रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (रिपोर्टर्स सेंस फ्रंटियर्स या RSF) ने 3 दिसंबर 2024 को अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में प्रेस फ्रीडम अवॉर्ड्स का 32वाँ संस्करण आयोजित किया। इस दौरान खुद को पत्रकार कहने वाले प्रोपेगैंडिस्ट यूट्यूबर रवीश कुमार को ‘इंडिपेनडेंस प्राइज’ दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि RSF फोर्ड फाउंडेशन और पश्चिमी सरकारों द्वारा फंडेड भारत एवं मोदी विरोधी संगठन है।
रवीश कुमार को भारतीय मीडिया में राजनीतिक दबाव के प्रतिरोध का प्रतीक बताया गया है। RSF ने उन्हें देश में पत्रकारिता का सच्चा नायक कहा। RSF ने दावा किया कि अडानी समूह द्वारा मीडिया हाउस का अधिग्रहण करने के बाद रवीश कुमार को ‘NDTV से बेरहमी से बाहर निकाल दिया गया’। हालाँकि, यह एक झूठा आरोप है। दरअसल, रवीश ने चैनल से इस्तीफा दे दिया था।
"This is a difficult time for journalists all over the world. Many are knowingly risking their lives everyday. It is only a very firm belief in the value of our independence that has enabled journalists like us to continue our work."
— RSF (@RSF_inter) December 4, 2024
-Ravish Kumar pic.twitter.com/SoTIEtzbuj
हालाँकि, RSF ने किसी कारण से अडानी समूह का नाम नहीं लिया, बल्कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी एक व्यवसायी’ कहकर उनकी तरफ संकेत किया। RSF हाल ही में तथाकथित फैक्ट-चेकर एवं ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के समर्थन में सामने आया था। उस समय मोहम्मद जुबैर के खिलाफ यूपी पुलिस ने भारत की संप्रभुता और एकता को खतरे में डालने के आरोप में मामला दर्ज किया था।
#India: The co-founder of @AltNews, @zoo_bear, is being prosecuted for "endangering the sovereignty and unity" of India after he posted on X about complaints against @narsinhanand. RSF condemns this legal harassment & calls for the charges to be dropped https://t.co/pRMImHu3JQ pic.twitter.com/PHU62TEYbt
— RSF (@RSF_inter) November 29, 2024
Ford Foundation और पश्चिमी सरकारों द्वारा फंडेड है RSF
जो नहीं जानते, उन्हें बता दें कि RSF को Ford Foundation सहित पश्चिमी सरकारों और निजी संस्थाओं द्वारा भारी मात्रा में फंड दिया जाता है। इसके 2023 के फिनांशियल स्टेटमेंट के अनुसार, SRF को फंड देने वालों में यूरोपीय आयोग MFA, AIDS, Front Line, Oak Foundation, NHRF TAPIEI, MOF Danida Taiwan, Ford Foundation, OSF Core Support प्रमुख हैं।
SRF के वित्तीय विवरण से पता चलता है कि यूरोपीय आयोग MFA ने साल 2023 में SRF को 1,760,915 यूरो (लगभग 15.75 करोड़ रुपए) दिए हैं। अमेरिकी सरकार द्वरा फंडेंड एक संगठन NED ने इस अवधि में RSF को 333,283 यूरो (लगभग 3 करोड़ रुपए) दिए हैं। वहीं, Ford Foundation ने साल 2023 में RSF को 384,008 यूरो (3.43 करोड़ रुपए) दिए हैं।
SRF के अन्य महत्वपूर्ण सहयोगियों में से एक नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी (NED) है। इसे अमेरिकी सरकार से फंड मिलता है। NED की वेबसाइट के अनुसार, “अमेरिकी कॉन्ग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर फंडेड NED विदेशों में उन समूहों को समर्थन देता है, जो गुमनाम रहकर स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के काम करने वाले लोकतंत्रवादियों को एकजुट रखने का काम करता है।”
इसमें आगे कहा गया है, “रिपब्लिकन और डेमोक्रेट द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित NED का संचालन दोनों दलों के बीच संतुलित बोर्ड द्वारा किया जाता है और इसे राजनीतिक स्पेक्ट्रम में कॉन्ग्रेस का समर्थन प्राप्त है। NED उच्च स्तर की पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ काम करता है, जो हमारे संस्थापकों के इस विश्वास को दर्शाता है कि विदेशों में लोकतंत्र को बढ़ावा देना खुले तौर पर किया जाना चाहिए।”
SRF को फोर्ड फाउंडेशन भी सहयोग करता है। फोर्ड फाउंडेशन का भारत में असामाजिक तत्वों को फंडिंग करने का इतिहास रहा है। द ग्रेज़ोन की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की आलोचना कई वर्षों से अमेरिका और यूरोप द्वारा शासन परिवर्तन के लिए लक्षित सरकारों के प्रति अपने पूर्वाग्रह के लिए की जाती रही है। SRF ने वेनेजुएला के लिए विशेष पूर्वाग्रह दिखाया है।”
ग्रेजोन की रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “वहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित समाजवादी सरकार के खिलाफ कई हिंसक तख्तापलट के प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले कुलीनतंत्र के स्वामित्व वाले दक्षिणपंथी मीडिया आउटलेट और अमेरिका द्वारा वित्त पोषित विपक्षी समूहों को कथित निरंकुश शासन के असहाय पीड़ितों के रूप में चित्रित किया है।”
SRF द्वारा दी गई भारत की प्रेस स्वतंत्रता रेटिंग संदिग्ध
मई 2023 में RSF ने अपनी वार्षिक प्रेस स्वतंत्रता रिपोर्ट जारी की, जिसमें उसने भारत को 180 देशों में से 161वें स्थान पर रखा। RSF के अनुसार, 2022 से भारत 11 पायदान नीचे खिसक गया है। दिलचस्प बात यह है कि RSF के अनुसार, पाकिस्तान के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में सुधार हुआ है। 2022 में 157वें स्थान से पाकिस्तान ने सूची में 150वां स्थान प्राप्त किया है।
RSF की रेटिंग में यही बात तालिबान शासित अफ़गानिस्तान पर भी लागू होती है, जिसकी रैंकिंग 156 से सुधर कर 152 हो गई है। RSF ने अपनी रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा विज्ञापनों पर खर्च किए जाने वाले पैसे को लेकर दावा किया है। RSF ने दावा किया है कि केंद्र सरकार प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया में विज्ञापनों पर सालाना 130 बिलियन रुपए (13,000 करोड़ रुपये) खर्च कर रही है।
ऑपइंडिया ने आरटीआई दायर कर केंद्र सरकार द्वारा प्रिंट, आउटडोर विज्ञापन, सोशल मीडिया, रेडियो और टेलीविजन समेत अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर किए गए विज्ञापन खर्च की जानकारी माँगी थी। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से भेजे गए जवाब के अनुसार, वास्तविक आँकड़े आरएसएफ द्वारा किए गए दावों से कहीं भी मेल नहीं खाते हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अनुसार, केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 में टेलीविजन विज्ञापनों पर 26.44 करोड़ रुपए और सोशल मीडिया विज्ञापनों पर 1.33 करोड़ रुपए खर्च किए। बता दें कि साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से विज्ञापन खर्च में काफी कमी आई है। सरकार ने टेलीविजन विज्ञापनों पर सबसे अधिक 280.77 करोड़ रुपए वित्त वर्ष 2016-17 में खर्च किए थे।
भारत पर अपनी रिपोर्ट के दौरान RSF ने कई ऐसे दावे किए जो वास्तविकता के करीब नहीं थे। RSF ने दावा किया कि मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह के पास 70 से अधिक मीडिया आउटलेट हैं। यह दावा सही नहीं है, क्योंकि यह मुकेश अंबानी के 2019 के एक बयान पर आधारित है जहाँ उन्होंने कहा था कि रिलायंस के पास 72 टेलीविज़न चैनल हैं, जिनमें सभी प्रकार के चैनल शामिल हैं, न कि केवल समाचार चैनल।
इनमें News18 ब्रांडेड टीवी समाचार प्लेटफ़ॉर्म जैसे CNN Worldwide, CNN-News18, CNBC-TV18, CNN-IBN, CNBC आवाज़ आदि शामिल हैं। समाचार चैनलों के अलावा, इसमें Viacom18 Media के तहत एक मनोरंजन पोर्टफोलियो भी शामिल है, जो 50 चैनलों की मूल कंपनी है। ये सभी मनोरंजन चैनल हैं। रिलायंस का Jio प्लेटफ़ॉर्म भी अपने ग्राहकों के लिए समाचार का एक स्रोत है, लेकिन यह चैनलों या मीडिया आउटलेट के मालिक के बजाय एक एग्रीगेटर है।
RSF ने अलग-अलग वर्षों के डेटा का इस्तेमाल करके दावा किया कि कोविड-19 से संबंधित मीडियाकर्मियों की एक-तिहाई मौतें भारत में हुईं। आरएसएफ ने जून 2021 की ढाका ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट को लिंक किया, जिसमें कहा गया था कि दुनिया भर में 1,500 मीडियाकर्मियों की कोविड से मौत हुई। ढाका ट्रिब्यून ने प्रेस एम्बलम कैंपेन के डेटा का इस्तेमाल किया था।
इसके बाद उसने नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया द्वारा बनाए गए एक दस्तावेज को लिंक किया, जिसमें कहा गया था कि भारत में 500 से अधिक मीडियाकर्मियों की कोविड से मौत हुई। उस दस्तावेज पर अब यह संख्या 626 है। इन दो डेटा बिंदुओं का उपयोग करते हुए आरएसएफ ने 2021 में दावा किया कि कोविड-19 से मीडियाकर्मियों की 1/3 (33 प्रतिशत) मौतें भारत में हुईं।
इस रिपोर्ट का उपयोग करते हुए RSF ने कहा, “कोविड-19 का मुकाबला करने की आड़ में सरकार और उसके समर्थकों ने मीडिया आउटलेट्स के खिलाफ मुकदमों का गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया, जिनकी महामारी की कवरेज आधिकारिक बयानों के विपरीत थी।” हालाँकि, जब हमने जाँच की तो पाया कि पीईसी ने मार्च 2022 तक नोट किया कि कोविड-19 से 1,994 मीडियाकर्मियों की मृत्यु हुई और उनमें से 284 भारत के थे।
RSF ने दावा किया था कि भारत सरकार ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले मीडियाकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने उस समय का भी जिक्र किया जब हिंसा के बारे में फर्जी खबरें साझा करने के लिए मीडियाकर्मियों के ट्विटर हैंडल को निलंबित कर दिया गया था।
RSF ने द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ एक प्रदर्शनकारी की मौत की रिपोर्टिंग के लिए मामला दर्ज किए जाने का भी जिक्र किया। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुलिस और मृतक का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की ओर से बार-बार स्पष्टीकरण दिए जाने के बाद भी वरदराजन ने प्रदर्शनकारी की मौत के बारे में फर्जी खबरें साझा करना जारी रखा था।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि द वायर को टेक फॉग और मेटा से संबंधित कई रिपोर्ट हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि वो सभी खबरें झूठे सबूतों पर आधारित थीं। आरएसएफ की यह रिपोर्ट साल 2021 में प्रकाशित हुई थी और साल 2023 की रैंकिंग में शामिल हुई थी। उन्होंने तथाकथित पत्रकार सिद्दीक कप्पन की गिरफ़्तारी का भी ज़िक्र किया था।
सिद्दीकी कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने साल 2020 में हाथरस मामले के दौरान लोगों को भड़काने की योजना बनाने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। RSF ने प्रोपेगेंडा पत्रकार राना अय्यूब को भी समर्थन दिया। अय्यूब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर झूठे दावे के लिए जानी जाती हैं। उन पर वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप है। हाल ही में उन्होंने यूनेस्को के एक कार्यक्रम में गैंगस्टर अतीक अहमद के अपराधों को कमतर आँका।
RSF ने एक पुरानी रिपोर्ट को भी लिंक किया जिसमें दावा किया गया कि कश्मीर में स्थिति ‘अभी भी चिंताजनक’ है। RSF ने कश्मीरी पत्रकार फहाद शाह की रिहाई की माँग करने वाले एक लेख को लिंक किया था। उल्लेखनीय है कि फहाद शाह को आतंकवाद का महिमामंडन करने के लिए NIA ने गिरफ्तार किया था।
जनवरी 2023 में फहाद शाह के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। फहाद पर ‘मी टू (Me Too) का भी आरोप लगाया गया था। RSF ने साल 2020 में फहाद शाह को उसके ‘साहस’ के लिए सम्मानित किया था। वे कश्मीर के एक कथित पत्रकार इरफान मेहराज के समर्थन में भी सामने आए, जिन्हें आतंकी फंडिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था।
फोर्ड फाउंडेशन और इसकी भारत विरोधी गतिविधियाँ
फोर्ड फाउंडेशन अमेरिका का एक धर्मार्थ संगठन है, जो खुद को मानव कल्याण को आगे बढ़ाने में लगे एक समूह के रूप में प्रस्तुत करता है। वास्तव में यह असहिष्णु और कट्टर वामपंथी उग्रवादियों का एक गढ़ है। इस समूह का वामपंथी समर्थकों द्वारा समर्थित उद्देश्यों को वित्तपोषित करने का एक लंबा इतिहास रहा है। इन समूहों में भारत के वामपंथी समूह भी शामिल हैं।
साल 2015 में तीस्ता सीतलवाड़ के गबन मामले की जाँच करते समय गुजरात सरकार को फोर्ड फाउंडेशन द्वारा उनकी संस्थाओं को दिए गए धन का पता चला था। तीस्ता के ट्रस्ट ने FCRA मानदंडों का भी उल्लंघन किया था। तीस्ता के सबरंग कम्युनिकेशन एंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड को फोर्ड फाउंडेशन से भारत में सांप्रदायिकता आदि से लड़ने के लिए 2.9 लाख डॉलर (2.46 करोड़ रुपए) मिले थे।
बाद में गुजरात पुलिस द्वारा एक पत्र जारी किया गया था। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने फोर्ड फाउंडेशन की गतिविधियों की जाँच करने का इरादा व्यक्त किया थी। संभवतः इससे घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हुई, जिनमें से अधिकांश पृष्ठभूमि में घटित हुईं और बाद में विकीलीक्स द्वारा उजागर की गईं। यह खुलासा फोर्ड फाउंडेशन के लीक ईमेल पर आधारित थी।
लीक हुए ईमेल के अनुसार, फोर्ड फाउंडेशन का दावा था कि तीस्ता के सबरंग ट्रस्ट को दिए गए अपने फंड को लेकर वह विवाद में उलझ गया था। 26 मई 2015 को लिखे गए इस पत्र का शीर्षक है, ‘भारत में फोर्ड फाउंडेशन: जॉन पोडेस्टा को नोट्स’। इसमें सरकार की कार्रवाई के संभावित कारण के रूप में राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल के एनजीओ को दिए गए उसके फंड का भी उल्लेख है।
इस बात की पुष्टि किसी और ने नहीं, बल्कि भारतीय वामपंथी जगत की एक प्रमुख हस्ती अरुंधति रॉय ने की थी। सागरिका घोष के साथ एक साक्षात्कार में रॉय ने द हिंदू के लिए लिखे अपने एक लेख के बारे में बात की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि केजरीवाल के एनजीओ को तीन साल के समय में फोर्ड फाउंडेशन से 400,000 डॉलर से अधिक मिले थे।
अरुंधती रॉय ने यह भी दावा किया था कि शुरू किए गए आंदोलन के शीर्ष ‘प्रबंधन’ वाले दस लोगों के समूह के पास अच्छी तरह से वित्तपोषित एनजीओ थे। उन्होंने कहा था कि टीम के तीन मुख्य सदस्यों ने मैग्सेसे पुरस्कार जीता है और इस पुरस्कार को फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।