक में बैठे कर्मचारियों द्वारा निशाना बन रहा था न कि AI का। हमें कई बार कई खबरों पर चुनिंदा शब्दों के इस्तेमाल करने से रोका गया और अप्रत्यक्ष ढंग से थोड़ा ‘हल्का’ रहने को बोला गया।
वहीं दूसरी ओर, कई ऐसे मामले भी देखे गए जब ‘जय श्रीराम’-‘जय आंजनेय’ या फिर ‘सूअर’ बोलने के कारण लोगों को फेसबुक ने ब्लॉक ही कर दिया। ऑपइंडिया ने उन दिनों इस समस्या पर एक रिपोर्ट भी की थी। इसमें उन लोगों के पोस्ट थे, जिन्हें फेसबुक ने खुद ही हाइड कर दिया था।
फेसबुक के साथ सबसे ज्यादा दिक्कत यह नहीं है कि वह निष्पक्ष होकर इस प्लेटफॉर्म को हैंडल नहीं करते, बड़ी दिक्कत यह है कि यदि कोई उनसे अपनी गलती जान कर सुधारने की कोशिश करता है तो वह उसे पूरे महीने-दो महीने तक जवाब नहीं देते। यह समय इतना अधिक होता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मौजूद पेज को मात्र एक हफ्ते में कई लाखों का नुकसान हो जाता है।
फेसबुक में मेलबाजी की प्रक्रिया बस हाथी के दाँतों जैसी है। वहाँ कुछ समाधान नहीं मिलता। वहाँ आपको मेल का दवाब न दे कर थका दिया जाएगा और आपके साइट को लगातार आठ सप्ताह तक नुकसान उठाना पड़ता है। फिर बिना किसी जवाब के चीजें ठीक होने लगती हैं। इसका मतलब बस यह है कि फेसबुक आपको परोक्ष रूप से धमकी देता है कि हमारे हिसाब से हेडलाइन लिखो, पोस्ट करो वरना हम तुम्हारी रीच तो कम करेंगे ही, मेल का जवाब भी नहीं देंगे। छोटे पोर्टल इससे डर जाते हैं, वो खास समुदाय से जुड़ी खबरें करना बंद कर देते हैं, अपने कर्मचारियों के लिए निर्देश जारी करते हैं कि वो किन-किन शब्दों को प्रयोग न करें।
आज भी फेसबुक का इस्तेमाल करते हुए हमें दिक्कत वही है। ऑपइंडिया ने कुछ गलत नहीं किया और फेसबुक भी यह मान चुका है। फिर भी 13 जुलाई 2020 के बाद से हमारे ट्रैफिक पर हर हफ्ते लाखों का नुकसान होता है। हमें अब तक यह नहीं बताया गया कि आखिर परेशानी का समाधान कब होगा।