आजतक की वेबसाइट में कार्यरत राम कृष्ण ने वामपंथी संपादकों की प्रताड़ना से तंग आकर पीएमओ से गुहार लगाई थी। इसके बाद कई लोग इस संस्थान में काम करने के अपने अनुभवों को लेकर सोशल मीडिया में लिख रहे हैं। इनमें से एक नाम राकेश कृष्णन्न सिम्हा का है। वर्तमान में न्यूजीलैंड में पत्रकारिता कर रहे सिम्हा का दावा है कि वे इंडिया टुडे में काम कर चुके हैं।
उन्होंने इंडिया टुडे और आजतक की स्वामित्व वाले लिविंग मीडिया ग्रुप की कार्यसंस्कृति की पोल खोलते हुए कई आरोप लगाए हैं।
राकेश ने ट्वीट कर दावा किया है कि उन्होंने इस संस्थान में 2 साल कॉपी एडिटर के तौर पर काम किया था। जब वह संस्थान से जुड़े थे तो वहाँ रैकेट शुरू हो गया था, जिसमें संपादक लेखक नहीं फिक्सर हो गए थे। खोजी पत्रकारों की स्टोरी मारी जाती थी ताकि सुमित मुखर्जी जैसे जज बच सकें। उनका दावा है कि उस समय कई संपादकों ने राजनेताओं को ब्लैकमेल करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया।
अपने ट्वीट में उन्होंने जस्टिस मुखर्जी पर रिश्वत लेने का आरोप लगाते हुए कहा है कि वे कॉल गर्ल्स में भी दिलचस्पी लेते थे। उन्हें ‘लेग पीस’ कहकर बुलाते थे। इतने के बावजूद, इंडिया टुडे को जब जस्टिस के ख़िलाफ़ सबूत मिले तो उसने सबूत सीबीआई को सौंपने की बजाए एक्सक्लूसिव स्टोरी के नाम पर पूरी कहानी को मार दिया।
राकेश ने इंडिया टुडे के चुनावी पोल को फर्जी करार देते हुए कहा है कि उन्हें इंडिया टुडे से जुड़े पोलिंग फर्म ने बताया था कि मनमुताबिक नतीजे दिखाने के लिए उन्हें पैसा दिया जाता है। उनका यह भी दावा है कि जब वे इंडिया टुडे से जुड़े तो उसका सर्कुलेशन सुनकर उन्हें गर्व होता था। संस्थान का कहना था कि उनका सर्कुलेशन 2.5 लाख से 4 लाख तक है। जबकि थॉम्पसन प्रेस से जुड़े उनके एक आंतरिक सूत्र ने इसकी हकीकत बताया कि यह 25 000 से ज्यादा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा ये 40,000 पहुँचता है।
सिम्हा कहते हैं कि इंडिया टुडे में कॉपी एडिटर्स से ही एडिटर्स को झूठी चिट्ठियाँ लिखवाई जाती थी। दावा किया जाता था कि लाखों में मैग्जीन का वितरण है, जबकि वास्तविकता में पाठकों से उन्हें 5-6 पत्र ही मिला करते थे। कभी-कभी ये संख्या शून्य होती है। कई बार उन लोगों को यह भी लगता था कि इन 5-6 पत्रों में से 2-3 पत्र तो एक ही इंसान लिखता था। इसके अलावा वहाँ ऐसे संपादकों को काम पर रखा गया जो सरकार को प्रभावित कर सके ताकि कंपनी को एफएम और सैटेलाइट टीवी लाइसेंस मिले।
संस्थान के सर्वेक्षणों पर पत्रकार का कहना है कि वह सब दिखावा होता था। जो मुख्यमंत्री सबसे ज्यादा विज्ञापन दे, वही सबसे बेहतर मुख्यमंत्री होता था और उसका स्थान ही सबसे ऊपर रखा जाता था। राकेश कहते हैं कि वह इंडिया टुडे में इंदरजीत बधवार जैसे लोगों को पढ़कर बड़े हुए। लेकिन जैसे ही संस्थान में गए, उन्हें पता लगा कि वहाँ फिक्सर का राज है। वह कहते हैं कि उन्हें हैरानी नहीं है कि राजदीप को लिविंग मीडिया ने हायर किया, क्योंकि वैसे ही लोग उस संस्थान की जरूरत पूरा कर सकते हैं।
राजदीप पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि उनमें कोई नैतिकता नहीं है। वह कॉन्ग्रेस के चुनाव जीतने पर नाचते हैं। सोनिया गाँधी से इंटरव्यू पर सबसे मुश्किल सवाल के नाम पर उनकी कुकिंग के बारे में पूछते हैं। आगे रिया के इंटरव्यू का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि सरदेसाई कोई पत्रकार नहीं, दल्ला हैं।
लिविंग मीडिया को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने दावा किया है कि संस्थान का सच्चाई और न्याय से कोई लेना-देना नहीं है। वे सिर्फ हर कीमत पर नकदी चाहते हैं।
बता दें कि आज ऑपइंडिया ने आजतक के ही एक पत्रकार राम कृष्ण की आपबीती पर विस्तृत रिपोर्ट की थी। जिनके आरोपों के बाद इंडिया टुडे को लेकर यह मुद्दा गरमाया। राम कृष्ण का आरोप था कि उनके संपादक उन्हें विचारधारा अलग होने के कारण प्रताड़ित करते हैं और प्रमोशन अप्रेजल भी रोका हुआ है। उनका आरोप है कि जब लॉकडाउन के समय में आर्थिक संकट से जूझते हुए उन्होंने संस्थान से मदद की अपेक्षा की तो संपादक पाणिनि आनंद ने उनसे गाली-गलौच की। उन्हें जान से मारने की धमकी। जिसके कारण अब उन्होंने पीएमओ को पत्र लिखा है।