Thursday, November 14, 2024
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‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगाने वाली बुर्के में लिपटी मुस्लिम लड़की ‘बहादुर’ और शांति से विरोध कर रहे हिन्दू ‘आतंकी’: वाह रे मीडिया!

याद कीजिए, कैसे जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के हिंसक प्रदर्शन और भड़काऊ नारेबाजी में शामिल आयशा रेना और लदीदा फरजाना को प्रोपेगंडा पत्रकार 'बरखा दत्त' ने 'Shero' बताया था।

कर्नाटक में मुस्लिम छात्र-छात्राओं का हिंसक प्रदर्शन चल रहा है। उनकी माँग है कि उन्हें बुर्के और हिजाब में शैक्षणिक संस्थानों में घुसने दिया जाए। इसके लिए कॉलेजों में पत्थरबाजी की जा रही है। भगवा शॉल या स्कार्फ़ पहन कर विरोध जता रहे छात्रों के साथ मारपीट की जा रही है। पुलिस को धता बताया जा रहा है। स्कूल-कॉलेजों के नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। अदालत में कुरान से तर्क दिए जा रहे हैं। और मीडिया बुर्का को ‘बहादुरी का प्रतीक’ बनाने में लगा हुआ है।

ऐसे ही एक मीडिया पोर्टल का नाम है ‘जनता का रिपोर्टर’, जो जनता के बारे में बात करने की बजाए इसके अलावा सब कुछ के बारे में बातें करता है। उसने अपनी खबर में घोषित कर दिया कि कर्नाटक के मांड्या में ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगाने वाली बुर्के में लिपटी मुस्लिम छात्रा ‘बहादुर’ है और हिन्दू छात्रों ने इसका विरोध किया और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाया तो वो ‘आतंकवादी’ हैं। अर्थात, शरिया के हिसाब से अनिवार्य बताया जा रहा बुर्का मुस्लिम महिलाओं के लिए चॉइस नहीं, फिर भी ‘बहादुरी’?

याद कीजिए, कैसे जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के हिंसक प्रदर्शन और भड़काऊ नारेबाजी में शामिल आयशा रेना और लदीदा फरजाना को प्रोपेगंडा पत्रकार ‘बरखा दत्त’ ने ‘Shero’ बताया था। जबकि आयशा जहाँ आतंकी याकूब मेमन की समर्थक है, वहीं लदीदा ने राम मंदिर को लेकर नफरत दिखाई थी। दुनिया भर में आतंकी संगठन ‘अल्लाहु अकबर’ बोल कर गला रेत देते हैं, लेकिन ये मीडिया के गिरोह विशेष की नजर में ‘प्रोग्रेसिव’ है। बुर्का पहनना इस्लाम में महिलाओं की मजबूरी है, लेकिन ये ‘आधुनिकता’ और ‘चॉइस’ है।

जो पत्थरबाजी कर रहे हैं और हिंसा कर के अपनी बात मनवाने के लिए दबाव डाल रहे हैं, उन्हें ‘बहादुर’ बताया जा रहा है। और, जो शांतिपूर्ण ढंग से प्रतीकों का इस्तेमाल कर के विरोध जता रहे हैं, उन्हें सिर्फ हिन्दू होने की वजह से आतंकवादी कह दिया जा रहा है। ये इन मीडिया संस्थानों का दोहरा रवैया ही है कि जिस बुर्के में लिपट कर रहने के लिए इस्लाम में महिलाओं को मजबूर किया जाता है, उसके लिए ये आवाज़ उठा रहे हैं। इसमें कई ऐसे एक्टिवस्ट्स भी शामिल हैं, जो ‘घूँघट प्रथा’ का विरोध करते नहीं थकते।

हिन्दू छात्रों को ‘जनता का रिपोर्टर’ ने बताया ‘आतंकवादी’

बाद में ‘जनता का रिपोर्टर’ ने अपनी हैडिंग में बदलाव करते हुए ‘आतंकवादी’ की जगह ‘छात्र’ कर दिया। लेकिन, ट्विटर पर मुस्लिम छात्रा को ‘शेरनी’ बताया जा रहा है। मीडिया संस्थान ने हिन्दू छात्रों को आतंकवादी बताने के लिए न कोई माफ़ी माँगी और न ही इस पर स्पष्टीकरण दिया। हिन्दू हैं, उनसे भला कैसा डर। क्या भगवा रंग आतंकवाद का प्रतीक है? ये तो छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप का अपमान होगा। क्या ‘जय श्री राम’ कहना आतंकवाद है, जबकि इससे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाता।

वहीं कर्नाटक उच्च-न्यायालय में लड़कियों के बुर्का को सही ठहराने के लिए दलीलें हदीस से लेकर माहवारी तक पहुँच गईं। मुस्लिम लड़कियों की माँग को जायज बताने के लिए उनकी ओर से पेश वकील देवदत्त कमात ने केरल हाईकोर्ट के फैसले में दिए गए हदीस के हवाले का उल्लेख करते हुए कहा कि लड़कियों की माहवारी शुरू होने के बाद उनके लिए ये ठीक नहीं है कि वो अपने हाथ को छोड़कर शरीर का कोई भी अंग किसी को दिखाएँ। ये साबित करने का प्रयास किया गया कि ये कुरान द्वारा निर्देशित जरूरी मजहबी क्रिया है।

भले ही इस विरोध प्रदर्शन को ‘बुर्का’ के नाम पर किया जा रहा हो, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को बुर्का में शैक्षणिक संस्थानों में घुसते हुए और प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है। इससे साफ़ है कि ये सिर्फ गले और सिर को ढँकने वाले बुर्का नहीं, बल्कि पूरे शरीर में पहने जाने वाले बुर्का को लेकर है। बुर्का सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव। कई इस्लामी मुल्कों में शरिया के हिसाब से बुर्का अनिवार्य है। कर्नाटक में चल रहे प्रदर्शन को मीडिया/एक्टिविस्ट्स भले इसे बुर्का से जोड़ें, ये बुर्का के लिए हो रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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