हाल ही में ‘The Lallantop (दी लल्लनटॉप)’ नामक मीडिया वेबसाइट ने खबर चलाई कि ‘काशी करवट’ के महंत गणेश शंकर उपाध्याय ने कहा है कि ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में जो मिला, वो शिवलिंग नहीं बल्कि फव्वारा है। मुस्लिम पक्ष के झूठे एजेंडे को चलाने वाले ‘लल्लनटॉप’ को अब महंत ने जम कर खरी-खोटी सुनाई है और उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने पर लताड़ा है। आइए, बताते हैं कि माजरा क्या है।
‘खबर इंडिया’ के केशव मालान से बात करते हुए महंत गणेश शंकर उपाध्याय ने स्पष्ट कहा कि क्या लोग अंधे हैं कि उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है? उन्होंने कहा कि पूरे ज्ञानवापी में हिंदू मंदिर होने के प्रमाण मौजूद हैं, कैसे उसे मस्जिद मान लें? उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी के ऊपर-नीचे, अलग-बगल, चारों तरफ प्रमाण पड़े हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘लल्लनटॉप’ ने उन्हें बरगला कर के कुछ कहवा लिया और घूमा-फिरा कर सिद्ध करने में लगे हुए हैं कि वो फव्वारा है।
महंत ने कहा, “किस सदी की बात कर रहे हैं? हम सनातनियों से सदियों की बात कीजिए, जिनका लाखों वर्षों का इतिहास है। पुराण है। ग्रन्थ है हमारे। कौन उससे इनकार करता है। दुष्प्रचारित करने वाले कलंक हैं हिन्दू समाज के नाम पर। 5 बार आप रिकॉर्डिंग करते हैं और दिखाएँगे 5 मिनट का। कहाँ का किसका आपने किसमें जोड़ दिया और कहा से क्या ले लिया… पूरे षड्यंत्र के तहत मेरे बयान को इस तरह से पेश किया गया, ताकि हिन्दुओं में विभेद हो, वो एकजुट न रहें।”
#ज्ञानवापी_मामला: एजेंडा पूर्ण पत्रकारिता करके बयान को तोड़ने-मरोड़ने वाले @TheLallantop @IndiaToday @aajtak खुद ही सुन लो। शिवलिंग को फब्बारा बताने वाले ‘काशी करवट’ के महंत गणेश शंकर उपाध्याय जी ने आपको गरियाते हुए शुभकामना संदेश भेजा है। @AshokShrivasta6 @IAbhay_Pratap pic.twitter.com/si02Hnpi8U
— Keshavmalan (@Keshavmalan93) May 28, 2022
उन्होंने ऐसा करने वालों को विधर्मी करार देते हुए कहा कि ऐसे लोगों को पहचानने की जरूरत है, जो एक लॉबी षड्यंत्र के रूप में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि ये मीडिया से लेकर राजनीति तक में सक्रिय हैं। मुस्लिम पक्ष के ‘बाबरी देने’ वाले बयान पर महंत ने कहा कि हमने लड़ कर के बाबरी लिया है, हजारों लोगों ने जान न्योछावर किया है – उन्होंने भीख दिया क्या? उन्होंने औरंगजेब की क्रूरता और उसके भाई की हत्या का जिक्र करते हुए कहा कि उससे ज्यादा वीभत्स इतिहास किसी मुग़ल शासक का नहीं रहा।