IndiaSpend का FactChecker.in ने, जो अपने प्रोपेगंडा के लिए तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ के लिए बदनाम था, आख़िरकार अपने प्रोपेगंडा के सबसे बड़े ‘प्रतिष्ठान’ ‘Hate Crime Watch’ को बंद करने का फैसला कर लिया है। इसकी घोषणा FactChecker.in ने ट्विटर पर की, जहाँ उन्होंने खुद यह माना कि उनकी क्राइम रिपोर्टिंग में गंभीर खामी थी।
#HateCrimeWatch is moving to a new home. With this, we effectively and immediately end our association with this crucial tool. The https://t.co/SnfoppmgHJ team had identified a gnawing gap in crime reporting and basis this lacunae we conceptualised #HateCrimeWatch.
— FactChecker.in (@FactCheckIndia) September 11, 2019
हालाँकि ‘रस्सी जल जाए…’ वाली कहावत की तर्ज पर उन्होंने ‘एक नए घर’ जाने की बात की है, लेकिन चूँकि साथ में Hate Crime Watch की प्रासंगिकता खत्म हो जाने (क्योंकि स्वराज्य और ऑपइंडिया ने उसका हिन्दूफ़ोबिया और हिन्दू-विरोधी रवैया उजागर कर दिया था) की बात मानी है, अतः इसे Hate Crime Watch और FactChecker.in का अलविदा ही माना जा रहा है।
इतिहास: हिन्दूफ़ोबिया और समुदाय विशेष के अपराधों को ढँकना
IndiaSpend ने FactChecker.in की जब से शुरुआत की थी, तभी से हिन्दू-विरोधी प्रोपेगंडा के सबसे मुखर स्वरों में इसकी गिनती होने लगी थी (और इसी कारण छद्म-लिबरल-गैंग ने इन्हें हाथों-हाथ लिया)। जिस भी अपराध में आरोपित हिन्दू हो और पीड़ित गैर-हिन्दू, वह अपने-आप ‘Hate Crime’ हो जाता था (मसलन तबरेज़ अंसारी का मामला, जिसमें हत्या तो हुई थी, लेकिन अब तक सामने आए तथ्यों के अनुसार उसकी हत्या कथित चोरी के अपराध के चलते हुई थी, न कि मजहब विशेष से होने, या ‘जय श्री राम’ बोलने से मना करने के कारण)। इसी के उलट, जब ‘शांतिप्रिय’ हिन्दुओं को उनकी आस्था के चलते ही निशाना बनाते थे, तो ऐसे मामले को न केवल FactChecker.in के ‘Hate Crime Database’ में जगह नहीं मिलती थी, बल्कि मामले की सक्रिय लीपापोती की कोशिश होती थी। इसका ताज़ातरीन उदाहरण बेगूसराय में महादलित परिवार के साथ कथित बलात्कार की कोशिश का मामला है, जिसमें FactChecker.in के पत्रकार को पीड़ित परिवार पर उनके आरोप में से आरोपितों पर मज़हबी कारण से हमला करने की बात हटाने का दबाव डालते हुए सुना गया।
इसके अलावा पुलवामा हमला, जिसका हमलावर आदिल डार बाकायदा हिन्दुओं को आस्था के आधार पर गाली देता और इसे हमले का कारण करार देता अपना वीडियो पीछे छोड़ कर जिहादी हमला करता है, भी FactChecker.in के ‘Hate Crime Database’ में जगह नहीं पाया था। इसके पीछे कुतर्क यह दिया गया कि नहीं, उसने हमला ‘एंडियन्स’ पर किया था, “गौ-मूत्र पीने वाले काफ़िरों” पर नहीं।
स्वाति गोयल के हज़ार प्रहारों के आगे टेके घुटने
हालाँकि FactChecker.in के ‘Hate Crime Database’ को गालियाँ हर ओर से ही पड़ रहीं थीं, लेकिन उसे बेनकाब करने में जिस एक पत्रकार का नाम सबसे प्रमुख है, वह हैं स्वराज्य पत्रिका की स्वाति गोयल शर्मा। उन्होंने लगातार, महीनों तक FactChecker.in के दोहरेपन को लगातार ट्विटर पर, और अपनी पत्रिका में उजागर किया। हर बार, बार-बार किया, और सतत दबाव से उसे बैकफ़ुट पर धकेलना चालू रखा। उनकी ट्विटर टाइमलाइन इसकी नज़ीर है।
इसके अलावा ऑपइंडिया ने पिछले ही साल FactChecker.in के हितों के टकराव के बारे में खबर प्रकाशित की थी। रिपोर्ट के अनुसार FactChecker.in को फंडिंग देने वालों में प्रवीण चक्रवर्ती भी थे, जोकि इस साल हुए लोकसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस के डाटा एनालिटिक्स विभाग के प्रमुख थे। यानी FactChecker.in भाजपा और हिंदूवादियों-राष्ट्रवादियों के खिलाफ नकारात्मक खबरें चलाने के लिए सीधे-सीधे उनकी वैचारिक-राजनीतिक विरोधी कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता से पैसा ले रहा था!